
रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी में आरडीएसएस योजना यानी रिवैम्प्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम में करीब 300 करोड़ रूपये के टेंडर घोटाले का सनसनीखेज मामला सामने आया है। इसका खुलासा उस वक्त हुआ जब अफसरों ने टेंडर नियमों को ताक पर कर अपने चहेते ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए यह कारनामा किया।
बताया जा रहा है कि जिन इलाकों में आज भी बिजली नहीं पहुंची है वहाँ बिजली पहुंचाने के लिए इंस्फ्रास्ट्रक्चर दिया जाना है। जैसे एलटी लाइन, 11 केवी लाइन बिछाने के लिए राज्यभर में टेंडर निकाला गया।

दो साल पूर्व 3000 करोड़ का टेंडर जारी हुआ था। उसके बाद 300 करोड़ रूपये का अलग से टेंडर जारी हुआ है। इसी में अफसरों ने ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए जमकर भर्राशाही की।
सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार ने टेंडर प्रक्रिया के लिए जो दिशा निर्देश दिए थे। केंद्र सरकार के उन नियमों को तोड़ मरोड़कर बड़े ठेकेदारों को लाभ पहुंचाया गया। आरईसी (रूरल इलेक्टिक कॉरपोरेशन) को नोडल एजेंसी बनाया गया।
आरईसी अपने गाइडलाइंस में काम करती है। बिड कैपेसिटी को जांचने के लिए एक फॉर्मूला दिया गया। निविदा में बीड कैपेसिटी टर्न ओवर को 5 वर्ष मानकर व एन को 3 मानकर बीड कैपेसिटी की गणना करने निर्देश दिये गए थे।

बाद में टर्न ओवर को 3 वर्ष व एन को 1 वर्ष मानकर गणना निर्देश दिया गया। आरईसी के द्वारा जारी निर्देश के मुताबिक यह सही नही था। उसका क्राइटेरिया घटा दिया गया। जबकि ऐसा क्यों किया गया है इसकी जानकारी नहीं दी गई है। और जबकि उन्हें (राज्य के अफसरों को) टेंडर डॉक्यूमेंट को चेंज करने का अधिकार नहीं।
हैरानी की बात है कि जब टेंडर निकाला गया तब तक तो सब ठीक था। लेकिन टेंडर में संशोधन जारी किया गया। तब असली खेल हुआ, उसे इस तरीके से बनाया गया कि छोटे ठेकेदार उसमें हिस्सा नही ले सके। ऐसे में जो बड़े ठेकेदार पहले ही काम कर रहे थे उन्हें ही आगे काम करने का मौका दिया गया। इससे हुआ यह कि ज्यादातर ठेकेदार क्राइटेरिया कम होने से टेंडर प्रक्रिया से ही बााहर हो गये।
एक ठेकेदार ने इसकी लिखित शिकायत केंद्र सरकार के मंत्री मनोहरलाल खट्टर और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय समेत सभी उच्चाधिकारियों से की है। उन्होंने अफसरों की भूमिका की जांच की मांग की है। इसमें किसकी अनुमति से टेंडर में संशोधन किया गया।
साथ ही आरोप है कि इससे ठेकेदारों की संख्या कम होने से सरकार को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ेगा। जबकि अफसरों की मंशा खुद की झोली भरने की है।
सूत्रों के मुताबिक मुख्यअभियंता परियोजना ने 4 पर्सेंट कमीशन के चक्कर में टेंडर को मैनेज करने का प्रयास किया। और कुछ ही लोगों को इसका लाभ देकर शासन को आर्थिक चोट पहुंचाने की कोशिश की।
बहरहाल अब इस मामले में दस्तावेज के साथ शिकायत हो चुका है। आने वाले दिनों में यदि सही तरीके से जांच होगी तो अफसरों के काले कारनामों का खुलासा होगा।


