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छतीसगढ़ के इस जिले कलेक्टर के पिता पहुँचे जेल, वापस लौटकर जो बताया उसे सुनकर आप चौंक जाएंगे ,सोशल मीडिया में किया खुलासा



बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के कलेक्टर अवनीश शरण के पिता लोकेश शरण गुरको बिलासपुर सेंट्रल जेल पहुंच गए। उन्हें जेल के भीतर जाने का लिखित आदेश कलेक्टर अवनीश शरण  ने ही दिया था। कलेक्टर अवनीश शरण के पिता लेखक व पत्रकार हैं।



बता दे कि आईएएस अवनीश शरण के पिता डॉक्टर लोकेश कुमार शरण  पूर्व में भी शोध प्रबंध की तैयारी के लिए बिलासपुर सेंट्रल जेल का अनुमति लेकर दौरा कर चुके हैं।  बिलासपुर सेंट्रल जेल में ही रहकर पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित करने के लिए  “पुष्प की अभिलाषा” की रचना की थी। लोकेश कुमार शरण ने अपने कलेक्टर पुत्र को पहले आवेदन लिखे इसके लिए अनुमति मांगी। लिखित अनुमति मिलने पर उन्होंने बिलासपुर सेंट्रल जेल का दौरा किया।

माखन लाल चतुर्वेदी के स्मारक को देखने के लिए जेल पहुंचे कलेक्टर अवनीश शरण के पिता ने अपने द्वारा लिखी गई पुस्तक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में काला पानी की ऐतिहासिक भूमिका को जेल प्रशासन को भेंट की। उनके द्वारा अपने अनुभव को फेसबुक में भी शेयर किया गया हैं। देखिए उनकी पोस्ट…

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“यादगार पल…!
काफी दिनों से आज-कल, करते-करते बिलासपुर आ ही गया। अध्ययन-अध्यापन  के लिए कहां-कहां जाना है, इसकी सूची पहले ही बना कर रख लिया था। बिलासपुर से मेरी कई यादें जुडी हुई है। पहली बार 2012 में यहां आने का तब मौका मिला था जब अवनीश नगर निगम, बिलासपुर का कमिश्नर था। उन दिनों मैं अपने शोध-प्रबंध की तैयारी में जुटा था। तब यहां के प्रमुख शिक्षण संस्थानों व पुस्तकालयों से जुड़ने का अवसर मिला। उन दिनों ठाकुर रामसिंह सर बिलासपुर के कलेक्टर हुआ करते थे। उनसे लिखित अनुमति लेकर कुछ अभिलेखों का संग्रह करने का मौका भी मिला। आज अवनीश बिलासपुर के कलेक्टर पद पर पदस्थ है।

मेरी सूची में पहले स्थान पर 1873 में स्थापित सेन्ट्रल जेल, बिलासपुर का नाम दर्ज था। इसका कारण यह था कि मेरे बचपन की प्रिय कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ की रचना महान स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर साहित्यकार, ओजस्वी कवि व पत्रकार पंडित माखनलाल चर्तुवेदी ने बंदी जीवन के दौरान इसी जेल में की थी।  उनकी स्वर्णिम यादें इस जेल से जुड़ी हुई हैं। उन दिनों वे जबलपुर से ‘कर्मवीर’ नाम से अपना अखबार प्रकाशित करते थे। वे कांग्रेस के जुझारू कार्यकर्ता भी थे। 1921 में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन की घोषणा की। चर्तुवेदीजी भी इस आंदोलन में कूद पड़े। इसी दौरान चर्तुवेदीजी बिलासपुर आये थे। 4 जुलाई, 1921 को शहर के ‘शनिचरी बाजार’ में ब्रिटिश सरकार की तानाशाही के विरोध में सभा का आयोजन किया गया था। मुख्य वक्ता के रुप में चर्तुवेदीजी ने जोरदार भाषण दिया। अगले ही दिन 5 जुलाई, 1921 को उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। लगभग 8 माह तक वे सेन्ट्रल जेल,  बिलासपुर में कैद रहे । इसी दौरान उन्होंने अपनी कालजयी कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ की रचना की थी।

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बिलासपुर आने के बाद मैने अवनीश से सेन्ट्रल जेल, बिलासपुर का भ्रमण करा देने को कहा। वह तुरत तैयार हो गया। मैने कहा कि बगैर तुमसे लिखित में अनुमति लिये मैं नहीं जाउंगा …..मुझे जेल के अंदर फोटोग्राफी भी करनी है ….। उसने काफी ठहाका लगाया और अपनी सहमति दे दी। फिर क्या था ! उसके नाम और पदनाम से आवेदन लिखा। कल उसके कार्यालय कक्ष में जाकर अपना आवेदन दिया। वहां भी आवेदन प्राप्त करने की तस्वीर लेने में आनाकानी करने लगा। वह मेरे आग्रह को ज्यादा देर तक टाल नहीं सका। आवेदन की पावती भी मिल गई। मैं तो भावविभोर हो  रहा था। होता भी कैसे नहीं ? एक शोधार्थी पिता- अपने कलेक्टर पुत्र को आवेदन देकर किसी विशेष प्रयोजन के लिए अनुमति जो मांग रहा था ! शाम में जेल सुपरिटेंडेंट का अनुमति पत्र मिला।

सेन्ट्रल जेल, बिलासपुर पहुंचा। मेरे आने की सूचना जेल सुपरिटेंडेंट श्री खोमेश मंडावी सहित सभी स्टाफ को मिल चुकि थी। श्री मंडावी ने स्वतंत्रता सेनानियों की सूची उपलब्ध कराई जिन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान इस जेल में यातनाभरी जीवन गुजारी थी। उन्होंने जेल के क्रियाकलापों की विस्तार से जानकारी दी। बंदियों को कुटीर उद्योगों का प्रशिक्षण व उनके उत्पादन कार्य, उनकी पढ़ाई-लिखाई, वर्ग कक्ष के साथ-साथ पुस्तकालय को भी देखने का अवसर मिल। बताया गया कि पुस्तकालय में 11 हजार से अधिक पुस्तकों का संग्रह है। अपनी पुस्तक ‘भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में ‘कालापानी’ की ऐतिहासिक भूमिका’ जेल पुस्तकालय को उपहार के रुप में भेंट किया।

अफसोस इस बात का है कि पंडित माखनलाल चर्तुवेदी की स्मृतियों को संरक्षित नहीं किया जा सका। जेल परिसर में उनकी कोई प्रतिमा स्थापित नहीं कराई जा सकी है। जिस बैरक में रहकर उन्होंने बंदी जीवन व्यतीत किया था, जिस स्थान पर बैठकर ‘पुष्प की अभिलाषा’ की रचना की थी-वे सभी स्थल ध्वस्त किये जा चुके है। बताया गया कि पुराने भवन धराशायी होने के कगार पर थे। इस कारण उन्हें 2018 में तोड़ कर वहां नये भवनों का निमार्ण कराया गया है।
आशा ही नहीं अपितु मुझे पूर्ण विशवास है कि जिला प्रशासन व जेल प्रशासन एक महान स्वतंत्रता सेनानी की स्मृति को पुनर्जीवित करने की दिशा में कारगर व सार्थक पहल करेगा जो हमारी आने वाली पीढ़ी के लिये प्रेरणादायक सिद्ध हो सके।
आज के मौके पर ली गई कुछ तस्वीरों को आप सबों से साझा करते हुए मुझे प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है।
धन्यवाद।”

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Kanha Tiwari

छत्तीसगढ़ के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिन्होंने पिछले 10 वर्षों से लोक जन-आवाज को सशक्त बनाते हुए पत्रकारिता की अगुआई की है।

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