छत्तीसगढ़, जो कभी अपनी शांति और सांस्कृतिक गरिमा के लिए पहचाना जाता था, आज अपराध, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक विफलताओं की काली गाथा बन गया है।
रायपुर ।मौजूदा भाजपा सरकार के सुशासन के दावे अब जनता को छलावा लगने लगे हैं।पिछले कुछ वर्षों में घटित घटनाओं ने सरकार की नीतियों और प्रशासनिक क्षमता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रदेश में महादेव सट्टा ऐप घोटाला, बलौदाबाजार की हिंसा और आगजनी, कवर्धा (लोहारडीह) में सांप्रदायिक तनाव, दुर्ग के प्रतिष्ठित स्कूल में नाबालिग छात्रा का कथित यौन शोषण, सूरजपुर में पुलिसकर्मी के परिवार की हत्या और पत्रकार संतोष टोप्पो के परिवार की सामूहिक हत्या जैसे घटनाओं ने छत्तीसगढ़ की कानून व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है।
इन घटनाओं में न केवल प्रशासन की खामियां उजागर हुईं, बल्कि सरकार और पुलिस के शीर्ष नेतृत्व की निष्क्रियता ने जनता के विश्वास को गहरी चोट पहुंचाई। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या छत्तीसगढ़ में सुशासन केवल एक चुनावी नारा था, जिसे अब कुशासन की आड़ में भुला दिया गया है?
महादेव सट्टा ऐप घोटाले ने प्रदेश की राजनीति और प्रशासन की सड़ांध को उजागर कर दिया। दुबई से संचालित इस सट्टा नेटवर्क ने करोड़ों रुपये के अवैध लेन-देन को अंजाम दिया। इसमें बड़े अधिकारियों और रसूखदार व्यक्तियों की संलिप्तता के पुख्ता सबूत सामने आए, लेकिन कार्रवाई केवल छोटे आरोपियों तक सीमित रही।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने छत्तीसगढ़ दौरे के दौरान स्पष्ट रूप से कहा था कि महादेव सट्टा ऐप घोटाले में शामिल दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। लेकिन राज्य सरकार की चुप्पी और निष्क्रियता ने जनता को गहरी निराशा में डाल दिया। क्या यह चुप्पी अपराधियों को बचाने की साजिश का हिस्सा थी? क्या बड़े अपराधियों को संरक्षण देने के लिए यह घोटाला दबाया गया? इन सवालों का उत्तर अब तक नहीं मिला है।
बलौदाबाजार की हिंसा और आगजनी की घटना ने प्रशासनिक विफलता का एक और उदाहरण प्रस्तुत किया। 10 जून 2024 को सतनामी समाज के पवित्र ‘जैतखंभ’ में तोड़फोड़ की घटना के विरोध में प्रदर्शन हुआ, जो अचानक हिंसक हो गया। प्रदर्शनकारियों ने बलौदाबाजार के संयुक्त जिला कार्यालय परिसर में तोड़फोड़ की और वाहनों को आग के हवाले कर दिया। इस आगजनी में 240 से अधिक वाहन जलकर खाक हो गए और 11.53 करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ। पुलिस ने 365 लोगों को गिरफ्तार किया और 12 प्राथमिकी दर्ज कीं। लेकिन इस घटना के छह महीने बाद भी पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाया। यह घटना सरकार के सुशासन के खोखले दावों को उजागर करती है।
कवर्धा के लोहारडीह गांव में 14 सितंबर 2024 को शिवप्रसाद साहू का शव जंगल में लटका मिला, जिससे क्षेत्र में तनाव बढ़ गया। गुस्साई भीड़ ने पूर्व सरपंच रघुनाथ साहू पर हत्या का आरोप लगाते हुए उनके घर को आग लगा दी, जिसमें उनकी मौत हो गई। इस घटना के बाद पुलिस ने कई गिरफ्तारियां कीं, लेकिन हिरासत में प्रशांत साहू की मृत्यु ने स्थिति को और बिगाड़ दिया। साहू समुदाय ने सरकार के खिलाफ बड़े आंदोलन की चेतावनी दी और मुआवजे की मांग की। यह घटना प्रशासन की विफलता का प्रतीक है, जिसने सांप्रदायिक तनाव को और गहरा कर दिया।
दुर्ग के प्रतिष्ठित स्कूल में नाबालिग छात्रा का यौन शोषण राज्य के लिए एक और शर्मनाक घटना साबित हुई। इस मामले में पुलिस ने कार्रवाई करने के बजाय इसे साजिश करार देने की कोशिश की। स्थिति तब और खराब हो गई जब पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दुर्ग एसपी की तीखी आलोचना की। इस पूरे प्रकरण ने बच्चों की सुरक्षा को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता और प्रशासन की निष्क्रियता को उजागर कर दिया।
बीजापुर में स्वतंत्र पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सबसे बड़ा हमला थी। मुकेश, जो “बस्तर जंक्शन” नामक यूट्यूब चैनल चलाते थे और प्रशासनिक भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते थे, 1 जनवरी 2024 को लापता हो गए। तीन दिन बाद उनका शव एक ठेकेदार के परिसर के सेप्टिक टैंक से बरामद हुआ।
मुकेश के परिवार ने पुलिस पर मामले को दबाने और निष्क्रियता का आरोप लगाया। यह घटना केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं थी; यह लोकतंत्र की आवाज को दबाने का प्रयास था। राज्य में लगातार बढ़ते पत्रकारों पर हमले इस बात का प्रमाण हैं कि सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने में विफल रही है।
सूरजपुर जिले में पत्रकार संतोष टोप्पो के परिवार की सामूहिक हत्या ने लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को गहरी चोट पहुंचाई। जमीन विवाद के चलते उनके माता-पिता और भाई की कुल्हाड़ियों से हमला कर हत्या कर दी गई। प्रदर्शनकारियों ने न्याय की मांग की, लेकिन सरकार की निष्क्रियता ने जनता को गहरा आघात पहुंचाया।
सूरजपुर में पुलिस हेड कांस्टेबल तालिब शेख के परिवार की निर्मम हत्या ने कानून व्यवस्था की कमजोरियों को और उजागर कर दिया। दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान, कुख्यात अपराधी कुलदीप साहू ने पुलिसकर्मियों पर गरम तेल फेंका और एक कांस्टेबल को झुलसा दिया। इसके बाद उसने कांस्टेबल तालिब शेख के घर में घुसकर उनकी पत्नी और बेटी की निर्मम हत्या कर दी। जनता में आक्रोश फैल गया, और उन्होंने आरोपी के घर को आग के हवाले कर दिया। यह घटना सरकार की प्राथमिकताओं और प्रशासन की विफलताओं को उजागर करती है।
इन घटनाओं के बावजूद, सरकार ने पुलिस नेतृत्व में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया। इसके उलट, विफल अधिकारियों को बार-बार कार्यकाल विस्तार देकर जनता के विश्वास को और कमजोर किया गया। पुलिस महानिदेशक जैसे शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारी, जिनके नेतृत्व में ये घटनाएं हुईं, बार-बार एक्सटेंशन का लाभ उठाते रहे। यह स्थिति बताती है कि सरकार की प्राथमिकताएं जनता की सुरक्षा और प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि अपने राजनीतिक समीकरणों को साधने तक सीमित हैं।
इन घटनाओं ने जनता में गुस्से और असंतोष को जन्म दिया है। लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या सरकार अपराधियों और भ्रष्ट अधिकारियों की ढाल बन चुकी है? क्या सुशासन का दावा केवल एक छलावा था? क्या जनता का विश्वास अब पूरी तरह से टूट चुका है? यदि सरकार ने इन घटनाओं से सबक नहीं लिया, तो यह तय है कि आगामी चुनाव में जनता इसे एक कड़ा सबक सिखाएगी। छत्तीसगढ़ अब केवल वादे नहीं, ठोस कार्रवाई की मांग कर रहा है। छत्तीसगढ़ अब जवाब मांग रहा है।
ईमानदार नेता मिले, लेकिन खराब प्रशासनिक विरासत का भार
छत्तीसगढ़ को भाजपा सरकार के तहत एक ऐसा ईमानदार और प्रतिबद्ध नेतृत्व मिला, जैसे कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, जिनकी छवि साफ-सुथरी और जनता के प्रति समर्पित है। लेकिन उनके शासन के बावजूद, राज्य को पूर्ववर्ती प्रशासनिक कमजोरियों और भ्रष्ट अधिकारियों की विरासत ने जकड़ रखा है।
यह विडंबना ही है कि नेतृत्व ने सुशासन के वादों के साथ शुरुआत की, लेकिन प्रशासनिक तंत्र में बैठे पुराने चेहरों की नीतिगत विफलताओं और भ्रष्टाचार ने सुशासन के उद्देश्यों को धूमिल कर दिया। ऐसे अधिकारी, जिनकी अक्षमता और मिलीभगत ने कानून व्यवस्था को तार-तार किया, आज भी पदों पर बने हुए हैं। जनता का आक्रोश इस बात को लेकर है कि बदलाव की उम्मीद के बावजूद, पुराने कुशासन की जड़ें आज भी प्रदेश में गहरी हैं।
ईमानदार नेतृत्व के पास अगर प्रशासनिक तंत्र का सही सहयोग नहीं हो, तो सुशासन का सपना अधूरा ही रह जाता है।

