
1800 खदानें कुछ दिन भी बंद होती हैं, तो यह संख्या 90 हजार हो जाती है
जांजगीर चाँपा। पर्यावरणीय मंजूरी लंबित रहने से 1800 खदानों पर बंद होने का खतरा मंडराने लगा है। दरअसल, एनजीटी ने गिट्टी, मुरम, ईंट बनाने वाली मिट्टी खदान संचालकों को राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) से 27 अक्टूबर 24 तक नए सिरे से पर्यावरणीय मंजूरी लेने को कहा है। परेशानी प्रक्रिया मंजूरी लेने की प्रक्रिया से है, जिसमें तीन से सात साल तक लग सकते हैं।

वही जांजगीर चाँपा के खनिज अधिकारी हेमंत चेरपा के अनुसार एक ईंट भट्ठे या गिट्टी खदान में 25 परिवारों को रोजगार मिलता है। इसके दो सदस्य भी ले तों यह संख्या 50 होती है। एनजीटी के आदेशानुसार रिअसेसमेंट नहीं होने पर 1800 खदानें कुछ दिन भी बंद होती हैं, तो यह संख्या 90 हजार हो जाती है। यह प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होंगे। इसके अलावा ट्रांसपोर्टिंग व सामग्री नहीं मिलने पर निर्माण कार्य भी प्रभावित होंगे। यह संख्या लगभग प्रत्यक्ष रूप से काम करने वालों की अपेक्षा तीन से चार गुनी होती है। ऐसे में सबको जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा 3 लाख करीब तक पहुंच जाता है।
बता दें कि केंद्र सरकार ने 2006 में हर बड़े उद्योग के पर्यावरणीय मंजूरी जरूरी कर दी थी। तब केस कम होने के कारण केन्द्र से उन्हें तुरंत मंजूरी मिल जाती थी। पर 2013 में छोटी-छोटी खदानों के लिए भी जब पर्यावरणीय मंजूरी अनिवार्य की गई को मामले बढ़ने लगे। ऐसे में केंद्र सरकार ने जिला-स्तरीय पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण(डीईआईएए)से पर्यावरणीय मंजूरी का आदेश लेने कहा। इस पर दिया (डीईआईएए) पर नियमों का पालन न करने का आरोप लगाते हुए साल 2018 में हरियाणा के पर्यावरणीय एक्टिविस्ट ने एनटीजी में केस दायर करने पर एनटीजी ने दिया को भंग कर दिया और राज्य पर्यावरण आंकलन प्राधिकरण से पर्यावरणीय मंजूरी लेने का आदेश दे दिया।
यह आदेश जब तक प्रदेशों में पहुंचता तब तक कुछ राज्यों में दिया ने कुछ पुराने फर्मों को पर्यावरणीय क्लीयरेंस दे दी। तो एक्टिविस्ट ने फिर एनटीजी पहुंचकर नियम टूटने का हवाला दिया। तो साल 2022 में एनजीटी ने सख्त रुख अपनाने हुए सभी को सिया में नए सिरे से पुर्नमूल्यांकन के लिए आवेदन कर पर्यावरणीय क्लीयरेंस लेने कहा। चूंकि नए आवेदन में जनसुनवाई कराकर पर्यावरणीय मंजूरी लेने की प्रक्रिया काफी लंबी है। इसलिए पिछले 17 माह में 1800 में अब तक एक को ईसी(इनवायरमेंट क्लीयरेंस) नहीं मिल पाई है। ऐसे में संचालकों को काम बंद होने का डर सता रहा है।
संघ ने समस्या से निपटने के लिए दिए दो सुझाव
- आदेश के अनुसार जनसुनवाई के माध्यम से ही पुनः आकलन के बाद पुरानी प्रदान की गई डीईआईएए की पर्यावरण अनुमति को एसईईआईएए दी जाएगी। ऐसे में संगठन ने सुझाव दिया है कि अनापति / अनुमति मिलने की प्रक्रिया पूरी होने तक उनकी खदान को बंद ना किया जाए।
- प्रशासनिक अमले को चुस्त-दुरूस्त कर जनसुनवाई के माध्यम से पर्यावरणीय मंजूरी को देने की प्रक्रिया 60 से 90 दिनों में पूरी कराई जाए। इसके लिए राज्य शासन, संबन्धित पूरे क्षेत्र को क्लस्टर (माइनिंग जोन) घोषित करके भी तीव्रता से इस मामले का निपटारा कर
शासन के आदेश का है इंतजार फिर करेगे बंद करने की कार्यवाही
क्रशर सहित अन्य छोटी खदानों के लिए जनसुनवाई से पर्यावरणीय क्लीयरेंस लेना जरूरी कर दिया गया है। यह शासन स्तर का मामला है। वहां से जैसा आदेश आएगा, वैसा करेंगे।
-एसपी वैद्य, अपर कलेक्टर जांजगीर
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