
रतनपुर महामाया मंदिर,आस्था और इतिहास केंद्र

रतनपुर। चैत्र नवरात्र की नवमी पर रतनपुर स्थित प्राचीन महामाया मंदिर में मां महामाया का भव्य राजश्री श्रृंगार किया गया। देवी मां को चार किलो से अधिक सोने के आभूषणों से श्रृंगारित किया गया। रविवार सुबह आरती और नैवेद्य अर्पण के बाद मंदिर परिसर में कन्या और ब्राह्मण भोज का आयोजन किया जाएगा।
मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष आशीष सिंह ठाकुर ने बताया कि परंपरा अनुसार देवी के आभूषण हर बार बैंक के लॉकर से लाकर श्रृंगार के लिए उपयोग किए जाते हैं और अगले दिन पुनः सुरक्षित रूप से जमा कर दिए जाते हैं। इस बार भी शनिवार को मां के आभूषण लॉकर से लाए गए। चार किलो से अधिक वजनी स्वर्ण आभूषणों में रानीहार, कंठहार, मोहर हार, ढार, चंद्रहार, पटिया सहित नौ प्रकार के हार, करधन और नथ शामिल हैं राजश्री श्रृंगार के बाद मां महामाया की महाआरती की गई और विशेष नैवेद्य अर्पित किया गया दोपहर में कन्या भोज और ब्राह्मण भोज का आयोजन होगा, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होंगे।

छत्तीसगढ़ की धार्मिक राजधानी माने जाने वाले रतनपुर में स्थित महामाया मंदिर का इतिहास करीब एक हजार साल पुराना है। कल्चुरी वंश के राजा रत्नदेव प्रथम ने इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में करवाया था। मान्यता है कि शिकार करते हुए राजा रतनपुर पहुंचे थे, जहां रात में उन्हें दिव्य प्रकाश में मां महामाया के दर्शन हुए। इसके बाद उन्होंने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाया और मंदिर का निर्माण करवाया।
बताया जाता है कि यहां माता सती का दाहिना स्कंध गिरा था, जिससे यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में भी प्रसिद्ध है। मंदिर का निर्माण मंडप-नगार शैली में हुआ है और यह 16 मजबूत स्तंभों पर टिका हुआ है। गर्भगृह में विराजित मां महामाया की साढ़े तीन फीट ऊंची प्रतिमा को लेकर मान्यता है कि इसके पीछे कभी देवी सरस्वती की प्रतिमा भी थी, जो अब विलुप्त हो चुकी है। एक समय यहां नरबलि की परंपरा थी, जिसे राजा बहारसाय ने बंद करवा दिया। अब पशुबलि की प्रथा भी समाप्त हो चुकी है। नवरात्र के दौरान यहां देशभर से हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
Live Cricket Info