
रायपुर। फादर्स डे पर पिता के प्रति सम्मान जताने वाली कहानियों से पूरी मीडिया भरी पड़ी है। सोशल मीडिया में भी पिता से प्रेम व आदर सत्कार व्यक्त किया जा रहे हैं। वही हम आज आपको एक ऐसी बेटी की कहानी बताएंगे जिसके लिए पिता एक वट वृक्ष की तरह नहीं है बल्कि पिता उस बेटी के लिए सांसे है, धड़कन है और पूरी की पूरी जिंदगी है। जीवन की हर खुशियों का आधार पिता ही है।

जी हां हम बात कर रहे हैं उस बेटी की जो आज पिता के आशीर्वाद और अपनी कड़ी मेहनत की बदौलत एक्सिस बैंक जैसी देश की बड़ी और नामी बैंकों में शुमार बैंक में डिप्टी मैनेजर के पद पर कार्यरत है। यह पूरी कहानी रश्मि कृष्ण कुमार तिवारी की है। यह कहानी कहानी न होकर सच का एक चलचित्र है।
रश्मि कृष्ण कुमार तिवारी के पिता श्री कृष्ण कुमार तिवारी रिटायर्ड प्रधान पाठक हैं। उनकी चार बेटियां है। रश्मि उनकी सबसे छोटी बेटी है। छोटी होने के बावजूद पिता के लिए सबसे बड़ी जवाबदारी रश्मि ही निभा रही है। पर रश्मि के लिए यह जवाबदारी ना होकर अच्छे किस्मत की बात है जो कौन है पिता के साथ-साथ माता की सेवा का अवसर सबसे छोटी बहन होने के बाद भी मिला है। उनकी तीनों बहनें अपने जीवन में व्यस्त है। जबकि रश्मि का जीवन ही उनके माता-पिता है। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अपने माता-पिता की सेवा के नाम लिख दिया है। रश्मि के अनुसार माता-पिता की सेवा के लिए यह जन्म तो क्या 7 जन्म भी कम पड़ेंगे।
माता पिता आपका आशीर्वाद की बदौलत प्रोफेशनल करियर में भी रश्मि लगातार उन्नति कर रही है। वह पहले आईसीआईसीआई बैंक में कार्यरत थीं। अब वे एक्सिस बैंक में कार्यरत हैं। रश्मि एसिक्स बैंक में अच्छे पोजिशन पर है। वह वर्तमान में डिप्टी मैनेजर के पद पर है। माता-पिता की सेवा के अलावा अपने प्रोफेशनल दायित्वों का बखूबी निर्वहन कर रहीं हैं।
रश्मि बताती है कि वह आज जिस भी मुकाम में है उसमें उसके पिता का उन पर विश्वास व भरोसा है। रश्मि के पिता उन्हें हर कदम पर सपोर्ट करते हैं। रोशनी को खुद के ऊपर जितना भरोसा नहीं उससे ज्यादा भरोसा उनके पिता के ऊपर है। यही वजह है कि रश्मि ने पिता के इस भरोसे को कायम रखा और एक अच्छा मुकाम बना पाई।
फादर्स डे के अवसर पर रश्मि के द्वारा लिखी चंद लाइनों की कविता नीचे प्रस्तुत हैं….
पिता-माँ ही ईश्वर..
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पिता -उम्मीद ,सम्बल
और आस होते हैं
हमारी घर की ताकत
और विश्वास होते हैं,
पिता-मूंछों पे देते ताव
खड़े-कड़े-घर के बड़े,
बाहर से सख्त और
अंतर से नर्म बड़े,
पिता-हमारी एक आह में
दिल से रो पड़े,और
हर पीड़ा के लिए
तुरत मरहम बन पड़े…
पिता-पुरे परिवार के हर प्रश्न को
बिन बताए पढ़े–
और उनका संतोषजनक
हमेशा-हल गढ़े….
पिता-बच्चों के जीवन पथ के
हर संघर्ष के तूफ़ान में
हिम्मत की अडिग दीवार
हिमालय से हरदम अड़े…
पिता-खतरों से कठिनाइयों से
लड़ने के हथियार भी
हर सुख और उमंग में
खुशियों के त्यौहार भी…
पिता-पुरे बाल्यकाल को खुश रखने
बन जाते खिलौना
छाती और पेट से कभी
मलमल का बिछौना…
पिता-गृहस्थी के जिम्मो के भार से लदी
गाडी को सहज खींचते हैं जो
भरी पूरी घर की बगिया को
अपने खून पसीने से सींचते हैं जो…
पिता-पिता-माता-पत्नी-भाई-बहन
और चार बच्चे भी हंस कर पालने वाले
मुहल्ले-गांव-शहर-देश में
मानव-संस्कार डालने वाले…
पिता-सपने ऊँचे और सच्चे
बुनकर ..सच कर देते जो,
भूखे रहकर भी,आश्रितों को
खिला निवाले,मुस्कुराते जो,
पिता-बड़ा कर बड़ा बंनाकर
बड़ी पहचान भी देते..
वक्त पड़े तो बच्चों के लिए
त्याग सारे अरमान और जान भी देते….
पिता-माँ जमीर है-जागीर हैं
उड़ने के आकाश हैं,
जिनपे है वो–दुनिया के अमीर हैं,
जीवन क्षितिज सौंदर्य के अहसास हैं…
पिता-माता..यही वो हैं जिन्होंने
हमारा रूप गढ़ा,
अपने खून से बना कर
एक वजूद नया मढ़ा..
पिता-माँ..जन्म देकर,कर्म देकर
सांस दी और पाँव दिए
रासते चलने के,बढ़ने के
सुखों के गांव और छाँव दिये
पिता-माँ..जिन्हें देखा,जिन्हें पाया
जिन्हें भोगा..वही हैं ईश्वर -परमेश्वर
जिन्हें सुना,जिन्हे छुवा-जाना
परम् पिता परमेश्वर…
पिता-माँ…वही थे ईश्वर.खुदा.रब
खो दिया जिसे …..वही थे,
जिसने दिखाए राह…
तीनो लोक..सब सही थे…
पिता माँ की याद उनकी –पूजा है
ध्यान उनका धर्म-कर्म योग
अक्स दिल में जो बसी
वो सच साकार ब्रम्ह प्रभु-ईश्वर
शेष संसार…सब नश्वर…
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