कोरबा 15 मई। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के अंतर्गत दीपका वाशरी के कर्मियों ने आज काम ठप कर दिया। वे स्टाफ कर्मियों के बराबर वेतन से लेकर अन्य सुविधाओं की मांग प्रबंधन से कर रहे हैं। एकाएक हड़ताल करने से वाशरी प्रबंधन की दिक्कतें बढ़ गई है। हड़तालियों का कहना है कि बेहतर समाधान नहीं आने तक वे काम पर नहीं लौटेंगे।
एसीबीई लिमिटेड के द्वारा दीपका क्षेत्र में कोल वाशरी का संचालन विगत 1999 से किया जा रहा है। अब तक इसके संचालन में 24 वर्ष का समय हो चुका है। वाशरी में नियोजित किये गए कर्मियों ने लंबे समय तक सीमित वेतन पर काम जारी रखा है। समय के साथ आ रही चुनौतियों के कारण इनके सामने दिक्कतें हैं। इस बारे में बार.बार प्रबंधन को अवगत कराया गया लेकिन इस पर कोई ठोस पहल अथवा कार्रवाई नहीं की गई। इसलिए अग्रीम सूचना देने के साथ वाशरी कर्मी आज से बेमुद्दत हड़ताल पर चले गए। उन्होंने इस बात पर आपत्ति जताई कि आधे कर्मियों को प्रमोशन करने के साथ उनके वेतन को 20 से 40 हजार कर दिया गया लेकिन बाकी कर्मियों की स्थिति 10 हजार से उपर नहीं जा सकी। मांग की जा रही है कि वाशरी के सभी कर्मियों को स्टाफ में पदोन्नत करने के साथ स्टाफ कर्मी का दर्जा देते हुए आवश्यक अवकाश, अनिवार्य अवकाश और कंपनी की अन्य सुविधाएं और उपयोगी वस्तुएं उपलब्ध कराई जाए। 4 वर्ष से लंबित छुट्टीए मेडिकल और पीपीएफ की रकम का भुगतान करने पर भी कर्मियों ने जोर दिया है। यह भी मांग की गई कि ईपीएफ में कटौती की जा रही राशि उनके खाते में हर महीने जमा करने के साथ इसकी जानकारी दी जाए। वर्ष 2020 का बोनस अब तक अप्राप्त है जिसे तत्काल उपलब्ध कराने पर फोकस किया गया। साप्ताहिक अवकाश का मसला लंबे समय से लंबित है और इस बारे में लगातार पत्राचार करने पर भी कोई परिणाम नहीं आ सका। इस दिशा में आवश्यक कार्रवाई करने की अपेक्षा की जा रही है। इन मांगों को लेकर नाराज कर्मियों ने वाशरी प्रबंधन को आइना दिखाने की कोशिश की है। साथ ही कहा गया है कि प्रदर्शन को हल्के से लेने की भूल बिल्कुल न की जाए।
औद्योगिक जिले कोरबा में श्रम कानूनों का परिपालन कराए जाने को लेकर एक तरह से केवल हवा.हवाई बात की जा रही है और ढोल बज रहे हैं लेकिन जमीन पर ऐसा कुछ नहीं है। बड़ी संख्या में यूनियनें अपनी सक्रियता का प्रदर्शन करने का दावा कर रही है लेकिन औद्योगिक प्रबंधनों में काम करने वाले ठेका मजदूरों की दशा वर्षों बाद भी बद से बदतर बनी हुई है। यह बात अलग है कि ठेका मजदूरों के हितों का संरक्षण करने को लेकर कई लोग झंडाबरदार बने हुए हैं। इन सबके बावजूद समय-समय पर शोषण और अन्य कारणों से प्रदर्शन करने वाला वर्ग इस बात को इंगित कर रहा है कि श्रम कानून और श्रमिकों की वास्तविक दशा क्या है और इनका भविष्य आखिर क्या होगा।