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अफ़सर का सफ़र,Nyaydhani की नज़र, कलम की ताक़त,कुर्सी की डगर…इस बार पढ़िए…

संपादक कान्हा तिवारी की कलम से

How well do you know IPS Vijay Kumar Pandey?

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साहस की पहचान, सेवा की मिसालविजय पांडेय का जीवन परिचय

राज्य प्रशासनिक सेवा से आईपीएस बनने वाले विजय कुमार पांडेय उन गिने-चुने अफसरों में शामिल हैं, जिन्होंने जिम्मेदारियों को केवल निभाया नहीं, बल्कि अपने काम से नई मिसाल कायम की। वर्तमान में वे जांजगीर-चांपा के एसपी हैं और बतौर एसपी यह उनका पहला जिला है।

वो मिट्टी से निकले हैं, मगर धूल नहीं हैं
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के बाम्हनपाठ गांव में 29 जुलाई 1974 को जन्मे विजय कुमार पांडेय की कहानी किसी साधारण जीवन की कथा नहीं, बल्कि उस असाधारण चेतना की यात्रा है जो विषम परिस्थितियों में भी लक्ष्य की स्पष्टता नहीं खोती। एक सामान्य किसान परिवार में जन्मे विजय के भीतर यह स्पष्ट था कि जीवन की दिशा उसे परंपरा की सीमाओं से बहुत आगे तक ले जाएगी।

उनके दादाजी की सोच थीहर बेटा पढ़े, हर बेटी आगे बढ़े।यह विचार विजय के व्यक्तित्व की नींव बना। पिता परिवहन विभाग में ट्रांसपोर्ट सबइंस्पेक्टर थे, जिनके तबादलों के साथ ही विजय की शिक्षा रायपुर से लेकर राज्य के कई अंचलों तक फैली। 1992 में PET से चयनित होकर जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज पहुँचे, लेकिन दिल में प्रशासनिक सेवा का सपना धड़क रहा था। 1996 में बीई की डिग्री लेने के बाद विजय ने बिलासपुर लौटकर MPPSC की तैयारी शुरू की।

संघर्ष की गंध लिये मंज़िल की ओर
1999
में अविभाजित मध्यप्रदेश में PSC में 17वीं रैंक के साथ चयनित हुए। डीएसपी के रूप में पुलिस जीवन की शुरुआत की। जवाहरलाल नेहरू पुलिस अकादमी, सागर में प्रशिक्षण लिया और फिर जब मध्यप्रदेश विभाजित होकर छत्तीसगढ़ बना, तब उन्होंने अपने नए राज्य में सेवा देने की इच्छा जताई।
रायपुर जिले में प्रशिक्षण अवधि के बाद प्रशिक्षु थाना प्रभारी के रूप में उन्हें पहली पोस्टिंग सारंगढ़ बिलाईगढ़ जिले के सरसीवा थाने में मिली।

जब जंगलों में आग बनी थी वर्दी
2003 से 2007 तक माओवादी गतिविधियों के गढ़ किरंदुल में तैनाती ने विजय पांडेय को उस छवि में गढ़ा जिसे आज पूरा पुलिस बल एक उदाहरण मानता है। कटेकल्याण मुठभेड़ (2005) में दो वर्दीधारी नक्सलियों को मार गिराना उनकी पहली बड़ी कार्रवाई थी-एक ऐसी भिड़ंत जिसने माओवादियों की शैली और संरचना को उजागर किया।
उस समय नक्सली इलाकों की तैनाती को ‘दंड’ समझा जाता था, पर पांडेय के लिए यह अवसर था-‘प्रशासनिक कर्तव्य के असली इम्तिहान’ का।

आदिवासी अंचलों में पुनर्वास की रोशनी

2023 में नक्सली हमले में जहाँ 24 जवान शहीद हुए थे , कभी इस जगह विजय कुमार पांडेय
तैनाती थी तब भी वे भी सीधे नक्सलियों से लोहा लिया करते थे।बस्तर अंचल में विजय कुमार
पांडेय की कार्यशैली आज भी लोगों के ज़ेहन में ताज़ा है। उन्होंने जो विश्वास और छवि वहाँ छोड़ी, वह अमिट बन गई है। साथ ही उन्होंने जन-विश्वास की दीवार भी खड़ी की।

आदिवासी अंचलों में पुलिस का विश्वास जगाया

आदिवासी गांवों को दोबारा बसाया, बस्तियों में पुलिस चौकियाँ खोलीं और इंसानी रिश्तों को बंदूक से आगे ले जाकर संवाद में बदला। वे उन चंद अधिकारियों में गिने जाते हैं, जिनकी पहचान सिर्फ़ वर्दी या पद से नहीं, बल्कि ज़मीन से जुड़ी कार्यशैली से होती है। उन्हें दफ्तर की कुर्सी पर बैठकर आदेश देना नहीं भाता — वे जनसंवाद और मौजूदगी में भरोसा रखते हैं। यही कारण है कि जनता उन्हें एक जिम्मेदार और जमीनी अफसर के रूप में जानती है। ग्रामीण इलाकों में आज भी उनका नाम सुनते ही बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक के चेहरे खिल उठते हैं।

  शैलचित्रों की दुर्लभ श्रृंखला का गढ़ रायगढ़

राजनांदगांव में अनुशासन की मजबूत पटकथा

राजनांदगांव में सीएसपी रहते विजय कुमार पांडे ने ट्रैफिक व्यवस्था को नई दिशा दी। महाराष्ट्र सीमा से सटे इस संवेदनशील शहर में हर वर्ष निकलने वाले विशाल गणेश विसर्जन जुलूस को शांतिपूर्ण और नियंत्रित रखने की जो परंपरा आज दिखती है, वह उनकी रणनीतिक सोच, सख़्त निगरानी और मानवीय पुलिसिंग का परिणाम है। भीड़ में अनुशासन और उत्सव में सौहार्द का जो संतुलन उन्होंने स्थापित किया, वह आज भी स्थानीय लोगों की स्मृतियों में जीवित है।

झीरम घाटी से STF तक का शौर्यपथ
झीरमघाटी माओवादी हमले के बाद उन्हें जगदलपुर भेजा गया, जहाँ उन्होंने नक्सल नेटवर्क को तोड़ा और सैकड़ों माओवादियों का आत्मसमर्पण करवाया, उन्हें पुनर्वास दिलवाया और मुख्यधारा से जोड़ा। दुर्ग में एडिशनल एसपी के रूप में, और फिर STF प्रमुख के तौर पर उन्होंने वह कर दिखाया जिसे प्रशासनिक तौर पर असंभव माना जाता था-बिखरे STF बल को एकजुट कर नक्सली दबाव क्षेत्र में निर्णायक सफलताएँ अर्जित की।

चुन्नू गर्ग का एनकाउंटर-जब अपराध काँपा
कोरबा में जब सिपाही किरीतराम पटेल की हत्या कुख्यात अपराधी चुन्नू गर्ग ने की, तब विजय पांडेय के नेतृत्व में हुई मुठभेड़ ने यह स्पष्ट संदेश दिया-‘पुलिस चुप नहीं रहेगी।’ इस कार्रवाई ने न केवल अपराधियों में भय पैदा किया, बल्कि कानून की सर्वोच्चता को भी सिद्ध किया।

17 दिन, एक पहाड़ी, और विजय का नाम


बीजापुर के कर्रेगुट्टा पहाड़ी में 17 दिन तक चले ऑपरेशन में विजय पांडेय की कमान ने नक्सली गढ़ को धराशायी किया। बस्तर, राजनांदगांव, गरियाबंद और धमतरी जैसे जिलों में उनकी अगुवाई में चलाए गए अभियानों ने नक्सलियों को निर्णायक क्षति पहुंचाई।

एक सोच, एक प्रतीक, एक अफसर


2024
में पांडेय को भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में प्रमोट किया गया, और 2016 बैच में शामिल किया गया। जांजगीरचांपा में उनकी पहली IPS पोस्टिंग हुई। उनके नेतृत्व में जिले की कानून व्यवस्था, सामुदायिक पुलिसिंग और अपराध नियंत्रण के नए प्रतिमान स्थापित हुए।

राष्ट्रीय स्तर पर मिला सेवा का सम्मान

एसटीएफ बघेरा में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के रूप में कार्य करते हुए विजय कुमार पांडेय की साहसिक और अनुकरणीय सेवाओं को वर्ष 2022 में देश के सर्वोच्च स्तर पर मान्यता मिली। भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हेंसराहनीय सेवा पदकसे सम्मानित किया। पदक प्रदान करते हुए राष्ट्रपति ने कहा

मैं, भारत की राष्ट्रपति, द्रौपदी मुर्मू, आपकी सराहनीय सेवा को मान्यता देते हुए आपको पुलिस पदक प्रदान करती हूँ।

यह सम्मान केवल उनकी निष्ठा और समर्पण का प्रमाण है, बल्कि छत्तीसगढ़ पुलिस बल के प्रति उनकी जवाबदेही और प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है।

जीवनसाथी, संगिनी भी अफसर
उनकी पत्नी भावना पांडे स्वयं राज्य पुलिस सेवा की अधिकारी हैं। यह जोड़ी केवल सेवा में समर्पित है, बल्कि सार्वजनिक जीवन में आदर्श दंपत्ति की मिसाल भी।

विजय पांडेयनाम नहीं, निष्ठा का पर्याय हैं।
वे उस यथार्थ के प्रतिनिधि हैं जहाँ वर्दी धारण करना केवल दायित्व नहीं, बल्कि धड़कनों की भाषा है।

और जब शब्द कम पड़ जाएं, तब सिर्फ एक पंक्ति पर्याप्त होती है विजय पांडे जैसे अफसर को परिभाषित करने के लिए:

वृक्ष हों भले खड़े, हों घने, हों बड़े,
एक पत्रछाँह भी मांग मत!
मांग मत, मांग मत, मांग मत!”

‘अग्निपथ’ से हरिवंश राय बच्चन

विजय पांडेय ने यही तो किया
ना छांव मांगी, ना शांति का आग्रह किया।
वो चलते रहे उस अग्निपथ पर, जिसे छत्तीसगढ़ की पुलिस सेवा मेंविजयपथकहा जाएगा
जहाँ हर कदम पर चुनौती थी, पर हर पड़ाव पर जीत भी।

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Kanha Tiwari

छत्तीसगढ़ के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिन्होंने पिछले 10 वर्षों से लोक जन-आवाज को सशक्त बनाते हुए पत्रकारिता की अगुआई की है।

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