Chhattisgarh Gaudham Yojana:– गौधाम योजना बना हाथी दांत, सड़कों पर दुर्घटनाओं में मर रही गाए, चारागाहों में चारा नहीं, ऊंट के मुंह में जीरे समान बजट

Chhattisgarh Gaudham Yojana:–छत्तीसगढ़ सरकार की बहुचर्चित गौधाम योजना अब सवालों के घेरे में आ गई है। शासन भले इसे “गौसेवा” का आदर्श मॉडल बताता हो, लेकिन ज़मीन पर यह योजना भूख, बीमारी और बेबसी की मिसाल बन गई है। शासन कहता है — “हर गौवंश को प्रतिदिन दस रुपये मिलेंगे”, मगर गांवों की गलियों में घूमती दुबली-पतली, घायल गायें खुद इस सरकारी दावे का मज़ाक उड़ा रही हैं।
( रिपोर्टर– संजय सोनी )
Chhattisgarh Gaudham Yojana:– बिलासपुर । छत्तीसगढ़ सरकार की बहुचर्चित गौधाम योजना अब सवालों के घेरे में आ गई है। गौसंरक्षण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुदृढ़ीकरण के उद्देश्य से शुरू की गई इस योजना में कई व्यावहारिक विसंगतियाँ और नीतिगत विरोधाभास देखने को मिल रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि शासन के योजनानुसार इस योजना के तहत गौवंश बाबत प्रथम वर्ष में ₹10, द्वितीय वर्ष में ₹20, और तृतीय वर्ष में ₹35 प्रतिदिन प्रति गौवंश की सहायता राशि निर्धारित की गई है। किंतु यह राशि एक गाय के चारे, जल, चिकित्सा और देखरेख के लिए नितांत अपर्याप्त प्रतीत हो रही है। पशुपालकों का कहना है कि 10 रुपये में तो केवल एक दिन का सूखा चारा भी उपलब्ध नहीं होता,और शासन कहती है गौवंशो को पोषण युक्त आहार दिया जाए,,क्या गायों को है दस रु में पारले जी बिस्किट खिलाएं ,
ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रिय गोसेवकों के मतानुसार, एक गाय का न्यूनतम दैनिक खर्च ₹40 से ₹60 तक आता है। इस आधार पर योजना का वर्तमान वित्तीय प्रावधान कागज़ी और अव्यावहारिक प्रतीत हो रहा है,
सड़कों पर अब भी भटक रहा गौवंश
योजना लागू होने के बावजूद प्रदेश के अधिकांश जिलों विशेषकर बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा और जांजगीर–चांपा में आज भी सैकड़ों आवारा और घायल गौवंश सड़कों पर भटकते देखे जा सकते हैं। इनसे प्रतिदिन कई सड़क दुर्घटनाएँ हो रही हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ गौ सेवा आयोग द्वारा गठन के इतने वर्षों बाद भी दुर्घटनाग्रस्त गौवंशों के उपचार हेतु कोई प्रभावी व्यवस्था आज तक नहीं की जा सकी है।जो
गौ सेवा आयोग की निष्क्रियता पर सवाल उठा रहे है,क्योंकि आयोग का कार्य केवल बैठकों और कागज़ी प्रस्तावों तक सीमित रह गया लगता है।
राजनीति के केंद्र में
गाय, विशेषज्ञों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में “गाय” अब राजनीति का प्रतीक बन चुकी है। सत्ता परिवर्तन के साथ–साथ गौ–नीतियों का स्वरूप भी बदलता रहा है, लेकिन गौवंश की वास्तविक स्थिति में अब तक कोई ठोस सुधार देखने को नहीं मिला।
वर्तमान में विष्णुदेव साय सरकार ने बिलासपुर जिले के कोटा क्षेत्र में गौ–अभ्यारण की महत्वाकांक्षी योजना तैयार की थी, जिसे राज्य का पहला संगठित गौ–अभ्यारण बताया गया था। किंतु यह योजना आज भी क्रियान्वयन से कोसों दूर है। न वहां स्थायी गौशाला विकसित हो पाई, न चारा विकास क्षेत्र, और न ही गायों के लिए कोई समुचित रहवास व्यवस्था बन सकी है।
इधर कई ग्राम पंचायतों से यह शिकायतें भी सामने आई हैं कि उन्हें गौधाम योजना के अंतर्गत आवंटित धनराशि समय पर नहीं मिलती। जब कभी राशि मिलती भी है, तो वह वास्तविक आवश्यकताओं की तुलना में अत्यंत कम होती है। स्थानीय स्तर पर गोबर खरीदी बंद हो चुकी है, वहीं गौवंशों के लिए चारा प्रबंधन और उपचार व्यवस्था भी अधूरी पड़ी है।
इन परिस्थितियों में यह कहना गलत नहीं होगा कि जिस “गाय” को संरक्षण और सेवा की योजनाओं के केंद्र में रखा गया था, वह आज राजनीतिक प्रतीक और भाषणों का हिस्सा बनकर रह गई है, जबकि ज़मीनी स्तर पर उसकी हालत पहले से भी अधिक दयनीय हो चुकी है।
योजना की हकीकत — ज़मीन पर अधूरी, कागज़ों में पूरी

पशु चिकित्सा विशेषज्ञों का साफ कहना है कि एक स्वस्थ गाय की देखभाल के लिए प्रतिदिन कम से कम ₹50 से ₹70 तक का खर्च आवश्यक होता है। इसमें चारा, जल, चिकित्सा, श्रम और रखरखाव सभी शामिल हैं। ऐसे में सरकार की ₹10–₹35 प्रतिदिन की सहायता राशि मज़ाक जैसी प्रतीत होती है।
यह राशि न तो किसी गौशाला के संचालन में मदद कर पा रही है, न ही किसी पशुपालक के लिए उपयोगी सिद्ध हो रही है।
यदि सरकार सचमुच गौसंरक्षण को लेकर गंभीर होती, तो उसे इस प्रोत्साहन राशि में यथार्थपरक वृद्धि करनी चाहिए थी, गौ सेवा आयोग को सक्रिय बनाना चाहिए था, और स्थायी गौ–अभ्यारणों की स्थापना करनी चाहिए थी। लेकिन हकीकत इसके उलट है — आयोग बैठकों और प्रस्तावों तक सीमित है, और मैदान में गायें अब भी भूख से जूझ रही हैं।
आज सड़कों पर भटकते, घायल और कुपोषित गौवंश दरअसल सरकार की “गौरक्षा नीति” की पोल खोल रहे हैं।
उनकी मौन चीखें यह सवाल खड़ा करती हैं कि आखिर दस रुपये प्रतिदिन में किस तरह किसी जीव का पोषण संभव है?
योजना का उद्देश्य गौसेवा था, लेकिन नतीजा कागज़ी दिखावे से आगे नहीं बढ़ सका। सच यह है कि छत्तीसगढ़ की गाय आज भी भूखी है — और नेताओं के भाषण अब भी गौरक्षा के वादों से भरे हैं। यही हमारे सिस्टम की सबसे बड़ी विडंबना है।
लगातार हो रही गौवंशों की मौत — प्रशासन मौन
गौरक्षा के नाम पर बनाई गई इस योजना की सच्चाई ज़मीन पर कुछ और ही कहानी कहती है। समीपस्थ ग्राम पंचायत सीस में बीते एक माह के भीतर पाँच गायों की मौत हो चुकी है। ग्रामीणों का आरोप है कि ये मौतें कथित “गौधाम योजना” की लापरवाही और अपर्याप्त संसाधनों का नतीजा हैं।
इन मौतों की जानकारी प्रशासन तक कई बार पहुंचाई गई, लेकिन ना तो कोई अधिकारी मौके पर पहुंचा, और न ही किसी ने यह जानने की कोशिश की कि आखिर गायें क्यों मर रही हैं।
यह सरकारी उदासीनता केवल एक योजना की विफलता नहीं, बल्कि गौसेवा के नाम पर हो रहे कुप्रबंधन की शर्मनाक तस्वीर है।

इनका कहना है
प्रदीप सिंह ( गौ सेवक)- निर्धारित राशि 10₹ 20₹ और 35 रूपये सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करते हैं सरकार की दोषपूर्ण मंशा ऐसी है कि सड़कों पर गाय की मौत न होकर उन्हें गौ धाम में लेजाकर कुपोषित करना परिलक्षित होता है।
पूजा सिंह ठाकुर ( रतनपुर गौ सेवक)- सड़कों पर गायों की स्थिति भयावह है, हर दिन प्रदेश में सैकड़ों गायों की मौत एक्सीडेंट से हो रही है,और सरकार गायों को लेकर हर बार चुनावी जुमलेबाजी करती है।
भाजपा सरकार की यह योजना विफल हो चुकी है,आजकल दस रु में आता क्या है, फिर गौ माता को मात्र दस रु में पोषक आहार चारे के रूप में खिलाना है, जो संभव नही है,यह योजना केवल गौ भक्तो तथा प्रदेशवासियों के भावनाओं से खिलवाड़ करने बनाया जाना प्रतीत होता है,
अटल श्रीवास्तव( विधायक )
कोटा विधानसभा क्षेत्र,
छत्तीसगढ़ की गाय आज भी भूखी है,
पर नेताओं के भाषण “गौरक्षा” से तृप्त हैं। अगर सरकार सचमुच गंभीर है,
तो उसे प्रोत्साहन राशि बढ़ानी होगी, गौ सेवा आयोग को सक्रिय बनाना होगा,
और स्थायी गौ अभ्यारणों की स्थापना करनी होगी।
वरना यह योजना भी गाय के नाम पर राजनीति की एक और मरी हुई कथा बनकर रह जाएगी।
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