छत्तीसगढ़जरूरी खबरजांजगीर-चांपादेश - विदेशराज्य एवं शहर

Chhattisgarh News:– सरकारी दफ्तरों में विदेशी पौधों की एंट्री पर सवाल: कोनोकार्पस को लेकर BJP नेता प्रशांत सिंह ठाकुर का ऐतराज, बोले—स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए खतरा, त्वरित कार्रवाई की मांग

Chhattisgarh News:– BJP नेता प्रशांत सिंह ठाकुर ने कोनोकार्पस पौधों पर उठाई आपत्ति, कहासरकारी दफ्तरों शहर में लगे पौधे स्वास्थ्य पर्यावरण के लिए खतरा

जाँजगीर चांपा।बीजेपी के तेज तर्रार नेता प्रशांत सिंह ठाकुर ने अपने फेसबुक अकाउंट के माध्यम से कोनोकार्पस (Conocarpus) पौधों के रोपण पर गंभीर आपत्ति जताई है। उन्होंने अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि यह पौधा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है और कई राज्यों में इससे एलर्जी, प्रदूषण बढ़ोतरी, पोलन एलर्जी, दमा जैसी बीमारियों के मामले सामने आए हैं।

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

प्रशांत सिंह ठाकुर के मुताबिक, जिला न्यायाधीश कार्यालय, एसपी कार्यालय, कलेक्टोरेट परिसर सहित कई सरकारी संस्थानों के प्रांगण और सड़कों के किनारे कोनोकार्पस के पौधे लगाए गए हैं, जो भविष्य में बड़े पर्यावरणीय और स्वास्थ्यगत दुष्परिणाम पैदा कर सकते हैं।

उन्होंने अधिकारियों को इस मुद्दे पर तुरंत संज्ञान लेने, पौधों की समीक्षा करने और जरूरत पड़ने पर इन्हें हटाने की सलाह दी है। ठाकुर ने कहा कि कोनोकार्पस जैसे विदेशी प्रजाति के पौधे केवल स्थानीय पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि हवा में एलर्जिक कण छोड़कर नागरिकों की सेहत पर भी विपरीत असर डाल सकते हैं।

क्यों लगाए जाते हैं कोनोकार्पस?

तेज़ी से बढ़ने और कम पानी में भी हराभरा रहने की खासियत के कारण कोनोकार्पस को शहरी हरियाली का आसान विकल्प माना गया। नगर निगमों ने इसे इसलिए अपनाया क्योंकि यह धूल और प्रदूषण को भी झेल लेता है, और लैंडस्केपिंग में इसे किसी भी रूप में ट्रिम कर सजावटी रूप दिया जा सकता है। पार्क, सड़क डिवाइडर और सरकारी परिसरों में कम समय में हरित आवरण दिखाने की वजह से कई जगहों पर इसे प्राथमिकता दी गई।

  सड़क दुर्घटनाओं को रोकने सड़क सुरक्षा और यातायात नियमों का कड़ाई से हो पालन: मुख्यमंत्री

कहाँ का है यह पौधा?

कोनोकार्पस मूल रूप से अफ्रीका और खाड़ी देशों में पाया जाने वाला पौधा है। शुष्क और गर्म इलाकों में तेजी से बढ़ने की इसकी क्षमता के कारण मध्यपूर्व के शहरों में यह काफी लोकप्रिय हुआ। बाद में इसे भारत सहित कई देशों में आयात कर शहरी हरियाली प्रोजेक्ट्स में लगाया जाने लगा।

क्या हैं इसके नुकसान?

हालाँकि यह तेज़ी से हरियाली देता है, लेकिन विशेषज्ञ अब इसके गंभीर दुष्प्रभावों की ओर इशारा कर रहे हैं। इसकी जड़ें अत्यधिक पानी सोखती हैं, जिससे भूजल स्तर पर असर पड़ सकता है—खासकर उन इलाकों में जहां पहले से पानी की कमी है। परागकण के कारण एलर्जी और अस्थमा के मरीजों में दिक्कत बढ़ने की शिकायतें भी कई राज्यों में दर्ज की गई हैं।

इसके अलावा, यह पौधा आसपास की स्थानीय प्रजातियों को दबा देता है और उनकी वृद्धि को रोकता है। गर्मियों में यह अधिक मात्रा में वाष्पीकरण करता है, जिससे पर्यावरण पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। कुछ शहरों में इसकी जड़ें भूमिगत पाइपलाइन और दीवारों को भी नुकसान पहुँचा रही हैं, जिसके बाद कई नगर निगमों ने इसे लगाना बंद करने की अनुशंसा की है।

आगे क्या होगा?

अब यह देखना होगा कि प्रशासन इस मुद्दे पर क्या रूख अपनाती है और किस तरह के निर्देश या कार्रवाई करता है। फिलहाल, मामला चर्चा और समीक्षा के चरण में है, और आने वाले दिनों में संबंधित विभागों की प्रतिक्रिया से साफ होगा कि पौधों को हटाया जाएगा या रखरखाव के लिए दिशानिर्देश जारी होंगे।

Was this article helpful?
YesNo

Live Cricket Info

Kanha Tiwari

छत्तीसगढ़ के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिन्होंने पिछले 10 वर्षों से लोक जन-आवाज को सशक्त बनाते हुए पत्रकारिता की अगुआई की है।

Related Articles

Back to top button