सांसद की लेट लतीफी से राज्योत्सव में उपस्थित जनता में भारी नाराजगी,पांच घंटे देरी से पहुंचीं मुख्य अतिथि सांसद जांगड़े,

खाली कुर्सियों की उपस्थिति में हुआ गौरवशाली जिला स्तरीय राज्योत्सव के शुभारंभ समारोह का आगाज,
चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधि का रवैया आम लोगों के प्रति कैसे उदासीन हो जाता है इसका उदाहरण आज़ जांजगीर में आयोजित जिला स्तरीय राज्योत्सव में देखने को मिला जब समारोह के साथ मुख्य अतिथि सांसद कमलेश जांगड़े राज्योत्सव स्थल पर अपने निर्धारित समय से करीब पांच घंटे बाद पहुंची।
अत्यधिक विलंब से सांसद के पहुंचने के कारण जब कार्यक्रम का आगाज हुआ तब खाली कुर्सियां कार्यक्रम ही इस गौरवशाली आयोजन की शोभा बढ़ा रही थीं।

जांजगीर–चांपा। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन की 25वीं वर्षगांठ पर जांजगीर–चांपा में आयोजित जिला स्तरीय रजत जयंती राज्योत्सव (2 से 4 नवम्बर 2025) में सांसद कमलेश जांगड़े के रवैये ने लोगों में गहरी नाराज़गी पैदा कर दी। जनता जहां सुबह से कार्यक्रम स्थल पर बैठी इंतजार करती रही, वहीं सांसद महोदया करीब चार घंटे की देरी से पहुंचीं।
मुख्य अतिथि के रूप में राजस्व मंत्री टंक वर्मा को बुलाया गया था, लेकिन वे किसी करण से नहीं हुआ तब सांसद कमलेश जांगड़े को मुख्य अतिथि बनाया गया। लेकिन उनकी लापरवाही और देर से पहुंचने के कारण पूरा कार्यक्रम जनता के बिना ही शुरू करना पड़ा।
सुबह से दूर–दराज़ के गांवों से आए लोग धूप में इंतजार करते थक गए और निराश होकर लौट गए। जबतक सांसद पहुंचीं, तबतक मैदान में सिर्फ खाली कुर्सियाँ और ऊंघते अधिकारी बचे थे।
जनता के बीच चर्चा का विषय यही रहा — क्या सांसद का पद अब इतना बड़ा हो गया कि लोग घंटों इंतजार करते रहें और वे चाहें तब आएं?
रजत जयंती जैसे गरिमामय अवसर पर यह व्यवहार जनता के सम्मान के खिलाफ माना जा रहा है।

सांसद की देर और प्रशासन की उदासीनता ने कार्यक्रम की गरिमा को पूरी तरह धूमिल कर दिया। न सजावट में चमक थी, न माहौल में उत्सव का रंग। मंच पर भाषण देने वालों की भीड़ जरूर थी, मगर जनता गायब थी।
राज्य के गौरव दिवस पर जनता को निराश कर सांसद कमलेश जांगड़े ने यह साफ कर दिया कि सत्ता का अहंकार जब सेवा की भावना पर हावी हो जाए, तो उत्सव नहीं, अपमान जन्म लेता है।
जांजगीर का राज्योत्सव अब उत्सव नहीं, जनता की उपेक्षा का प्रतीक बन गया है।
कार्यक्रमों तक सीमित सांसद — जांजगीर-चांपा में बढ़ा जनअसंतोष”
जांजगीर-चांपा लोकसभा की जनता इन दिनों अपनी ही सांसद कमलेश जांगड़े से खासा नाराज़ है। वजह साफ है — सांसद बनने के बाद उनका अपने संसदीय क्षेत्र से लगभग नाता ही टूट गया है। आमजन की जुबान पर एक ही बात है, “हमारे सांसद को अब ढूंढना पड़ता है!”
लोगों का कहना है कि कमलेश जांगड़े अपने गृह जिले को ज्यादा तवज्जो देती हैं, जबकि जांजगीर–चांपा जिले में उनकी मौजूदगी नाममात्र की रह गई है। सांसद का यहां आगमन भी तब होता है, जब कोई औपचारिक कार्यक्रम या मंच साझा करने का अवसर सामने आता है। बाकी समय जनता उनकी सिर्फ तस्वीरों में झलक पाती है।

जनता में यह धारणा गहराई तक बैठ चुकी है कि सांसद अब जनता से दूर, सत्ता के गलियारों में ज्यादा सक्रिय हैं। परिणामस्वरूप, लोगों में निराशा और असंतोष बढ़ता जा रहा है। कई मतदाता खुले शब्दों में कह रहे हैं — “जनप्रतिनिधि अगर जनता की चौखट तक न पहुंचे, तो जनादेश का क्या मतलब रह जाता है?”
अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या सांसद कमलेश जांगड़े अपने ही क्षेत्र की जनता से टूटते इस जनसंपर्क को दोबारा जोड़ पाएंगी, या फिर जांजगीर–चांपा की जनता आने वाले चुनाव में इस ‘दूरी’ का जवाब देगी?
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