कोरबा 21 जून। छत्तीसगढ़ के हज़ारों स्वास्थ्यकर्मी एक बार फिर अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतरने को तैयार हैं। प्रदेश के स्वास्थ्य कर्मचारी संघ ने आगामी 4 जुलाई से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का ऐलान किया है। ये हड़ताल वेतन विसंगति समेत उन्हीं 12 सूत्रीय मांगो को लेकर की जा रही है, जिसके लिए बजट से पहले इन स्वास्थ्य कर्मियों ने विशाल प्रदर्शन किया था। हालांकि तब भी सरकार ने चुप्पी साध रखी थी और अब भी सरकार इनके ज्ञापनों पर मौन ही है। ऐसे में इन सभी कर्मचारियों को अब पूरक बजट का ही सहारा है।
बता दें कि छत्तीसगढ़ में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं और सभी कर्मचारी संगठन सत्ताधारी कांग्रेस को उसके मेनिफेस्टो में किए वादों की याद दिला रहे हैं। बीते 15 मई से प्रदेशभर के पटवारी अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर थे। संविदाकर्मी भी बीते एक महीने से नियमितीकरण रथयात्रा को लेकर सड़कों पर हैं, ऐसे में अब स्वास्थ्यकर्मियों का हड़ताल पर जाने का ऐलान राज्य सरकार और आम जनता दोनों को मुश्किल में डाल सकता है। छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य कर्मचारी संघ के प्रांताध्यक्ष आलोक मिश्रा ने इस हड़ताल के संबंध में न्यूज़क्लिक को बताया कि स्वास्थ्यकर्मियों को मजबूरी में इस हड़ताल की ओर बढऩा पड़ रहा है। सरकार बीते लंबे समय से इन स्वास्थ्य कर्मियों की अनदेखी कर रही है। कई धरना प्रदर्शन और हड़ताल के बाद भी अभी तक इनके हाथ आश्वासन के आलावा और कुछ नहीं लगाए जिसके चलते अब इनका भी धैर्य समाप्त हो गया है। अब सबको मानसून सत्र से ही उम्मीद है।
आलोक मिश्रा का कहना है कि कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में स्वास्थ्य कर्मियों और अन्य विभागों में कार्यरत कर्मचारियों से कई वादे किए थे, लेकिन अब सरकार का कार्यकाल खत्म होने को है लेकिन अभी तक न वेतन विसंगतियां दूर हुईं और न ही संविदा कर्मचारियों को नियमित करने का वादा ही सरकार पूरा कर पाई। बीते चुनाव में हमारी समस्याओं को दूर करने के लिए बड़े-बड़े वादे किए गए, लेकिन जब बघेल सरकार सत्ता में आई तो वो सब वित्तीय संकट के नाम पर ठंडे बस्ते में चले गए। कई प्रदर्शन, ज्ञापन के जवाब में अब तक कर्मचारियों और अधिकारियों को केवल आश्वासन ही मिला है।
क्या हैं इन कर्मचारियों की प्रमुख मांगें ?
कर्मचारियों को केंद्रीय एवं राजस्थान, झारखंड के कर्मचारियों के समान गृह भाड़ा भत्ता एचआरए सातवें वेतनमान के आधार पर प्रदान किया जाए। जन घोषणा पत्र क्रियान्वयन हेतु राज्य के समस्त कर्मचारियों को क्रमश: 8, 16, 24 एवं 30 वर्ष के सेवावधि उपरांत चार स्तरीय क्रमोन्नत/समयमान वेतनमान प्रदान किया जाए। स्वास्थ्य कर्मचारियों की वेतन विसंगति के निराकरण हेतु सचिव स्वास्थ्य विभाग द्वारा वित्त विभाग को प्रेषित प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की जाए एवं स्वास्थ्य कर्मचारियों को पुलिस एवं मंत्रालय वित्त विभाग के कर्मचारियों के समान प्रतिवर्ष एक माह का अतिरिक्त वेतन प्रदान किया जाए। समस्त विभागों में कार्यरत दैनिक वेतनभोगी, कार्यभारित एवं संविदा कर्मचारियों को जन घोषणा पत्र में किए वादे के अनुरूप नियमित किया जाए। पांचवें एवं छठे वेतनमान के आधार पर देय चिकित्सा भत्ता, वाहन भत्ता, अनुसूचित क्षेत्र भत्ता सहित समस्त भत्तों को सातवें वेतनमान के आधार पर पुनरीक्षित किया जाए।
राज्य के स्वास्थ्य कर्मचारियों की मानें, तो कोरोना काल के पहले से ये कर्मचारी नियमितीकरण की मांग के साथ ही वेतन विसंगति, इलाज की सुविधा, भत्ता समेत कई अन्य समस्याएं को लेकर सरकार से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन इसका निराकरण अभी तक नहीं हो सका है। कोरोना काल में इन कर्मचारियों की हड़ताल राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में कई दिन रही थी, बावजूद इसके सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। ऐसे में अब इनके पास विरोध के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा।
गौरतलब है कि बघेल सरकार अपने वादों और इरादों में इस कदर उलझ गई है कि उसे चुनावी साल में प्रदर्शन रोकने के लिए एस्मा और पुलिस कार्रवाई का सहारा लेना पड़ रहा है। वैसे लगभग हर राजनीतिक पार्टी चुनावी वादे और घोषणा पत्र के आश्वासन पर राजनीतिक पार्टियां लोगों का वोट तो ले लेती हैं लेकिन सत्ता में आने के बाद उनके पास उन वादों को पूरा करने के लिए न कोई रोडमैप होता है और न ही बजट। ऐसे में आम जनता और कर्मचारियों के हाथ धोखे के अलावा कुछ खास नहीं लगता। मांगें लेकर जब लोग सड़कों पर उतरते हैं, जो नेता आश्वासन का नया पिटारा खोलते हैं और देखते ही देखते उनका कार्यकाल खत्म हो जाता है और जनता हाथ मलती रह जाती है।