कांग्रेस विधायक पर FIR शिक्षको को नोटीस देकर खानापूर्ति आखिर & BSP; शिक्षा विभाग पर चुप्पी क्यों?
कांग्रेस विधायक पर FIR शिक्षको को नोटीस देकर खानापूर्ति आखिर & BSP; शिक्षा विभाग पर चुप्पी क्यों?

बच्चों से आंदोलन… प्रशासन कहाँ था, बच्चों को आंदोलन में लाने की इजाजत किसने दी? क्या प्रधानपाठकों और शिक्षकों को इसकी जानकारी थी? अगर नहीं थी, तो स्कूल से बच्चे बाहर कैसे निकले? और अगर जानकारी थी, तो अब तक उन शिक्षकों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
जांजगीर-चांपा | 1 जुलाई 2025 छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा में खोखसा, जांजगीर से पीथमपुर सड़क निर्माण की मांग को लेकर हुए एक आंदोलन ने शिक्षा व्यवस्था, प्रशासनिक जवाबदेही और बाल अधिकारों पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि इस प्रदर्शन में स्कूली बच्चों को न केवल शामिल किया गया, बल्कि उन्हें स्कूल ड्रेस में पानी मे बैठाकर नारेबाज़ी कराई गई और पोस्टर थमाए गए — वह भी तेज़ बारिश के बीच।
इस घटना ने प्रशासनिक तंत्र की संवेदनहीनता, शिक्षा विभाग की निष्क्रियता और बच्चों के भविष्य के साथ किए जा रहे प्रयोग को उजागर कर दिया है। जबकि कांग्रेस विधायक समेत कुंल 11 लोगो पर FIR दर्ज हो चुकी है, शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों की चुप्पी अब सवाल बन चुकी है — क्या सत्ता और सिस्टम की यह चुप्पी “बाल अधिकारों का खुला उल्लंघन” नहीं? तब यह सवाल उठना लाज़िमी है — क्या सड़क की लड़ाई में अब मासूमों की पढ़ाई गिरवी रखी जाएगी? बारिश के बीच सरकारी स्कूल के बच्चे स्कूल ड्रेस में सड़क पर बैठे, नारे लगाए, पोस्टर थामे और शिक्षा व्यवस्था को मुंह चिढ़ाते रहे। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यह है कि —
प्रशासन क्या कर रहा था जब बच्चों को सड़क पर बिठाया जा रहा था?
क्या आंदोलन की जानकारी जिला प्रशासन को पहले से नहीं थी?
क्या जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) को यह सूचना नहीं मिली कि सरकारी स्कूल के बच्चे प्रदर्शन में शामिल हैं?
स्कूल ड्रेस में आए इन बच्चों को किसने रोका? या कोई रोकने आया ही नहीं?
जनप्रतिनिधियों पर FIR हो सकती है, तो शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी तय क्यों नहीं?
कांग्रेस विधायक व्यास नारायण कश्यप और उनके सहयोगियों पर एफआईआर हो चुकी है, लेकिन क्या प्रशासन सिर्फ राजनीतिक चेहरों को निशाना बनाकर अपनी जवाबदेही से बच रहा है?
बच्चों को जिस वक्त आंदोलन में बैठाया गया, उस वक्त सरकारी स्कूलों में पढ़ाई होनी थी — फिर यह विद्यालय प्रबंधन की विफलता नहीं तो क्या है?
बच्चों के मनोविज्ञान और भविष्य से यह खिलवाड़ नहीं तो क्या है?
क्या उन्हें बताया गया कि वे किन परिस्थितियों में हिस्सा ले रहे हैं?
क्या किसी बाल संरक्षण अधिकारी को इसकी जानकारी दी गई?
यह सिर्फ कानूनी उल्लंघन नहीं, “बाल अधिकारों का खुला हनन” है — क्या प्रशासन को यह दिखाई नहीं दिया?
क्या प्रशासन जानबूझकर चुप है या उसकी व्यवस्था ही ठप है?
क्या जिला प्रशासन सिर्फ मीडिया कवरेज के बाद ही जागता है?
क्या यह लापरवाही नहीं कि बच्चे खुलेआम राजनीति में झोंके जा रहे हैं और प्रशासन मौन साधे बैठा है?
लोगो का सवाल — कार्रवाई कब तक सिर्फ नेताओं तक सीमित रहेगी?
क्या सरकारी कर्मचारीयो को इस पूरे मामले मे बचाया जा रहा है ” क्या कभी इन्हें कभी दोषी नहीं ठहराया जाएगा?
क्या शिक्षा विभाग को सिर्फ बच्चों की परीक्षा लेने के लिए बनाया गया है, ज़िम्मेदारी तय करने के लिए नहीं?
प्रशासनिक चुप्पी की पोल खोलती है यह घटना
इस पूरे मामले में अब तक ना कोई शिक्षक सस्पेंड हुआ, ना किसी स्कूल की जांच शुरू हुई। सवाल उठ रहे हैं, रिपोर्टें तैयार हो रही हैं, लेकिन कार्रवाई अब भी अधूरी है।
ब्लाक शिक्षा अधिकारी बलौदा बताया कि इस मामले पर संबंधित प्रधान पाठक को शो कास नोटीस जारी कर दिया गया है किसी भी हाल में बच्चों को स्कूल टाइम मे अन्य स्थान लेकर नही जाना है
आरके खंडे बलौदा
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