सीएमएचओ कार्यालय में नहीं लगा है बोर्ड! सरकारी दफ्तर या धर्मशाला?

सरकारी दफ्तर की पहचान क्या होती है? एक साफ–सुथरा परिसर, स्पष्ट नाम–पट्ट और जिम्मेदार अफसरों की मौजूदगी — लेकिन जब इन बुनियादी मानकों की धज्जियां उड़ती दिखें, तो सवाल उठना लाज़िमी है। धमतरी का CMHO कार्यालय आज किसी सरकारी दफ्तर से ज़्यादा एक लावारिस इमारत जैसा नजर आता है — न नाम की पहचान, न व्यवस्था की परवाह। जिस जगह से जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था को दिशा मिलनी चाहिए, वही जगह खुद अस्त–व्यस्त है। सवाल ये है कि जब मुख्य स्वास्थ्य कार्यालय ही अपनी पहचान खो चुका है, तो आम जनता को क्या उम्मीद रखनी चाहिए? क्या प्रशासन की आंखों पर पर्दा पड़ चुका है या ये लापरवाही अब ‘नया सामान्य’ बन चुकी है?
धमतरी। ज़िले में स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर सवाल उठ खड़े हुए हैं। ज़िले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) कार्यालय में न तो कोई नाम–पट्ट (बोर्ड) लगा है, और न ही यह कहीं से सरकारी दफ्तर जैसा प्रतीत होता है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस कार्यालय की हालत देखकर कोई भी इसे सरकारी दफ्तर नहीं समझ सकता। कार्यालय में न तो विभाग का नाम लिखा है, न ही पदाधिकारियों की जानकारी। जिस अधिकारी कर्मचारी का तबादला हो चुका है उनका भी नाम अब तक दिखाई देता है। ऐसे में आम नागरिकों को यह तक पता नहीं चलता कि किस विभाग में पहुँचे हैं।
क्या यह सरकारी कार्यालय है, या फिर कोई धर्मशाला?
इतना ही नहीं, कार्यालय परिसर की साफ-सफाई भी बदहाल है। आने-जाने वालों को ना तो किसी अधिकारी की उपस्थिति की जानकारी मिलती है, और न ही कोई गार्ड या रिसेप्शन व्यवस्था नजर आती है।
जनता और जनप्रतिनिधियों का सवाल है कि जब स्वास्थ्य विभाग खुद अपने कार्यालय की पहचान तक नहीं बना पाया, तो ज़िले की स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति कैसी होगी, यह सहज ही समझा जा सकता है।
• सीएमएचओ कार्यालय में बोर्ड क्यों नहीं लगाया गया?
• कार्यालय को व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी किसकी है?
• क्या जनसंपर्क और पारदर्शिता अब विभाग की प्राथमिकता नहीं रही?
लोगो की माँग:
धमतरी की आम जनो ने प्रशासन से माँग की है कि तत्काल प्रभाव से सीएमएचओ कार्यालय को व्यवस्थित किया जाए, स्पष्ट पहचान (बोर्ड) लगाया जाए, और आम नागरिक को आवश्यक जानकारी आसानी से मिल सके — यह सुनिश्चित किया जाए।
सीएमएचओ का बहाना: बोर्ड टूट गया।
मुख्यचिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.यूएल कौशिक का कहना है कि आँधी तूफ़ान से बोर्ड टूट गया है, उसे जल्दी ही ठीक कर लिया जाएगा।
जबकि सीएमएचओ कार्यालय के सार्वजनिक शौचालय का बेसिन ग़ायब है और गंदगी का ऐसी की वहाँ सांस लेना कठिन है। खिड़कियों पर गुटखा खाकर थूकने के निशान इस सरकारी कार्यालय की ख़ूबसूरती पर चारचाँद लगा रहे हैं।
ऐसे में यहां आने वाला हर आम नागरिक भ्रमित रहता है कि वह सही जगह आया भी है या नहीं। सरकारी दफ्तरों में पारदर्शिता और पहचान की प्राथमिकता कहां गई?
जिस दफ्तर से स्वास्थ्य सुधार की निगरानी होनी चाहिए, जब वही बीमार हो, तो सिस्टम कैसे ठीक होगा?
एक सवाल सीधा–सीधा उठता है — जब स्वास्थ्य विभाग का मुख्य कार्यालय ही पहचानविहीन हो, तो क्या जनता को स्वास्थ्य सेवाएँ समय पर मिल पाएंगी? क्या ज़िम्मेदारी और जवाबदेही बीते जमाने की बात हो गई है।
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