अचनकमार टाइगर रिजर्व में बाघिन AKT-13 की मौत पर विवाद, प्रशासनिक चूक के आरोप

रायपुर, 31 जनवरी 2025: मुंगेली जिले स्थित अचनकमार टाइगर रिजर्व (ATR) में बाघिन AKT-13 की रहस्यमयी मौत ने एक बड़े विवाद को जन्म दे दिया है। लमनी कोर क्षेत्र में बाघिन का शव मिलने के बाद इसे पहले एक सामान्य अंतर-प्रजातीय संघर्ष करार दिया गया था, लेकिन अब यह घटनाक्रम प्रशासनिक लापरवाही, प्रक्रियात्मक उल्लंघन और आधिकारिक बयानों में विरोधाभासों के चलते सवालों के घेरे में आ गया है।
इस पूरे मामले में ATR प्रबंधन की भूमिका, सरकारी प्रक्रियाओं के उल्लंघन और वैज्ञानिक तथ्यों की अनदेखी को लेकर पर्यावरणविदों, वन्यजीव विशेषज्ञों और पारदर्शिता अधिवक्ताओं ने तीखी आलोचना की है। इस विवाद ने न केवल अचनकमार टाइगर रिजर्व की विश्वसनीयता को प्रभावित किया है, बल्कि पूरे देश में वन्यजीव संरक्षण से जुड़े प्रशासनिक कामकाज पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
परस्पर विरोधाभासी आधिकारिक बयान
23 जनवरी को ATR के कम्पार्टमेंट 339 RF में बाघिन AKT-13 का शव पाया गया। घटना के तुरंत बाद फील्ड डायरेक्टर मनोज पांडे के नाम से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई, जिसमें मौत का कारण क्षेत्रीय संघर्ष या प्रजनन संघर्ष बताया गया था।
लेकिन इसके कुछ ही घंटों बाद, उप-संचालक गणेश UR द्वारा जारी दूसरी प्रेस विज्ञप्ति में प्रजनन संघर्ष का कोई उल्लेख नहीं किया गया और केवल क्षेत्रीय संघर्ष को ही मौत की वजह बताया गया। इन दो विरोधाभासी बयानों ने यह संदेह उत्पन्न कर दिया कि रिजर्व प्रबंधन बाहरी दबाव में आकर आधिकारिक रुख बदल रहा है।
मामले को और अधिक संदिग्ध बना दिया इस तथ्य ने कि घटना के समय फील्ड डायरेक्टर मनोज पांडे छुट्टी पर थे और राज्य से बाहर थे। ATR प्रशासन ने दावा किया कि वे रिमोट समन्वय के माध्यम से पूरे घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए थे और मुख्य वन्यजीव संरक्षक (CWLW) के निर्देशों पर ही पहला बयान जारी किया गया था। हालांकि, पर्यावरणविदों ने इस स्पष्टीकरण को अपर्याप्त और गुमराह करने वाला करार दिया है।
NTCA गाइडलाइंस की खुली अवहेलना
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के मानकों के अनुसार, किसी भी बाघ की मृत्यु से संबंधित सभी आधिकारिक बयान CWLW की पूर्व स्वीकृति के बाद ही जारी किए जाने चाहिए। लेकिन ATR द्वारा जारी दोनों प्रेस विज्ञप्तियाँ इस प्रक्रिया का पालन नहीं कर पाईं, जिससे गंभीर नियम उल्लंघन सामने आया है।
ATR प्रबंधन ने तर्क दिया कि प्रारंभिक जानकारी जारी करना गलत सूचना को रोकने के लिए आवश्यक था। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह दलील केवल प्रशासनिक चूक को ढकने का प्रयास है, क्योंकि ऐसे मामलों में सभी आधिकारिक बयानों को सावधानीपूर्वक सत्यापन के बाद ही सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
वैज्ञानिक तर्कों को किया दरकिनार
ATR द्वारा जारी आधिकारिक स्पष्टीकरण में कहा गया कि प्रजनन संघर्ष के दौरान हुई हिंसक झड़प भी बाघिन की मौत का संभावित कारण हो सकता है। इस दावे पर रायपुर स्थित वरिष्ठ पर्यावरणविद् नितिन सिंहवी ने कड़ा ऐतराज जताया।
उन्होंने स्पष्ट किया, “बाघिन जब प्रजनन चक्र में होती है तो वह फेरोमोनल संकेतों और ध्वनि संकेतों के माध्यम से नर बाघों को आकर्षित करती है, जिससे झगड़े की संभावना कम हो जाती है। प्रजनन संघर्ष के दौरान हिंसक झड़पें एक अपवाद हैं, न कि सामान्य घटना। ATR का यह दावा पूरी तरह से अवैज्ञानिक और तथ्यहीन है।”
ATR ने अपने दावे को सही ठहराने के लिए कार्बेट टाइगर रिजर्व की एक रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि 80% टेरिटोरियल संघर्ष और प्रजनन संघर्ष के कारण बाघों की मौत होती है। हालांकि, इस रिपोर्ट की वैज्ञानिक प्रमाणिकता संदिग्ध है और ATR ने इसके समर्थन में कोई ठोस डेटा पेश नहीं किया।
GPS ट्रैकिंग और निगरानी प्रणाली का अभाव
इस घटना ने ATR की निगरानी प्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। NTCA के मानकों के अनुसार, GPS कॉलर, AI-सक्षम ट्रैप कैमरे और सैटेलाइट टेलीमेट्री सिस्टम जैसे उपकरण उच्च संघर्ष वाले क्षेत्रों में अनिवार्य रूप से उपयोग किए जाने चाहिए। लेकिन ATR के पास इन निगरानी प्रणालियों का अभाव बना हुआ है, जिससे बाघों की गतिविधियों की रियल-टाइम ट्रैकिंग असंभव हो जाती है।
पर्यावरणविद् सिंहवी के अनुसार, “जब तक वास्तविक समय की ट्रैकिंग प्रणाली लागू नहीं की जाती, तब तक अधिकारियों को पोस्टमॉर्टम अनुमानों पर निर्भर रहना पड़ेगा, जो कि एक गंभीर प्रशासनिक विफलता है और तत्काल सुधार की मांग करता है।”
वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का स्पष्टीकरण
वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि ATR ने NTCA के दिशानिर्देशों का पूरी तरह पालन किया है और किसी भी प्रकार की प्रशासनिक चूक नहीं हुई है।
उन्होंने स्पष्ट किया, “फील्ड डायरेक्टर का प्रारंभिक बयान केवल प्राथमिक अवलोकनों के आधार पर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए जारी किया गया था, जबकि उप-संचालक द्वारा बाद में जारी बयान में पोस्टमॉर्टम के निष्कर्ष शामिल किए गए।”
वरिष्ठ अधिकारियों ने जोर देकर कहा कि दोनों प्रेस विज्ञप्तियाँ परस्पर विरोधाभासी नहीं थीं बल्कि विकसित होती सूचना के अनुसार जारी की गई थीं। ATR ने हमेशा स्वतंत्र गैर-सरकारी विशेषज्ञों को पोस्टमॉर्टम प्रक्रिया में शामिल किया है और WWF-इंडिया तथा स्वतंत्र वन्यजीव कार्यकर्ता अनुराग शुक्ला भी इस जांच का हिस्सा रहे हैं।
अधिकारियों ने GPS कॉलर की अनुपस्थिति को लेकर ATR की नीति का बचाव किया और कहा कि कैमरा ट्रैप, M-Stripes ऐप-आधारित गश्त और द्विवार्षिक निगरानी ATR में पूरी तरह लागू हैं।
उन्होंने प्रजनन संघर्ष को भी सही ठहराया और बताया कि बाघों की बढ़ती संख्या के कारण क्षेत्रीय संघर्ष स्वाभाविक रूप से बढ़ रहे हैं। उन्होंने कार्बेट टाइगर रिजर्व की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि बाघों के बीच 80% संघर्ष क्षेत्रीय विवाद और प्रजनन संघर्ष से संबंधित होते हैं।
निष्कर्ष
ATR में बाघिन AKT-13 की मौत न केवल वन्यजीव संरक्षण में प्रशासनिक खामियों को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि वैज्ञानिक तथ्यों की अनदेखी कर आधिकारिक बयानों को प्रभावित किया जा सकता है। ATR प्रशासन पर लगे आरोपों की पूरी निष्पक्ष जांच आवश्यक है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके और देश में वन्यजीव संरक्षण की विश्वसनीयता बनी रहे।
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