
न्यायधनी ब्यूरो | बिलासपुर | अपडेटेड: 13 जुलाई 2022
“यहां योग्यता नहीं, ‘जुगाड़’ चलता है — ईमानदारी की कीमत सस्पेंशन और भ्रष्टाचार की इनाम डीईओ की कुर्सी!”
छत्तीसगढ़ के शिक्षा विभाग में एक बार फिर नैतिक पतन की पराकाष्ठा देखने को मिली है। जिस अफसर को विधवा शिक्षिका से रिश्वत मांगने और शिक्षक पोस्टिंग में गड़बड़ियों के आरोप में पद से हटाया गया था, उसे अब पदोन्नति देकर बिलासपुर जिले का जिला शिक्षा अधिकारी (D.E.O.) बना दिया गया है।
यह नियुक्ति न केवल विभागीय प्रक्रिया पर सवाल उठाती है, बल्कि उन हजारों शिक्षकों और कर्मचारियों के मन में भी गहरा आक्रोश पैदा कर रही है, जो आज भी अपने हक़ के लिए फाइलें घसीट रहे हैं।
जनदर्शन में दर्ज हुई थी विधवा शिक्षिका की शिकायत, जांच में रिश्वतखोरी का आरोप सिद्ध
मार्च 2025 में शिक्षिका नीलम भारद्वाज ने जनदर्शन में शिकायत की थी कि उनके पति (शिक्षक पुष्कर भारद्वाज) के निधन के बाद लंबित वेतन और अर्जित अवकाश की राशि जारी करने के बदले कोटा बीईओ विजय टांडे और लिपिक एकादशी पोर्ते ने ₹1.34 लाख रिश्वत की मांग की थी।
तत्कालीन कलेक्टर अवनीश शरण ने मामले को गंभीरता से लिया और तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की। जांच में यह सिद्ध हुआ कि रिश्वत की मांग की गई थी, और जो राशि शिक्षिका को मिलनी थी, वह विजय टांडे ने खुद के खाते में जमा करवा ली थी।
तथ्य: शिक्षिका के ₹1.34 लाख की राशि दिसंबर 2024 से मार्च 2025 तक बीईओ के निजी खाते में जमा रही।
जांच के बाद कार्रवाई तो हुई, पर अधूरी – अब डीईओ की कुर्सी का ‘तोहफा’
जांच में दोषी पाए जाने पर लिपिक को निलंबित किया गया और विजय टांडे को तत्काल प्रभाव से बीईओ पद से हटाकर एक स्कूल में प्राचार्य के रूप में अटैच किया गया। साथ ही विभागीय जांच के निर्देश भी दिए गए, लेकिन हैरानी की बात है कि वह जांच आगे नहीं बढ़ी।
अब उसी अफसर को 10 जुलाई को जारी आदेश में बिलासपुर जिले का नया जिला शिक्षा अधिकारी बना दिया गया है।
इस फैसले के बाद शिक्षक संगठनों में आक्रोश है और व्हाट्सएप ग्रुपों में गड़बड़ियों से जुड़े पुराने दस्तावेज तेजी से वायरल हो रहे हैं।
पुराने ट्रांसफर घोटाले में भी रहा है नाम, फर्जी आदेश जारी कर शिक्षक को गलत ब्लॉक में भेजा
विजय टांडे का नाम 2022 के शिक्षक स्थानांतरण घोटाले में भी सामने आया था। शासकीय शिक्षक शैलेश यादव का स्थानांतरण कोटा ब्लॉक से बिल्हा ब्लॉक के धौराभांटा स्कूल में हुआ था। लेकिन बीईओ रहते विजय टांडे ने नियमविरुद्ध आदेश जारी कर उन्हें कोटा ब्लॉक के ही धौराभांटा स्कूल में ज्वाइन करवा दिया, जहां कोई पद रिक्त नहीं था।
इतना ही नहीं, शिक्षक का वेतन पुराने स्कूल से दो साल तक जारी करवाया गया, जिससे शासन को वित्तीय नुकसान भी हुआ।
क्या इसी को कहते हैं ‘प्रशासनिक पुरस्कृति’?
यह पहला मामला नहीं है जब दागी अफसर को इनाम मिला हो, लेकिन यह उदाहरण बेहद चौंकाने वाला और शर्मनाक है क्योंकि इसमें मामला संवेदनशील विधवा शिक्षिका का था और आरोप गंभीर वित्तीय भ्रष्टाचार के थे।
अब तक न तो विभागीय जांच पूरी हुई, न किसी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई — उल्टा अब टांडे को ज़िला शिक्षा विभाग की सबसे बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी गई है।
क्या छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार अब ‘प्रशासनिक योग्यता’ बन गया है?
क्या छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार अब ‘प्रशासनिक योग्यता’ बन गया है?
यह मामला छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था में जड़ तक घुसे भ्रष्टाचार, अपारदर्शिता और राजनैतिक संरक्षण की ओर साफ़ इशारा करता है। यदि यह नियुक्ति वापस नहीं ली जाती, तो यह शिक्षा व्यवस्था की साख को पूरी तरह बर्बाद कर देगा।
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