कोटा की उपेक्षा पर गरजे पूर्व जनपद अध्यक्ष – बोले विकास सिर्फ कागजों में,जमीनी हकीकत दर्दनाक

भाजपा सरकार कोटा विधानसभा के साथ कर रही सौतेला व्यवहार : शुक्ला
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के 25 वर्ष बीत जाने के बाद भी कोटा विधानसभा आज भी विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर है। भूपेश सरकार के बाद प्रदेश में भाजपा की सरकार बने लगभग दो वर्ष हो चुके हैं, लेकिन बिलासपुर जिले के आदिवासी बाहुल्य कोटा क्षेत्र की स्थिति जस की तस बनी हुई है। कोटा विधानसभा की इस उपेक्षा को पूर्व जनपद अध्यक्ष संदीप शुक्ला ने भाजपा सरकार का “सौतेला व्यवहार” बताया है।

शुक्ला ने अपने बयान में कहा कि कोटा विधानसभा में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति बेहद खराब है। ब्लॉक मुख्यालय स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में आए दिन दवाइयों की कमी, एक्स-रे मशीन की खराबी और डॉक्टरों की अनुपस्थिति जैसी समस्याएं बनी रहती हैं। जब ब्लॉक के सबसे बड़े स्वास्थ्य केंद्र की यह हालत है, तो दूरस्थ क्षेत्रों की स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। बैगा बाहुल्य क्षेत्रों—खोँगसरा, टेंगनमाड़ा, बेलगहना, केंदा, चपोरा, पुडू, शिवतराई, नवागांव, करगीकला आदि में संचालित स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति तो और भी बदतर है। इन क्षेत्रों में सर्पदंश, जंगली जानवरों के हमले, मलेरिया, हैजा और उल्टी-दस्त जैसी बीमारियों से हर साल हजारों लोग प्रभावित होते हैं, परंतु स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारी मौन बने हुए हैं।

शुक्ला ने बताया कि दुर्गम इलाकों में मरीजों को पहुंचाने के लिए डीएमएफ मद से संचालित बाइक एंबुलेंस सेवा भी वेतन न मिलने के कारण बंद कर दी गई थी, जिसे दोबारा शुरू करने में तीन महीने से अधिक का समय लग गया। उन्होंने कहा कि यह सरकार की उदासीनता का प्रमाण है।
शिक्षा के क्षेत्र में भी स्थिति संतोषजनक नहीं है। कोटा ब्लॉक के कई स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं। अमागोहन, टेंगनमाड़ा, बेलगहना, केंदा, चपोरा और पुडू जैसे हाई स्कूलों में कई विषयों के शिक्षक अनुपलब्ध हैं, जिससे बच्चों को पढ़ाई के लिए दूसरे विषयों के शिक्षकों पर निर्भर रहना पड़ता है। कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू किए गए आत्मानंद विद्यालयों की स्थिति भी अब राजनीतिक उपेक्षा के कारण बिगड़ती जा रही है।
विकास की बदहाली केवल शिक्षा और स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है। सड़कों की स्थिति भी बेहद खराब है। कोटा ब्लॉक मुख्यालय से अंतिम छोर के गांवों की दूरी 60 से 70 किलोमीटर तक है, लेकिन मार्ग इतने जर्जर हैं कि लोगों को जान जोखिम में डालकर आवागमन करना पड़ता है। खोँगसरा से कोटा, बेलगहना से सलका होते हुए कोटा, केंदा से कोटा, बेलगहना से झींगतपुर, और कोटा से रतनपुर जाने वाले मार्गों पर बड़े-बड़े गड्ढों के कारण यात्रा बेहद खतरनाक हो गई है।
शुक्ला ने कहा कि कोटा विधानसभा का आम नागरिक खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। भाजपा सरकार “सुशासन” का दावा तो करती है, परंतु कोटा के लोगों के साथ सौतेला व्यवहार जारी है। उन्होंने राज्य सरकार से मांग की कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं में तत्काल सुधार किया जाए। साथ ही चेतावनी दी कि यदि जल्द समाधान नहीं हुआ, तो कोटा की जनता अपने अधिकारों के लिए आंदोलन करने से पीछे नहीं हटेगी।
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