
किसके दबाव में प्रशासन कर रहा है पक्षपात पूर्ण कार्यवाही,
प्रशासन पर लीपापोती का आरोप
// वरिष्ठ प्रोफेसर ने निलंबन आदेश का बचाव करते हुए बताया कि दीपराज वर्मा का नाम पहली शिकायत से संबंधित था, जबकि अंशु जोशी और अन्य दूसरी शिकायत में नामित थे।
डॉक्टर विवेक चौधरी की अध्यक्षता में एंटी-रैगिंग कमेटी ने हॉस्टल का औचक निरीक्षण शुरू किया, वरिष्ठ और जूनियर छात्रों पर निगरानी बढ़ाई गई।
रायपुर,16 नवंबर 2024:
जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, रायपुर में निलंबन आदेश से दीपराज वर्मा का नाम रहस्यमय तरीके से हटाए जाने पर विवाद खड़ा हो गया है। वर्मा का नाम 4 नवंबर को जारी आदेश में शामिल था, लेकिन 11 नवंबर को जारी संशोधित आदेश से इसे हटा दिया गया। इस घटनाक्रम ने कॉलेज प्रशासन पर वर्मा को बचाने के गंभीर आरोप लगाए हैं और कॉलेज की अनुशासनात्मक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

यह प्रकरण रैगिंग के उस मामले से जुड़ा है, जो तब उजागर हुआ जब वरिष्ठ और जूनियर छात्रों के बीच हुई वाट्सऐप चैट सार्वजनिक हुईं। इन संदेशों में रैगिंग को सुनियोजित तरीके से बढ़ाने और विशेष छात्रों को धमकाने की साजिश उजागर हुई। प्रारंभिक निलंबन आदेश में दीपराज वर्मा और अंशु जोशी समेत पांच छात्रों का नाम शामिल था। लेकिन 11 नवंबर को जारी संशोधित सूची में वर्मा का नाम हटाकर किसी अन्य छात्र का नाम जोड़ा गया।
कॉलेज प्रशासन का पक्ष
कॉलेज के एक वरिष्ठ प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “यह कार्रवाई दो अलग-अलग शिकायतों के आधार पर की गई है। दीपराज वर्मा पहली शिकायत में निलंबित किए गए थे, जबकि अंशु जोशी और अन्य चार दूसरी शिकायत में शामिल थे, जिसके कारण उन्हें एक महीने के लिए निलंबित किया गया।”

हालांकि, दीपराज वर्मा का नाम हटाने के इस फैसले ने कॉलेज प्रशासन की पारदर्शिता पर संदेह पैदा कर दिया है। पीड़ित छात्रों और उनके परिजनों ने इस कदम को प्रशासनिक पक्षपात और अनुचित प्रक्रिया करार दिया है।
एंटी-रैगिंग कमेटी की सक्रियता
डॉक्टर विवेक चौधरी के नेतृत्व में एंटी-रैगिंग कमेटी ने कॉलेज हॉस्टल्स में औचक निरीक्षण शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि 2023 और 2025 एमबीबीएस बैच के 150 से अधिक छात्रों पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है। साथ ही, माता-पिता को शामिल कर समस्या का समाधान निकालने की कोशिशें हो रही हैं।

प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल
रैगिंग के शिकार छात्रों ने मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए प्रशासन की निष्क्रियता पर गहरी नाराजगी जाहिर की है। पीड़ितों के परिजनों ने इस मामले को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) तक पहुंचाया, जिसके बाद कॉलेज प्रशासन ने दबाव में आकर पांच छात्रों को निलंबित किया।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के रायपुर अध्यक्ष, डॉ. राकेश गुप्ता ने प्रशासन की धीमी प्रतिक्रिया और जवाबदेही की कमी पर कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, “प्रारंभ से ही इस प्रकरण को गलत तरीके से संभाला गया। प्रशासन की उदासीनता छात्रों और उनके परिजनों के लिए गलत संदेश देती है।”
जवाबदेही और सख्त कार्रवाई की मांग
सोसाइटी अगेंस्ट वायलेंस इन एजुकेशन (SAVE) ने छत्तीसगढ़ एंटी-रैगिंग एक्ट के तहत तत्काल एफआईआर दर्ज करने और न्याय सुनिश्चित करने की मांग की है। यह प्रकरण न केवल कॉलेज प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि रैगिंग विरोधी कानूनों के सख्त क्रियान्वयन की आवश्यकता को भी उजागर करता है।
इस विवाद ने जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, रायपुर की साख को संकट में डाल दिया है। पारदर्शिता और निष्पक्ष कार्रवाई से ही कॉलेज अपने छात्रों का भरोसा वापस जीत सकता है।
Live Cricket Info