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Bilaspur Highcourt News:– पुलिस हिरासत में मौत पर हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी, कहा– मृतक की पत्नी व माता-पिता को मुआवजा देने के आदेश

Bilaspur Highcourt News:– पुलिस हिरासत में मौत पर हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी, कहा– कस्टोडियल डेथ से कमजोर होता है जनता का भरोसा, मृतक की पत्नी व माता-पिता को मुआवजा देने के आदेश

Bilaspur Highcourt News:– पुलिस हिरासत में हुई मौत के मामले में बिलासपुर हाईकोर्ट ने गंभीर टिप्पणी करते हुए महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि हिरासत में हुई यह मौत पुलिस की अमानवीयता और ज्यादती का परिणाम है। आरोपी को गिरफ्तार किए जाने के समय वह पूरी तरह स्वस्थ था, लेकिन मात्र तीन घंटे बाद उसकी मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में शरीर पर 24 चोटें पाई गईं। राज्य सरकार ने इस मौत को प्राकृतिक कारण बताते हुए चोटों को पुराना बताया, जिसे कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि यह कस्टोडियल बर्बरता का स्पष्ट उदाहरण है। अदालत ने मृतक की पत्नी को 3 लाख और माता-पिता को 1-1 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया है।

Bilaspur बिलासपुर। पुलिस हिरासत में हुई मौत को लेकर बिलासपुर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं जनता के न्यायिक तंत्र पर से भरोसा तोड़ती हैं। यह संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की खंडपीठ ने मृतक की पत्नी और माता-पिता की याचिका पर यह आदेश जारी किया है।

राजनांदगांव के रहने वाले 41 वर्षीय दुर्गेंद्र कठोलिया को अर्जुनी थाना पुलिस ने 29 मार्च 2025 को धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया था। 31 मार्च को शाम 5 बजे उसे धमतरी के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, जहां वह पूरी तरह स्वस्थ था। मगर रात 8 बजे पुलिस हिरासत में उसकी मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में शरीर पर 24 चोटें पाई गईं, जिनमें हाथ, छाती, जांघ, घुटनों, चेहरे और नाक पर गंभीर निशान शामिल थे। मेडिकल बोर्ड ने रिपोर्ट में कहा कि मृत्यु दम घुटने से हुई, जिससे कार्डियो रेस्पिरेटरी अरेस्ट हुआ।

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राज्य सरकार की दलील खारिज
मृतक की पत्नी दुर्गा देवी कठोलिया, माता सुशीला और पिता लक्ष्मण सोनकर ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। राज्य सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया कि मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है और चोटें पुरानी हैं। लेकिन कोर्ट ने इन दलीलों को अस्वीकार करते हुए कहा कि मात्र तीन घंटे के भीतर हुई मौत पुलिस की जिम्मेदारी से बचने का प्रयास प्रतीत होती है। अदालत ने यह भी कहा कि चोटें पुरानी हों या नई, राज्य इस तरह की घटनाओं की जवाबदेही से मुक्त नहीं हो सकता।

कोर्ट ने कहा– यह कस्टोडियल बर्बरता का मामला
अदालत ने कहा कि मामले की परिस्थितियां दर्शाती हैं कि मृतक के साथ हिरासत में अमानवीय व्यवहार किया गया। यह कस्टोडियल अत्याचार का गंभीर उदाहरण है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि हिरासत में मौत के मामलों में मुआवजा देना सार्वजनिक कानून के तहत आवश्यक उपाय है। साथ ही, कोर्ट ने राज्य सरकार को चेतावनी दी कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न दोहराई जाएं और अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी को याद रखा जाए।

8 सप्ताह में मुआवजा देने के निर्देश
याचिका स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस हिरासत में हुई मौतें और यातनाएं आपराधिक न्याय प्रणाली पर जनता के विश्वास को कमजोर करती हैं। इस पर अदालत ने गृह विभाग के सचिव को आदेश दिया कि मृतक की पत्नी को 3 लाख और माता-पिता को 1-1 लाख रुपये की राशि 8 सप्ताह के भीतर प्रदान की जाए।

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