
छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर अपूर्ण है. यहां किसी भी बीमारी का इलाज कराना एक लंबी लड़ाई लड़ने जैसा है.
बस्तर संभाग के 7 जिलों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 355 पद स्वीकृत हैं. लेकिन हकीकत ये है कि सिर्फ़ 45 विशेषज्ञ के भरोसे ही सरकारी अस्पतालें संचालित हो रही हैं. यानी लगभग 310 पद खाली है.
बस्तर के हर जिलों में डॉक्टरों की कमी है. साथ ही सभी जिले में अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं का भी अभाव है. जिससे कहा जा सकता है कि बस्तर का स्वास्थ्य व्यवस्था वेंटीलेटर पर है.
स्वास्थ विभाग के संयुक्त संचालक कार्यालय के आंकड़ों के मुताबिक बस्तर संभाग के 7 जिलों में से बस्तर जिले में विशेषज्ञों के 67 पद स्वीकृत है. जबकि केवल 12 विशेषज्ञ सेवा दे रहे हैं.
इसके अलावा कांकेर में 68 पद में से केवल 14 डॉक्टर नियुक्त हैं. कोंडागांव जिले में 51 स्वीकृत पद हैं, जिसमें केवल 7 डॉक्टर सेवा दे रहे हैं.
नारायणपुर जिले में 31 में 5 और दंतेवाड़ा जिले में 44 में से केवल 4 विशेषज्ञ है. वहीं बीजापुर जिले में 62 में 3 विशेषज्ञ है.
सबसे बुरा हाल तो सुकमा जिले का है, जहां 32 पद स्वीकृत है, लेकिन एक भी विशेषज्ञ नहीं है.
जबकि बस्तर के इन जिलों में नक्सल, सड़क हादसे, प्रसव की जटिलताएं और वायरल बीमारियों की भरमार है.
जब छोटे अस्पतालों में इलाज नहीं हो पाता है तो इसका दबाव सीधे ज़िला अस्पतालों पर आता है.
कई गंभीर केस भी सामने आते हैं, लेकिन उनके विशेषज्ञ ही नहीं है. ओपीडी में भीड़, ऑपरेशन थिएटर में प्रतीक्षा और वार्डों में इलाज की बजाय उम्मीदें पड़ी होती हैं.एक विशेषज्ञ पर तीन-तीन प्रभार
बस्तर में एक विशेषज्ञ डॉक्टर एक साथ तीन-तीन विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहा है. इसमें जांच, परामर्श और ऑपरेशन शामिल है.
डॉक्टर नहीं होने से मरीजों की भी मजबूर है कि उन्हें छोटी-छोटी बीमारियों के इलाज के लिए रायपुर, विशाखापट्टनम या हैदराबाद जाना पड़ता है.
सैकड़ों किलोमीटर की दूरी और कई बार समय की कमी जान पर भारी पड़ता है.
सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, जो जगदलपुर में केंद्र सरकार की योजना से बनकर तैयार हो गया है लेकिन आज तक शुरू नहीं हुआ है.
इस संबंध में जिले के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. संजय प्रसाद का कहना है कि भवन तैयार है, मशीनें लग चुकी हैं, लेकिन डॉक्टर और विशेषज्ञ नहीं है.
डॉक्टरों की कमी पर पक्ष-विपक्ष आमने-सामने
बताया जा रहा है कि डॉक्टरों की नियुक्ति में सबसे बड़ी रुकावट है फंडिंग.
जिला खनिज न्यास निधि (डीएमएफ) जैसे फंड मौजूद हैं, जिनका उपयोग स्वास्थ्य सेवाओं में हो सकता है, लेकिन अधिकतर जिलों में यह फंड अन्य योजनाओं या कागज़ी योजनाओं में ही खप गया है.
दंतेवाड़ा जिले को छोड़कर बाकि ज़िलों में डीएमएफ का सही उपयोग डॉक्टरों की नियुक्ति में नहीं हुआ.
इस पर अब राजनीतिक बयानबाज़ी भी शुरू हो गई है. विपक्ष सरकार पर लापरवाही का आरोप लगा रहा है तो सत्ता पक्ष बहुत जल्द नियुक्तियों का वादा कर रहा है.
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