माता कर्मा मंदिर दीपका में महतो परिवार के संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के कृष्ण रुक्मणी विवाहोत्सव में बिखरी खुशियां
कोरबा 06 मई। साज -सज्जा गाजा-बाजा, लजीज मिष्ठान, मीठे खाजा। दूल्हा -दुल्हन की छवि ऐसी अद्भुत निराली । झूमकर नाचे घराती-बराती। हर्षोल्लास से हुई रुक्मणी श्याम की शादी। माता कर्मा मंदिर प्रांगण बुधवारी बाजार दीपका में शुक्रवार को यह मनोहारी नजारा देखने को मिली। अवसर था ग्राम सलिहाभांठा निवासी भागीरथी महतो श्रीमती शांति देवी महतो द्वारा कुल एवं आत्मकल्याण निमित्त आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह में कृष्ण रुक्मणी विवाहोत्सव का। तिलकेजा से पधारे प्रख्यात कथावक्ता पंडित नूतन कुमार पांडेय के सानिध्य में हर्षोल्लास से विवाहोत्सव संपन्न हुआ।
रामेश्वर शांति जायसवाल की सुपुत्री कावेरी जायसवाल कृष्ण बनी, बालकृष्ण रजनी जायसवाल की सुपुत्री मुस्कान जायसवाल रुक्मणी बनीं। कृष्ण-रुक्मणी को आचार्य श्री पांडेय की सुपुत्री मुस्कान पांडेय ने ऐसा तैयार किया कि नयनाभिराम छवि पर सबकी नजरें जा टिकी। जैसे ही कृष्ण रुक्मणी के साथ विवाह स्थल कथा पंडाल में पहुंचे। उपस्थित बाराती रूपी श्रोताओं ने पुष्वर्षा से अभिनंदन किया। घराती बराती सभी श्याम रुक्मणी की शादी की पावन बेला में झूमकर नाचे। वैदिक विधान से आचार्य श्री पांडेय ने प्रमुख यजमान भागीरथी शांति महतो के हाथों विवाह संपन्न करवाया। उपस्थित सभी घराती बराती बने श्रोताओं ने रुक्मणी-कृष्ण रूपधारी बालिकाओं का पूजा अर्चना कर उन्हें विवाह की शुभकामनाएं देकर उपहार द्रव्य भेंट कर अपना जीवन धन्य बनाया। इससे पूर्व आचार्य श्री पांडेय ने कृष्ण की बाल लीला गोवर्धन पूजा कथा प्रसंग का प्रभावपूर्ण ढंग से वाचन कर श्रोताओं को श्रवण कराया। उन्होंने कहा कि संसार में ईश्वर की महिमा का पार पाना असंभव है लेकिन माता यशोदा ने अपने ममता मयी वात्सल्य से जगत के पालनहार को बांध लिया।
आचार्य श्री पांडेय ने उपस्थित श्रोताओं से कहा कि अहम कभी पूज्यनीय नहीं हो सकता। इंद्र के अहंकार का दमन करने भगवान श्री कृष्ण ने वृंदावनवासियों को गोवर्धन पर्वत का उनके कल्याण में भागीदारी से अवगत कराते हुए गोवर्धन भगवान की पूजा अर्चना शुरू कराई। आचार्य श्री पांडेय ने कहा कि इंसान की नजरों में भले अलग अलग धर्म हैं लेकिन ईश्वर की नजरों में सभी धर्मों के लोग उनके लिए समान हैं। अटूट कृष्ण भक्ति एवं समर्पण से सैयद इब्राहिम रस की खान रसखान बन गए। रसखान ने वृंदावन और मथुरा को ही अपना घर बना लिया। उन्हें कृष्ण प्रेम में गिरफ्तार भी किया गया। लेकिन वे अपनी अटूट भक्ति से पीछे नहीं हटे। उन्होंने फारसी में भागवत का अनुवाद किया।