52 ब्राह्मण विधायकों की बैठक: सत्ता के गलियारों में क्यों मची हलचल?

52 ब्राह्मण विधायकों की बैठक
सत्ता गलियारों में मची हलचल
सहभोज या गुप्त राजनीतिक रणनीति?
कौन–कौन था मौजूद और क्यों?
ब्राह्मण समाज की ताकत का प्रदर्शन
विधायकों ने क्या साझा की अपनी चिंताएं
सियासी गलियारों में उठे कई सवाल
लखनऊ। 23 दिसंबर की शाम लखनऊ में एक ऐसी बैठक हुई जिसने सत्ता गलियारों में चर्चा का नया रुख दे दिया। इस बैठक में बीजेपी और अन्य पार्टियों के 52 ब्राह्मण विधायक और एमएलसी शामिल थे। यह बंद कमरे की बैठक राजनीतिक और सामाजिक दोनों ही दृष्टियों से सुर्खियों में रही।

कुशीनगर के विधायक पीएन पाठक के आवास पर आयोजित इस डिनर मीटिंग में बीजेपी के अलावा दूसरी पार्टियों के ब्राह्मण नेता भी मौजूद थे। सूत्रों का कहना है कि यह बैठक ब्राह्मण समाज के राजनीतिक रसूख और सामूहिक एकजुटता को दर्शाने की कोशिश थी।
सत्ता पक्ष के भीतर नाराजगी?
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कुछ ब्राह्मण विधायक और नेता संगठन और शासन में अपनी उपेक्षा महसूस कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि उन्हें वह तवज्जो नहीं मिल रही है जिसके वे हकदार हैं। यही कारण माना जा रहा है कि हाशिए पर जाने के डर ने इन विधायकों को एक मंच पर इकट्ठा होने के लिए मजबूर किया। हालांकि सार्वजनिक तौर पर किसी ने नाराजगी को सीधे तौर पर व्यक्त नहीं किया।
विधायक रत्नाकर मिश्रा का दावा: “सिर्फ चाय और गपशप”
मिर्जापुर नगर से विधायक रत्नाकर मिश्रा ने इस बैठक को लेकर कहा कि यह केवल एक सामाजिक मिलन था। उन्होंने स्पष्ट किया, “हमने साथ बैठकर खाया–पिया और बातचीत की। इसमें कोई राजनीतिक चर्चा नहीं हुई। हम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में पूरी तरह सुरक्षित हैं और आगामी चुनाव भी उन्हीं के नेतृत्व में लड़ेंगे। चर्चा केवल समाज में संस्कार और शिक्षा के विषय पर हुई। मुख्यमंत्री को लेकर कोई बात नहीं हुई।”
बीजेपी विधायक अनिल त्रिपाठी की इनसाइड स्टोरी
बैठक में शामिल बीजेपी विधायक अनिल त्रिपाठी ने बताया कि यह कार्यक्रम शाम 7 बजे से रात 11–12 बजे तक चला। उन्होंने कहा कि यह सहभोज कार्यक्रम था जिसमें सभी आमंत्रित थे। बैठक में लगभग 40 से अधिक विधायक मौजूद थे, जिनमें सत्ता पक्ष के साथ–साथ विपक्ष के विधायक भी शामिल थे।
अनिल त्रिपाठी ने कहा, “सरकार द्वारा ब्राह्मणों को अपमानित नहीं किया जाता। आज समाज के कुछ वर्ग ऐसे हैं जो ब्राह्मणों के खिलाफ भड़काने का काम कर रहे हैं। यह अपमानजनक व्यवहार अब बर्दाश्त से बाहर है।”
सपा द्वारा इसे सरकार के खिलाफ गुटबाजी बताने पर अनिल त्रिपाठी ने साफ किया कि इसे राजनीतिक नजरिए से देखना गलत है।
सियासी हलचल या सामाजिक मिलन?
हालांकि विधायकों का कहना है कि यह केवल पारिवारिक और सामाजिक मिलन था, लेकिन विधानसभा सत्र के दौरान इतनी बड़ी संख्या में एक ही जाति के विधायक एकत्रित होना कई सवाल खड़े करता है।
जानकारों का मानना है कि 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले अपनी बार्गेनिंग पावर बढ़ाने के लिए यह एक सोची–समझी रणनीति हो सकती है। 2026 के शुरू में होने वाले पंचायत चुनाव से शुरू होने वाली चुनावी सरगर्मी 2027 के विधानसभा चुनाव तक पहुंचेगी। यही वजह है कि ब्राह्मण नेताओं की इस बैठक की चर्चा दिल्ली तक जा रही है।
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