सभापति चुनाव में शर्मनाक हार या भाजपा के भीतर गहरी साजिश ? पार्षदों को कमरे में बंद करने का सामने आ गया VIDEO

कोरबा। नगर पालिका निगम कोरबा के सभापति चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मिली करारी शिकस्त अब पार्टी के अंदरूनी घमासान की पोल खोल रही है। चुनाव में भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी हितानंद अग्रवाल को महज 18 मत मिले, जबकि 44 भाजपा पार्षद मौजूद थे। हैरानी की बात यह है कि पार्टी ने अपने ही प्रत्याशी को प्रस्तावक और समर्थक तक नहीं दिया! सवाल उठ रहा है कि यह सिर्फ बगावत थी या किसी बड़े नेता के इशारे पर रची गई साजिश? इस शर्मनाक पराजय ने भाजपा संगठन की कमजोरियों को उजागर कर दिया है और केंद्रीय नेतृत्व के लिए गहरी चिंता खड़ी कर दी है।
पार्षदों को कमरे में बंद करने का वीडियो वायरल, साजिश के संकेत ?
एक सनसनीखेज वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें भाजपा कार्यालय का गेट भीतर से बंद किया जा रहा है। वीडियो में साफ दिख रहा है कि जैसे ही हितानंद अग्रवाल बाहर निकलते हैं, भाजपा जिला मीडिया प्रभारी मनोज मिश्रा भीतर से दरवाजा बंद कर देते हैं, जिससे अंदर कई पार्षद और नेता कैद हो जाते हैं। बाहर खड़े भाजपाइयों के चेहरे पर खुशी साफ नजर आ रही है, लेकिन अब इसे लेकर झूठा प्रचार किया जा रहा है कि पार्षद नाराज थे।
इस दौरान 44 भाजपा पार्षद अंदर थे, लेकिन चुनाव परिणाम आने पर हितानंद को सिर्फ 18 वोट मिले। सवाल यह है कि इतने पार्षद अगर भीतर थे, तो उन्होंने वोट क्यों नहीं दिया? क्या किसी ने दबाव बनाया? क्या भीतर कोई सौदेबाजी हुई?
चुनाव प्रक्रिया पर गंभीर सवाल, नामांकन में भी खेल ?
सूत्रों के मुताबिक, भाजपा पार्षद सुबह 9:30 बजे से ही पार्टी कार्यालय में मौजूद थे, लेकिन अधिकृत प्रत्याशी का नाम ऐन वक्त पर घोषित किया गया। नामांकन भरने के लिए संगठन की ओर से कोई मदद नहीं की गई, जिससे हितानंद को अपने निजी संपर्कों के जरिए दो भाजपा पार्षदों से प्रस्तावक-समर्थक बनवाने पड़े। आखिर ऐसा क्यों हुआ? क्या पार्टी जानबूझकर अपने ही प्रत्याशी को हरवाना चाहती थी?
चौंकाने वाली बात यह है कि इस दौरान पर्यवेक्षक पुरंदर मिश्रा, श्रम मंत्री लखनलाल देवांगन, प्रदेश मंत्री विकास महतो, जिलाध्यक्ष मनोज शर्मा और अन्य वरिष्ठ नेता मौजूद थे, लेकिन कोई भी प्रत्याशी के समर्थन में सामने नहीं आया। यह निष्क्रियता क्या संकेत देती है?
कौन चला रहा था खेल, किसकी थी असली योजना?
प्रचार किया जा रहा है कि भाजपा पार्षदों ने हितानंद को नकारकर नूतन सिंह ठाकुर को अपना प्रत्याशी बना लिया, लेकिन अगर ऐसा था, तो नूतन सिंह ठाकुर के प्रस्तावक और समर्थक भाजपा के पार्षद क्यों नहीं बने? आखिर क्यों दो निर्दलीय पार्षद—सीता पटेल और बहत्तर सिंह—को यह भूमिका निभानी पड़ी? यह साफ इशारा करता है कि भीतर से भाजपा के ही बड़े नेता इस साजिश को अंजाम दे रहे थे।
भाजपा के दिग्गज क्यों बने मूकदर्शक?
मतदान के दौरान भाजपा के कई दिग्गज नेता—श्रम मंत्री लखनलाल देवांगन, महापौर संजूदेवी राजपूत, प्रदेश मंत्री विकास महतो, पूर्व महापौर जोगेश लाम्बा और पूर्व सभापति अशोक चावलानी—मौजूद थे। लेकिन किसी ने भी अधिकृत प्रत्याशी के लिए पार्षदों से वोट नहीं मांगा। क्यों? क्या यह सुनियोजित रणनीति थी?
यहां तक कि नूतन सिंह ठाकुर मतदान के समय भाजपा का चुनाव चिन्ह अंकित साफा पहने हुए थे, जिसे हटाने के लिए पर्यवेक्षक ने कहा, लेकिन किसी भी वरिष्ठ पदाधिकारी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। आखिर क्यों?
व्हिप क्यों नहीं जारी किया गया? कौन था असली गुनहगार?
हर पार्टीगत चुनाव में व्हिप जारी किया जाता है, लेकिन इस बार भाजपा ने अपने पार्षदों को किसी अधिकृत प्रत्याशी के पक्ष में मतदान के लिए कोई निर्देश नहीं दिया। क्यों?
सूत्रों के अनुसार, पार्टी कार्यालय में ही पार्षदों को नूतन सिंह ठाकुर के पक्ष में मतदान करने का स्पष्ट आदेश दिया गया। यहां तक कि सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर संदेश भेजकर बताया गया कि शीर्ष नेतृत्व की सहमति इसी पर बनी है। अब सवाल उठता है—क्या शीर्ष नेतृत्व को भी गुमराह किया गया?
भाजपा नेतृत्व के लिए कड़ा इम्तिहान, निष्पक्ष जांच की मांग
यह हार सिर्फ एक चुनावी असफलता नहीं, बल्कि भाजपा के भीतर छिपे गद्दारों की साजिश का नतीजा प्रतीत होती है। यदि भाजपा नेतृत्व इसे हल्के में लेता है, तो आने वाले चुनावों में पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। अब सवाल यह है—क्या भाजपा दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करेगी या फिर इसे भी अंदर ही अंदर दबा दिया जाएगा?
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