नईदिल्ली 3 जून। भारत के रक्षा निर्यात ने करीब 23 गुना की वृद्धि दर्ज की है। भारत का रक्षा निर्यात 2013-14 में 686 करोड़ रुपये से बढ़कर 2022-23 में लगभग 16 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इसी के साथ देश के रक्षा निर्यात ने पिछले वित्तीय वर्ष में लगभग 16,000 करोड़ रुपये के सर्वकालिक उच्च स्तर को छूते हुए यह बड़ी सफलता हासिल की है।
2026 तक 40,000 करोड़ रुपए के रक्षा उपकरणों का निर्यात करना है लक्ष्य
याद हो, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसी वर्ष मार्च महीने में हुए “राइजिंग इंडिया कॉन्क्लेव” में कहा था कि ”हमारा लक्ष्य 2026 तक 40,000 करोड़ रुपए के रक्षा उपकरणों का निर्यात करना है।” भारत इसी दिशा में आगे बढ़ रहा है।
*भारत के रक्षा निर्यात की 85 से अधिक देशों तक पहुंच*
इसका अर्थ ये हुआ कि भारत का रक्षा निर्यात अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। यह उल्लेखनीय वृद्धि वैश्विक रक्षा निर्माण क्षेत्र में भारत की प्रगति को दर्शाती है। भारत का रक्षा निर्यात 85 से अधिक देशों तक पहुंचने के साथ, देश के रक्षा उद्योग ने दुनिया को डिजाइन और विकास की अपनी क्षमता दिखाई है। यानि भारत प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सर्वाधिक शक्तिशाली देशों में एक के रूप में उभर रहा है।
*100 कंपनियां रक्षा उत्पादों का कर रही निर्यात*
वर्तमान में भारत से तकरीबन 100 कंपनियां रक्षा उत्पादों का निर्यात कर रही हैं। सरकार ने रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए पिछले नौ वर्षों में कई नीतिगत पहलें की हैं और सुधार किए हैं।
*आत्मनिर्भर भारत पहल से मिली मदद*
आत्मनिर्भर भारत पहल ने देश में रक्षा उपकरणों के स्वदेशी डिजाइन, विकास और निर्माण को प्रोत्साहित करके देश की मदद की है। इससे लंबे समय से आयात पर निर्भरता कम हुई है। विदेशी स्रोतों से रक्षा खरीद पर खर्च 2018-19 में कुल व्यय के 46 प्रतिशत से घटकर पिछले साल दिसंबर में 36 प्रतिशत से अधिक हो गया है।
*स्वदेशी रक्षा उत्पादों की तेजी से बढ़ रही वैश्विक मांग*
भारत, जिसे कभी मुख्य रूप से रक्षा उपकरण आयातक के रूप में जाना जाता था, अब डोर्नियर-228, आर्टिलरी गन, ब्रह्मोस मिसाइल, पिनाका रॉकेट और लॉन्चर, रडार, सिम्युलेटर और बख्तरबंद वाहनों जैसे विमानों सहित प्रमुख प्लेटफार्मों की एक विस्तृत श्रृंखला का निर्यात करता है। केवल इतना ही नहीं, एलसीए-तेजस, लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर, एयरक्राफ्ट कैरियर और एमआरओ गतिविधियों सहित भारत के स्वदेशी उत्पादों की वैश्विक मांग भी बढ़ रही है।