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डिजिटल इंडिया में बाल्टी लेकर दौड़ते बच्चे,सरकारी छात्रावास में एक साल से नहीं पानी की बूंद,प्रशासन देख रहा तमाशा, भविष्य बना रहा प्यासा!

जहां सरकारें बच्चों के उज्जवल भविष्य की बातें करती हैं, वहीं ज़मीनी सच्चाई ये है कि कुछ छात्रावासों में बच्चे पानी की एक बाल्टी के लिए दरदर भटक रहे हैं। एक साल से जलसंकट झेल रहे इन नौनिहालों के लिए कोई टैंकर आता है, कोई मरम्मत दलमानो सरकारी सिस्टम ने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया हो। शिकायतों के अम्बार के बाद भी जिम्मेदार अफसर चुप हैं, और बच्चे प्यासे रहकर गंदा पानी पीने को मजबूर।

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क्या यह वहीसुशासनहै, जिसकी बातें मंचों से होती हैं? क्या यही है वोडिजिटल इंडिया”, जहां बच्चे बाल्टी लेकर मोहल्लों में पानी मांगते घूम रहे हैं? ये हालात ना सिर्फ शर्मनाक हैं, बल्कि प्रशासनिक संवेदनहीनता की सबसे तीखी मिसाल भी हैं।

रतनपुर/बिलासपुर|
न्यायधानी.कॉम, स्कूल जाने से पहले मोहल्ले में पानी मांगने जाते हैं… कई बार बाल्टी लेकर लौटते हैं, बिना पानी के। कोई गुस्सा हो जाता है, कोई टाल देता है… रोज़ का यही हाल है।” — यह मासूम आवाज़ किसी गांव के गरीब घर की नहीं, बल्कि सरकार के आदिवासी छात्रावास में रह रहे बच्चों की है।

बिलासपुर जिले के रतनपुर में स्थित प्रीमैट्रिक अनुसूचित जाति बालक छात्रावास में एक साल से पानी की व्यवस्था ठप है, और शासनप्रशासन अब तक आंखें मूंदे बैठा है। 50 से ज्यादा बच्चे यहां पढ़ाई के लिए रह रहे हैं, लेकिन उन्हें पीने का पानी मिल रहा है, नहाने का। मजबूरी में वे मोहल्ले के घरों से पानी मांगते हैंऔर यही उनकी रोज़मर्रा की दिनचर्या बन गई है।

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जब देश और प्रदेश डिजिटल युग की बात कर रहे हैं, वहीं हॉस्टल के बच्चे बाल्टी लेकर पानी के लिए भटक रहे हैंऔर जिम्मेदार अफसर फाइलों के नीचे इस सच्चाई को दबाए बैठे हैं।

नल नहीं, बाल्टी ही है सहारा

बच्चों को दैनिक कार्योंनहाने, पीने, कपड़े धोने, शौचालय में इस्तेमाल के लिएमोहल्ले के घरों से बाल्टी में पानी ढोकर लाना पड़ता है। कभी मोहल्ले वाले सहयोग करते हैं, तो कभी बच्चों को दुत्कार भी झेलनी पड़ती है। गर्मी के दिनों में स्थिति और भी विकट हो जाती है।

पढ़ाई छोड़, बाल्टी उठाने को मजबूर भविष्य निर्माता

रोज़मर्रा की इस परेशानी ने बच्चों की पढ़ाई और स्वास्थ्य पर गहरा असर डाला है। गंदा पानी पीने से कई बच्चों को डायरिया, पेट दर्द और स्किन इंफेक्शन जैसी समस्याएं हो चुकी हैं।

प्रशासन को नहीं है फिक्र, वार्डन और अफसर भी मौन

छात्रावास प्रबंधन की ओर से कई बार वार्डन और विभागीय अधिकारियों को इसकी सूचना दी गई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। तो टैंकर की सुविधा दी गई, कोई वैकल्पिक पानी का स्रोत जोड़ा गया। एक साल से बच्चे उसी हाल में जी रहे हैं, जैसे किसी उपेक्षित बस्ती में होंबिना जल, बिना विकल्प।

डिजिटल इंडिया के दौर में बाल्टीयुग में जीते बच्चे

जहां सरकार स्मार्ट क्लास, डिजिटल इंडिया और बेहतर शिक्षा की बातें करती है, वहीं यह छात्रावास बच्चों को मूलभूत सुविधाएं तक देने में असफल है। इन बच्चों को पढ़नेलिखने की जगह रोज़ पानी लाने की चिंता सताती है।

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Kanha Tiwari

छत्तीसगढ़ के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिन्होंने पिछले 10 वर्षों से लोक जन-आवाज को सशक्त बनाते हुए पत्रकारिता की अगुआई की है।

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