
जांच एजेंसियों को मिले सबूतों के अनुसार, इन अफसरों ने न केवल सट्टेबाजों को सुरक्षा कवच दिया बल्कि कई बार जांच को गुमराह करने की भी कोशिश की। कुछ मामलों में सबूत छुपाने, आरोपी को बचाने और फाइलें दबाने के आरोप भी सामने आए हैं।
रायपुर/दिल्ली।
छत्तीसगढ़ में एक बार फिर महादेव सट्टा एप का नाम सुर्खियों में है, लेकिन इस बार मामला सिर्फ ऑनलाइन जुए तक सीमित नहीं है—अब खाकी पर सवाल खड़े हो रहे हैं! जिस वर्दी को जनता अपनी सुरक्षा की गारंटी मानती है, उसी वर्दी पर अब सट्टेबाजों से गठजोड़ का गंभीर आरोप लग रहा है।

करोड़ों का काला खेल और ‘क्लीन‘ दिखने की कोशिश
महादेव एप—एक ऐसा नाम जो ऑनलाइन सट्टेबाजी की दुनिया में इंटरनेशनल ब्रांड बन चुका है। दुबई से ऑपरेट होने वाले इस सिंडिकेट ने भारत में करोड़ों की सट्टेबाजी का नेटवर्क खड़ा कर लिया। लेकिन हैरानी की बात ये है कि इस नेटवर्क के साए में कुछ अफसर भी ‘सेटिंग’ पर काम कर रहे थे।
सूत्रों के मुताबिक, ED, आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) और अन्य जांच एजेंसियों की रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ के कई IPS अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई है। इनमें प्रमुख नाम हैं:
IPS अभिषेक पल्लव – सोशल मीडिया में रील वाले बाबा के नाम से मशहूर, लेकिन अब महादेव एप से ‘संबंध’ की चर्चाओं में।
IPS प्रशांत अग्रवाल – जिनके कार्यकाल में कई बार विवाद हुए, अब उनका नाम भी इस मामले में जोड़ा जा रहा है।
IPS आनंद छाबड़ा – पहले भी कुछ मामलों को लेकर चर्चा में रहे, अब महादेव एप से संबंधों पर जांच एजेंसियों की नज़र।
IPS आरिफ शेख – छवि एक प्रोफेशनल अफसर की रही है, लेकिन अब सवालों के घेरे में।
दो और IG रैंक के IPS अधिकारी CBI के रडार पर, एक को बचा ले गई ऊपरी राजनीतिक पकड़
सूत्रों के अनुसार, दो और IG रैंक के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) की निगरानी में हैं। इन दोनों के खिलाफ छत्तीसगढ़ सरकार ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17 (A) के तहत अभियोजन की अनुमति दी थी, जिसे सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) द्वारा जारी किया गया था। यह विभाग मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के अधीन है।
हालांकि, जब पिछली बार CBI ने बड़े पैमाने पर छापेमारी की थी, तब इन दोनों अधिकारियों को उस कार्रवाई में शामिल नहीं किया गया। इस पर अब कई स्तरों पर सवाल उठने लगे हैं।
इसी क्रम में एक अन्य IG रैंक के अधिकारी ऐसे भी हैं जिनके विरुद्ध धारा 17 (A) की स्वीकृति भी अब तक नहीं मिल सकी। बताया जाता है कि उनकी राजनीतिक पकड़ इतनी मज़बूत है कि वे मौजूदा सरकार में भी प्रभावशाली माने जाते हैं। यही कारण है कि वे जांच प्रक्रिया से पूरी तरह बाहर रहे। यह अधिकारी उस समय दुर्ग रेंज IG के रूप में पदस्थ थे जब बहुचर्चित महादेव सट्टा नेटवर्क की शुरुआत भिलाई से हुई थी।
उल्लेखनीय है कि यह अधिकारी पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के शीर्ष नेताओं के बेहद करीबी माने जाते रहे हैं। ऐसे में अब पूरी जांच प्रक्रिया पर सवालिया निशान लग रहा है। खासतौर पर वे अधिकारी और कर्मचारी जो CBI की छापेमारी की जद में आए थे, वे भी अब यह सवाल उठा रहे हैं कि आखिर कुछ प्रभावशाली नाम इस प्रक्रिया से बाहर क्यों हैं?
जांच को प्रभावित करने के आरोप
जांच एजेंसियों को मिले सबूतों के अनुसार, इन अफसरों ने न केवल सट्टेबाजों को सुरक्षा कवच दिया बल्कि कई बार जांच को गुमराह करने की भी कोशिश की। कुछ मामलों में सबूत छुपाने, आरोपी को बचाने और फाइलें दबाने के आरोप भी सामने आए हैं।
अब पोस्टिंग की जोड़–तोड़ में जुटे अफसर
जैसे ही मामला तूल पकड़ने लगा, इन अफसरों की ‘पोस्टिंग बचाओ मुहिम‘ शुरू हो गई है। सूत्रों का कहना है कि दिल्ली के गलियारों से लेकर रायपुर के पावर सेंटर तक ये अफसर राजनीतिक कनेक्शन और ऊपर की सेटिंग के जरिए खुद को ‘सिस्टम से बाहर‘ करने की कोशिश में लगे हुए हैं।
सिस्टम पर जनता का भरोसा तब डगमगाने लगता है जब जिनसे सुरक्षा की उम्मीद हो, वही गुनहगारों के साझेदार बन जाएं। सवाल यही है—क्या कानून का राज चलेगा या फिर ‘सेटिंग सिस्टम’ एक बार फिर जीत जाएगा?
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