युक्तियुक्तकरण पर बवाल: स्कूल बंद, शिक्षक परेशान, अब होगा बीइओ व डीइओ आफिस का घेरावप्रदेश भर में उबाल

प्रदेश के प्रमुख शिक्षक संघों ने युक्तियुक्तकरण नीति को शिक्षकों के खिलाफ साजिश करार दिया है। उनका कहना है कि बिना समुचित व्यवस्था और परामर्श के शिक्षकों को अचानक स्थानांतरित किया जा रहा है। कई शिक्षक वर्षों से जिस स्कूल में पढ़ा रहे थे, उन्हें 70-80 किलोमीटर दूर भेज दिया गया है।
रायपुर | छत्तीसगढ़ में शिक्षा विभाग की ओर से लागू की जा रही युक्तियुक्तकरण नीति के खिलाफ प्रदेश में विरोध तेज हो गया है। हजारों स्कूलों को बंद करने और शिक्षकों को जबरन स्थानांतरण करने की प्रक्रिया को लेकर शिक्षक संगठनों, ग्रामीण जनता और राजनीतिक दलों में भारी आक्रोश है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो कई जगहों पर स्कूलों में ताले लटक रहे हैं, वहीं अध्यापक और बच्चों की संख्या के बीच भारी असंतुलन पैदा हो गया है।

राज्य सरकार का दावा है कि युक्तियुक्तकरण से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे ठीक उलट नजर आ रही है।
स्कूल बंद, गांवों में सन्नाटा, बच्चों का भविष्य अधर में
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, युक्तियुक्तकरण योजना के तहत प्रदेश के 10,463 छोटे स्कूलों को बंद या मर्ज किया जा रहा है। इससे प्रदेश के दूरस्थ और वनांचल क्षेत्रों में स्थित स्कूलों पर सीधा असर पड़ा है। कई गांवों में स्कूल भवन तो हैं, लेकिन वहां न शिक्षक हैं, न छात्र। बच्चे 3-4 किलोमीटर दूर दूसरे गांवों के स्कूलों में जाने को मजबूर हैं। परिणामस्वरूप बच्चों का स्कूल जाना बंद हो गया है।
कांकेर, बीजापुर, गरियाबंद, सूरजपुर और कबीरधाम जैसे जिलों में इसका असर सबसे ज्यादा देखा जा रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि सरकार सिर्फ आंकड़ों के आधार पर फैसला ले रही है, ज़मीनी हकीकत को नजरअंदाज किया जा रहा है।
शिक्षक संगठनों में गहरा असंतोष, आंदोलन की चेतावनी
प्रदेश के प्रमुख शिक्षक संघों ने युक्तियुक्तकरण नीति को शिक्षकों के खिलाफ साजिश करार दिया है। उनका कहना है कि बिना समुचित व्यवस्था और परामर्श के शिक्षकों को अचानक स्थानांतरित किया जा रहा है। कई शिक्षक वर्षों से जिस स्कूल में पढ़ा रहे थे, उन्हें 70-80 किलोमीटर दूर भेज दिया गया है।
छत्तीसगढ़ मे शिक्षक मंच के पदाधिकारियो का कहना है —
“यह नीति शिक्षा के विकास की नहीं, उसके पतन की दिशा में है। शिक्षकों को मानसिक यातना दी जा रही है। स्कूलों को बंद करने से बच्चों का नुकसान हो रहा है।”
अनुसूचित क्षेत्रों में गंभीर संकट, आदिवासी छात्र सबसे ज्यादा प्रभावित
राज्य के अनुसूचित क्षेत्र जहां साक्षरता दर पहले ही कम है, वहां यह नीति और भी घातक साबित हो रही है। इन क्षेत्रों में छोटे-छोटे स्कूल ही शिक्षा की रीढ़ रहे हैं, जिन्हें अब बंद किया जा रहा है। परिणामस्वरूप, आदिवासी छात्र–छात्राएं स्कूलों से कटते जा रहे हैं।
बस्तर के शिक्षक विनोद नेताम कहते हैं —
“यह सिर्फ स्कूल बंद करना नहीं, बल्कि आदिवासी बच्चों को शिक्षा से दूर करने की साजिश है।“

राजनीतिक मोर्चे पर भी गरमाहट, कांग्रेस ने खोला मोर्चा
प्रदेश में विपक्षी कांग्रेस ने इसे रोजगार और शिक्षा विरोधी नीति करार दिया है। कांग्रेस की प्रदेश इकाई ने “शिक्षा–न्याय आंदोलन” शुरू करने की घोषणा की है, जिसके तहत ब्लॉक और जिला मुख्यालयों में प्रदर्शन, शिक्षा कार्यालयों का घेराव और स्कूलों के सामने धरना देने की रणनीति बनाई गई है।
कांग्रेस प्रवक्ता सुबोध साहू ने कहा —
“भाजपा सरकार बच्चों से स्कूल और शिक्षकों से रोज़गार छीन रही है। यह किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।“
सरकार का क्या कहना
राज्य सरकार का कहना है कि युक्तियुक्तकरण का उद्देश्य बेहतर शिक्षा व्यवस्था स्थापित करना है, जहां शिक्षकों की उपलब्धता और स्कूल संसाधनों का समुचित उपयोग हो। अधिकारियों का दावा है कि इससे “घोषित लेकिन अनुपयोगी” स्कूलों की संख्या घटेगी और शिक्षकों का प्रभावी उपयोग संभव होगा।
लेकिन सरकार अब तक यह स्पष्ट नहीं कर पाई है कि दूरदराज के इलाकों में स्कूल बंद करने से बच्चों की शिक्षा कैसे सुनिश्चित की जाएगी।
विशेषज्ञों की राय
शिक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि युक्तियुक्तकरण का विचार बुरा नहीं, लेकिन इसकी तैयारी और क्रियान्वयन बेहद अव्यवस्थित है। किसी भी नीति को लागू करने से पहले स्थानीय ज़रूरतों, भूगोल और जनसंख्या को समझना ज़रूरी होता है।
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