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अफ़सर का सफ़र, न्यायधानी की नज़र, कलम की ताक़त, कुर्सी की डगर… इस बार पढ़िए-जनसेवा, ईमानदारी और सेवा-समर्पण की मिसाल: आईपीएस रामकृष्ण साहू की दास्तान

जनसेवा, नेतृत्व और ज़मीन से जुड़ाव की दास्तान

बेमेतरा –  छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गाँव से निकलकर आईपीएस रामकृष्ण साहू ने राज्य प्रशासनिक सेवा से आईपीएस तक का सफ़र तय किया। साधारण परिवार और सीमित साधनों के बीच पली-बढ़ी ज़िंदगी ने उन्हें कठिनाइयों से लड़ना सिखाया। यही जज़्बा आगे चलकर पुलिस सेवा में जनसेवा, ईमानदारी और ज़मीनी जुड़ाव की पहचान बना। आज वे बेमेतरा जिले के पुलिस अधीक्षक के रूप में न केवल क़ानून-व्यवस्था की मज़बूती का प्रतीक हैं, बल्कि लाखो युवाओं के लिए हौसले और उम्मीद की प्रेरणा भी हैं।

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बेमेतरा। पुलिस वर्दी केवल अधिकार का प्रतीक नहीं, बल्कि जनता की सुरक्षा और विश्वास की ज़िम्मेदारी भी है। इस सच्चाई को अपने जीवन में उतारने वाले आईपीएस रामकृष्ण साहू ने पुलिस सेवा के विविध पड़ावों और अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि कैसे एक साधारण ग्रामीण परिवेश से निकलकर उन्होंने प्रशासनिक सेवा में अपनी पहचान बनाई। उनका जीवन-सफ़र युवाओं के लिए उम्मीद और हौसले की मिसाल है।

साधारण घर से असाधारण राह तक
मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे, पिता शिक्षक थे। बचपन कबीरधाम ज़िले के कुंडा गाँव में बीता। शिक्षा की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए वे बिलासपुर के बहुउद्देश्यीय आदर्श उच्चतर माध्यमिक विद्यालय तक पहुँचे। छात्रावास के दिनों में किताबें और प्रतियोगी पत्रिकाएँ उनकी दोस्त बनीं। इन्हीं ने उनके भीतर सिविल सेवा का जज़्बा जगाया। निरंतर मेहनत और धैर्य के बाद उनका चयन डीएसपी पद पर हुआ, और वहीं से पुलिस सेवा का कारवाँ शुरू हुआ।

ग्यारह ज़िलों का अनुभव, ग्यारह इम्तिहान
रामकृष्ण साहू अब तक ग्यारह से अधिक ज़िलों में तैनात रह चुके हैं-बलरामपुर, सूरजपुर, अंबिकापुर, जांजगीर-चांपा, कोरबा, बिलासपुर, मुंगेली, बेमेतरा, बीजापुर और दंतेवाड़ा। वे कहते हैं-“हर ज़िला एक नया इम्तिहान रहा। कहीं सरहद पर माओवादी असर, कहीं बस्तर की भाषा और सुरक्षा की चुनौतियाँ, तो कहीं शहरी इलाक़ों में कानून-व्यवस्था की नाज़ुक स्थिति।बिलासपुरको मना कर्मभूमि
अपनी कार्ययात्रा का सबसे यादगार पड़ाव वे बिलासपुर को मानते हैं। उनके शब्दों में-
“बिलासपुर मेरी कर्मभूमि है। अपने ही लोगों के बीच सेवा करना मेरे लिए सबसे बड़ा सौभाग्य रहा।

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नशा उन्मूलन और जनजागरण
साहू का मानना है कि अपराध की जड़ अक्सर नशे में छिपी होती है। इसी सोच के साथ उन्होंने “हमर पुलिस हमर गाँव” और “हमर पुलिस हमर बाज़ार” जैसे अभियान चलाए। उनके मुताबिक़-“पुलिस की जीत अपराधी को पकड़ने में नहीं, बल्कि उस अपराध को जन्म ही न लेने देने में है।”कम्युनिटी पुलिसिंगपुलिस और जनता का रिश्ता
नक्सल प्रभावित इलाक़ों में उन्होंने कम्युनिटी पुलिसिंग को अहमियत दी। थानों में आने वाले लोगों की शिकायतों को संवेदनशीलता से सुनना, त्वरित कार्रवाई करना और छोटे-छोटे मानवीय प्रयास-जैसे गाँववालों को गुड़-पानी देना या सर्द रातों में कंबल पहुँचाना-इन सबने पुलिस और जनता के बीच विश्वास की डोर को मज़बूत किया।

नेतृत्व का फ़लसफ़ा
उनकी नज़र में पुलिस और जनता का रिश्ता महज़ कानून का नहीं, बल्कि भरोसे और अपनत्व का भी है। उनका दिन सुबह छह बजे व्यायाम और ध्यान से शुरू होता है। उसके बाद कार्यालयीन कार्य, जनसुनवाई और क्षेत्रीय भ्रमण में गुज़रता है। उनका नेतृत्व दर्शन साफ़ है-“हुक़्म से नहीं, बल्कि मिसाल से नेतृत्व करो।

निजी जीवन और युवाओं को पैग़ाम
ज़िम्मेदारियों के बीच वे परिवार को समय देते हैं। गीता और रामचरितमानस उनका आत्मिक सहारा हैं। पुराने गीत और देशभक्ति फ़िल्में उन्हें नई ऊर्जा देती हैं। युवाओं को उनका संदेश है-
“ईमानदारी, मेहनत और सब्र को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाइए। यह सेवा केवल एक पेशा नहीं, बल्कि समाज को सुरक्षित और न्यायपूर्ण बनाने का सबसे बड़ा मौक़ा है।”

आईपीएस रामकृष्ण साहू का जीवन यह सबक़ देता है कि यदि जज़्बा और समर्पण हो तो हर मुश्किल आसान हो जाती है और जनता का भरोसा हर चुनौती पर फ़तह दिलाता है। और इस सिलसिले में दिनकर की पंक्तियाँ उनके व्यक्तित्व का आईना बनकर गूंजती हैं-
मानव जब ज़ोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।”

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