
मुख्य सूचना आयुक्त की कुर्सी पर ‘फैंटम आईपीएस’? अशोक जुनेजा के नाम पर मुहर तय, राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज
रायपुर | 26 मई |
छत्तीसगढ़ के पूर्व पुलिस महानिदेशक (DGP) अशोक जुनेजा की मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) पद पर संभावित नियुक्ति ने राज्य के प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का नया दौर छेड़ दिया है। यह संभावित नियुक्ति एक सामान्य प्रशासनिक फेरबदल से कहीं अधिक प्रतीकात्मक मानी जा रही है — एक ऐसा फैसला, जो पारदर्शिता, जवाबदेही और राजनीतिक संतुलन जैसे मुद्दों को नए सिरे से केंद्र में ला रहा है।

पत्रकार मुकेश एस. सिंह की पोस्ट से मचा हड़कंप
दैनिक अंग्रेजी अखबार के वरिष्ठ समाचार संपादक और खोजी पत्रकार मुकेश एस. सिंह ने सोमवार को सोशल मीडिया मंच X (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट साझा कर यह जानकारी सार्वजनिक की कि जुनेजा का नाम CIC के लिए अंतिम रूप से चुना जा चुका है और केवल औपचारिक अधिसूचना की प्रतीक्षा है। इस पोस्ट ने कुछ ही घंटों में बड़ी राजनीतिक प्रतिक्रिया को जन्म दिया।
पत्रकार मुकेश एस. सिंह की पोस्ट 👇
https://x.com/truth_finder04/status/1926953644382888191?s=46
सिंह ने इसे “फैंटम आईपीएस की ताजपोशी” करार दिया —
एक ऐसा शब्द जिसे प्रशासनिक गलियारों में जुनेजा की लंबे समय तक रहस्यमयी और सार्वजनिक रूप से निष्क्रिय छवि से जोड़ा जा रहा है।
अशोक जुनेजा: एक लंबा और टिकाऊ कार्यकाल
1989 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी अशोक जुनेजा छत्तीसगढ़ राज्य के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले डीजीपी रहे हैं। कांग्रेस सरकार ने उन्हें नवंबर 2021 में कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किया था और अगस्त 2022 में पूर्णकालिक नियुक्ति दी। इसके बाद, सेवानिवृत्ति की आयु पार करने के बावजूद उन्हें दो बार सेवा विस्तार मिला — भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद भी।
यह प्रशासनिक निरंतरता अपने साथ अनेक राजनीतिक संकेत और प्रश्न लेकर आई है।
भाजपा में भी असंतोष
सूत्रों के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी के भीतर ही इस प्रस्तावित नियुक्ति को लेकर असहमति के स्वर उभरने लगे हैं। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जुनेजा को कांग्रेस शासन के दौरान संवेदनशील जांचों में नरमी बरतने के लिए जाना जाता था।
“कई बार हमने संगठन में यह मुद्दा उठाया कि जुनेजा की भूमिका ईडी और आयकर विभाग की जांचों में संदिग्ध रही है। इसके बावजूद, वे कुर्सी पर जमे रहे और अब पारदर्शिता के प्रहरी बनने जा रहे हैं — यह चिंताजनक है,” उन्होंने कहा।
पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह
पत्रकारिता जगत और सूचना के अधिकार (RTI) कार्यकर्ताओं के बीच भी इस नियुक्ति को लेकर गहरी चिंता देखी जा रही है। एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, “सूचना आयुक्त का कार्य है जनता के जानने के अधिकार की रक्षा करना। लेकिन जब यह जिम्मेदारी ऐसे व्यक्ति को दी जाती है, जो डीजीपी रहते सार्वजनिक संवाद से कटा रहा, तब सवाल उठते हैं।”
विश्लेषकों का मानना है कि यह नियुक्ति केवल संस्थागत प्रक्रिया नहीं, बल्कि सत्ता संरचना में बदलते संतुलन की अभिव्यक्ति है।
संपादकीय टिप्पणी
अशोक जुनेजा की मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में संभावित ताजपोशी ने स्पष्ट कर दिया है कि अब प्रशासनिक पद केवल सेवा की योग्यता से नहीं, बल्कि रणनीतिक ‘सर्वाइवल स्किल्स’ से तय हो रहे हैं। यह भी साफ है कि इस फैसले का असर केवल एक विभाग तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि जनता की सूचना तक पहुंच, RTI की प्रभावशीलता और लोकतांत्रिक जवाबदेही की धारणा पर भी दीर्घकालिक असर डालेगा।
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