
📲व्हाट्सऐप चैट से खुली VIP सेटिंग की पोल – जांच, अफसर, घोटालेबाज़ सब फंसेंगे!
👮♂️ आईपीएस अधिकारियों पर नजर – कांग्रेस शासनकाल के EOW/ACB अफसरों की भूमिका की जांच के संकेत
⚠️ बढ़ेगा दायरा – सीबीआई की नजर में 2019–2023 के आधा दर्जन आईपीएस अधिकारी
📰 खोजी खुलासा – मध्य भारत के अग्रणी और छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित अंग्रेज़ी दैनिक ‘द हितवाद’ (The Hitavada) में न्यूज़ एडिटर व राज्य के वरिष्ठ खोजी पत्रकार मुकेश एस सिंह की विशेष रिपोर्ट
कान्हा तिवारी
रायपुर/ बिलासपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शुक्रवार को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने बहुचर्चित नागरिक आपूर्ति निगम (NAN) घोटाले से जुड़े एक नए एफआईआर के तहत सेवानिवृत्त वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा के ठिकानों पर दबिश दी। यह कार्रवाई FIR क्रमांक RC 2162025A0006 के आधार पर की गई, जिसे 16 अप्रैल को CBI की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (AC-I, नई दिल्ली) ने दर्ज किया है।

Nyaydhaani.com के पास 16 अप्रैल को CBI द्वारा दर्ज की गई 14 पृष्ठों की एफआईआर की 4 प्रमुख पृष्ठों की एक्सक्लूसिव प्रति उपलब्ध है।

CBI की ताबड़तोड़ दबिश और व्यापक जांच की तैयारी
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, सीबीआई की दिल्ली मुख्यालय की एक विशेष टीम ने यह दबिश शुक्रवार तड़के टुटेजा के रायपुर स्थित आवास पर दी। साथ ही अन्य स्थानों पर भी समन्वित तलाशी अभियान चलाया गया। इस छापेमारी का नेतृत्व CBI के वरिष्ठ अधिकारियों की निगरानी में किया गया, जबकि केस के विवेचना अधिकारी कैलाश साहू (अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, AC-I, नई दिल्ली) को बनाया गया है।

व्हाट्सऐप चैट्स और डिजिटल साक्ष्य जांच के केंद्र में
एफआईआर में जिन डिजिटल साक्ष्यों का उल्लेख किया गया है, उनमें लीक हुई व्हाट्सऐप चैट्स, संवेदनशील कानूनी दस्तावेज, अभियोजन रणनीति की चर्चाएं, और न्यायिक आदेशों में संभावित फेरबदल से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड शामिल हैं। यह सभी साक्ष्य सीबीआई की डिजिटल फॉरेंसिक टीम के हवाले कर दिए गए हैं।
सूत्रों के अनुसार, ये चैट्स वर्ष 2019–2020 के दौरान की हैं, जिनमें वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों और तत्कालीन महाधिवक्ता के बीच गोपनीय वार्तालाप सामने आए हैं। इन चैट्स में न्यायिक आदेशों को प्रभावित करने, अभियोजन पक्ष पर दबाव बनाने और संवेदनशील केसों की दिशा बदलने की साजिश के संकेत हैं।

तीन प्रमुख नामजद, आधा दर्जन IPS अधिकारी एजेंसी के रडार पर
एफआईआर में तीन प्रमुख व्यक्तियों के नाम सीधे तौर पर दर्ज किए गए हैं:
अनिल टुटेजा – पूर्व प्रबंध संचालक, NAN
डॉ. आलोक शुक्ला – तत्कालीन प्रमुख सचिव, खाद्य नागरिक आपूर्ति विभाग
सतीश चंद्र वर्मा – पूर्व महाधिवक्ता, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय
इसके अतिरिक्त एफआईआर में “अन्य” व्यक्तियों का भी उल्लेख है, जिनकी पहचान पूर्ववर्ती कांग्रेस शासनकाल में आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) और भ्रष्टाचार निवारण ब्यूरो (ACB) की जिम्मेदारी संभालने वाले आधा दर्जन से अधिक आईपीएस अधिकारियों से जुड़ी बताई जा रही है।
एक वरिष्ठ सूत्र ने बताया, “भले ही एफआईआर में IPS अधिकारियों के नाम दर्ज नहीं हैं, लेकिन जांच जैसे–जैसे आगे बढ़ेगी, उनके नाम एजेंसी के रडार पर आएंगे। चैट्स और डिजिटल रिकॉर्ड पहले से सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध हैं।”

ED की गोपनीय रिपोर्ट के आधार पर CBI की एफआईआर
CBI की यह एफआईआर प्रवर्तन निदेशालय (ED), रायपुर जोन द्वारा 3 अप्रैल को भेजे गए गोपनीय पत्र और एक सीलबंद सीडी के आधार पर दर्ज की गई है। इसमें व्हाट्सऐप चैट्स, अदालतों में प्रस्तुत फर्जी दस्तावेज, अभियोजन पक्ष पर दबाव और अन्य गंभीर डिजिटल साक्ष्य संलग्न थे, जो अब सुप्रीम कोर्ट में भी विचाराधीन हैं।

नान घोटाले की कड़ियाँ फिर सतह पर
गौरतलब है कि यह पूरा मामला 2015 के नान घोटाले से जुड़ा है, जिसकी शुरुआत 2014 में ACB द्वारा की गई छापेमारी से हुई थी। उस दौरान बेहिसाब नगदी, कोडेड डायरी, और सरकारी रिकॉर्ड में भारी गड़बड़ियों के सबूत मिले थे। उस मामले में पहले ही कई जांचें और गिरफ्तारियां हो चुकी हैं।
CBI की नई एफआईआर पुराने प्रकरणों को फिर से जोड़ते हुए एक “हाई लेवल साजिश” की पुनर्पुष्टि करती है, जिसमें सरकारी पदों का दुरुपयोग, न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप और डिजिटल सबूतों के साथ हेराफेरी के गंभीर आरोप शामिल हैं।

गंभीर धाराओं में दर्ज हुआ मामला
इस एफआईआर में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 120B (आपराधिक साजिश), 166A (सरकारी कर्मचारी द्वारा कानून के विरुद्ध कार्य करना), 193 (झूठे साक्ष्य), 195A (गवाहों को धमकाना), 211 (झूठा मामला बनाना), 482 (न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराएं 7, 7A, 8 और 13(2) सम्मिलित हैं।
क्या कहते हैं वरिष्ठ अधिकारी
सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “यह मामला केवल एक वित्तीय घोटाले तक सीमित नहीं है। यह एक गंभीर और संगठित प्रयास है, जो राज्य की न्यायिक और प्रशासनिक व्यवस्था की आत्मा को प्रभावित करने की कोशिश करता है।”
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