
हाईकोर्ट ने 98 दैनिक वेतनभोगियों को नियमित करने आदेश जारी किए थे। जिसे सेंट्रल यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को सही मानते हुए सेंट्रल यूनिवर्सिटी की याचिका खारिज कर दी है। अब 98 कर्मचारियों को नियमित कर्मचारियों की तरह समस्त सेवा लाभ प्रदान करने होंगे।
बिलासपुर। दैनिक भोगी कर्मचारियों को नियमित करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुघासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी द्वारा प्रस्तुत सभी एसएलपी खारिज कर दी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट के आदेश पर हस्तक्षेप करने का कोई ठोस आधार नहीं है। इस आदेश के बाद यूनिवर्सिटी प्रबंधन को 98 दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को समस्त सेवा लाभों के साथ नियमित कर्मचारियों के तौर पर रेगुलर करना होगा। इससे पहले हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने अपील खारिज की थी।
गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में 98 दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी 10 वर्ष से अधिक समय से कार्यरत थे। यह पूर्व में राज्य विश्वविद्यालय था। राज्य विश्वविद्यालय रहते ही 22 अगस्त 2008 को राज्य शासन के सामान्य प्रशासन विभाग ने दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को नियमित करने का आदेश जारी किया। जिसमें 10 वर्ष या उससे अधिक समय तक दैनिक वेतन भोगी के रूप में कार्यरत कर्मचारियों को नियमित करना था। 22 अगस्त 2008 को राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने यह आदेश जारी किया था। जिसके परिपालन में तत्कालीन कुलपति एलएम मालवीय ने 98 दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को नियमित करने के आदेश जारी कर दिए थे। मार्च 2009 तक इन्हें नियमित वेतन भोगी कर्मचारी के रूप में वेतनमान भी दिया गया। इस 20 15 जनवरी 2009 को गुरु घासीदास विश्वविद्यालय राज्य विश्वविद्यालय से केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में अपग्रेड हो गया। विश्वविद्यालय बनने के दो माह बाद ही बिना किसी जानकारी या सूचना के यूनिवर्सिटी ने कर्मचारियों को नियमित वेतनमान देना बंद कर दिया। फिर 10 फरवरी 2010 को तत्कालीन रजिस्ट्रार ने राज्य शासन के नियमितीकरण को निरस्त करने के आदेश जारी कर दिया।
इस मामले में कर्मचारियों ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई और बताया कि गुरु घसीदास विश्वविद्यालय को राज्य विश्वविद्यालय से केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्वीकार किया गया है। लिहाजा राज्य शासन के अधीन कार्यरत सभी कर्मचारियों को उसी स्थिति में केंद्रीय विद्यालय में शामिल करना चाहिए, जिस स्थिति में कर्मचारी राज्य विश्वविद्यालय में कार्यरत थे। लेकिन सेंट्रल यूनिवर्सिटी प्रशासन ने ऐसा नहीं किया। तर्कों से सहमत होते हुए हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने कर्मचारियों को नियमित करने के आदेश जारी किए थे। सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने डबल बेंच में अपील की थी। जिसमे भी यूनिवर्सिटी को हार का सामना करना पड़ा था। फिर सेंट्रल यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी लगाई थी।
सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा कि हमें उच्च न्यायालय के निर्देश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ऋषिकेश रॉय औअर जस्टिस प्रशांत मिश्रा की डीबी में सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद बेंच ने विशेष अनुमति याचिकाएं खारिज कर दी। निजी उत्तरदाताओं की ओर से इस अदालत में एडवोकेट दीपाली पांडे उपस्थित हुईं। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि लंबित आवेदन यदि कोई हो, जिसमें पक्षकार या हस्तक्षेप आवेदन भी शामिल हैं, उन्हें अब निराकृत कर दिया जाएगा।
इससे पहले सिंगल बेंच के निर्णय को बरकरार रख हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने माना था कि, राज्य शासन के आदेश पर इन कर्मचारियों को नियमित करना पूरी तरह विधिक कार्रवाई थी। गुरु घासीदास विवि में वर्षों से कार्यरत दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को राज्य शासन उच्च शिक्षा विभाग गत द्वारा 22 अगस्त 2008 को जारी आदेश के अनुसार तत्कालीन कुलपति प्रो एल एम् मालवीय ने 26 अगस्त 2008को नियमितीकरण के आदेश जारी कर दिए थे। इससे पूर्व विवि कार्य परिषद की 22 जुलाई 2008 को हुई बैठक में भी कर्मचारियों को नियमित करने का प्रस्ताव पारित किया गया था। इस कार्रवाई से पहले ही राज्य शासन 5 मार्च 2008 को तृतीय व चतुर्थ वर्ग कर्मियों को नियमित करने एक सर्कुलर जारी कर चुका था। इस बीच 15 जनवरी 2009 को यह विवि केन्द्रीय यूनिवर्सिटी बन गया। इसके साथ ही यहां केन्द्रीय विवि एक्ट 2009 लागू हो गया। यह शर्त भी लागू हुई कि जैसे कर्मचारी लाए गए हैं वैसे ही रखे जाएंगे। सेवा शर्तों को बिना राष्ट्रपति की अनुमति के बदला नहीं जाएगा। लेकिन इसका पालन नहीं किया गया।
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