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बिना मान्यता संचालित स्कूलों पर हाईकोर्ट सख्त – बच्चों के प्रवेश पर लगाई रोक, शिक्षा सचिव से मांगा जवाब

बिलासपुर – छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने प्रदेश में बिना मान्यता चल रहे निजी स्कूलों में छात्रों के प्रवेश पर कड़ी आपत्ति जताते हुए अगली सुनवाई तक प्रवेश पर रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और न्यायमूर्ति रविंद्र अग्रवाल की युगल पीठ ने यह निर्देश रायपुर निवासी कांग्रेस नेता विकास तिवारी द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।

याचिका में अधिवक्ता संदीप दुबे और मानस वाजपेयी के माध्यम से यह बताया गया कि राज्य में नर्सरी से लेकर कक्षा एक तक के हजारों स्कूल बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं, जिनमें मोटी फीस लेकर बच्चों का दाखिला किया जा रहा है। उदाहरण स्वरूप रायपुर स्थित ‘कृष्णा पब्लिक स्कूल’ की विभिन्न शाखाओं का उल्लेख किया गया।

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हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग के डायरेक्टर द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्र को भ्रामक और नियम विरुद्ध मानते हुए विभाग के सचिव को व्यक्तिगत शपथ पत्र में स्पष्ट करने का निर्देश दिया है कि आखिर अदालत को गलत जानकारी क्यों दी गई।

शपथ पत्र में कहा गया था कि नर्सरी से केजी टू तक संचालित स्कूलों को मान्यता लेना अनिवार्य नहीं है, जबकि याचिकाकर्ता पक्ष ने अदालत को बताया कि यह छत्तीसगढ़ शासन द्वारा वर्ष 2013 में लागू निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन है। अधिनियम के अनुसार नर्सरी से केजी टू तक की कक्षाएं संचालित करने वाले सभी गैर शासकीय स्कूलों को भी मान्यता प्राप्त करना अनिवार्य है।

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इस बात पर नाराजगी जताते हुए कोर्ट ने पूछा कि 2013 में तत्कालीन सचिव केआर पिस्दा द्वारा जारी निर्देश को डीपीआई ने क्यों छुपाया? कोर्ट ने इस लापरवाही को गंभीरता से लेते हुए शिक्षा सचिव को अगली सुनवाई (5 अगस्त) से पूर्व व्यक्तिगत रूप से स्पष्टीकरण देने का आदेश दिया है।

प्रवेश पर पूर्ण रोक, उल्लंघन पर भारी जुर्माना

कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि आगामी आदेश तक प्रदेश में बिना मान्यता वाले निजी स्कूलों में बच्चों के प्रवेश पर रोक रहेगी। यदि आदेश के बाद किसी भी स्कूल में प्रवेश हुआ तो संबंधित संस्थान पर जुर्माना लगाया जाएगा, जो मुआवजे के तौर पर पीड़ित छात्रों को दिया जाएगा।

इस फैसले को छत्तीसगढ़ में शिक्षा के क्षेत्र में संवेदनशील और ऐतिहासिक हस्तक्षेप माना जा रहा है, जिससे हजारों बच्चों के शैक्षणिक अधिकार और अभिभावकों के आर्थिक हितों की रक्षा हो सकेगी।

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