अफ़सर का सफ़र, Nyaydhani की नज़र, कलम की ताक़त, कुर्सी की डगर…इस बार पढ़िए: IPS विजय अग्रवाल की जीवन गाथा…संपादक कान्हा तिवारी की कलम से..

IPS विजय अग्रवाल: ज़मीन से जुड़े अफसर, जिन्होंने सेवा को बनाया मिशन
राज्य पुलिस सेवा से आईपीएस बनने तक का सफर, हर जिले में दिखाई मजबूत पकड़
राज्य पुलिस सेवा में बतौर डीएसपी करियर की शुरुआत करने वाले विजय अग्रवाल आज भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में एक मजबूत, अनुभवी और भरोसेमंद अफसर माने जाते हैं। वे उन अधिकारियों में हैं, जिनकी पहचान सिर्फ वर्दी से नहीं, बल्कि जमीनी काम से बनी है। फील्ड से जुड़े अनुभव, आम जनता से सीधा संवाद और हर चुनौती को शांत दिमाग से हैंडल करने की उनकी शैली उन्हें बाकी अफसरों से अलग बनाती है।
प्रमोशन के बाद जब वे आईपीएस बने, तब भी उनकी कार्यशैली नहीं बदली। एसपी के रूप में उन्हें जिन जिलों की कमान सौंपी गई—जशपुर, जांजगीर–चांपा, सरगुजा, बलौदा बाजार और अब दुर्ग—वहाँ हालात सामान्य नहीं थे। लेकिन हर बार उन्होंने अपनी मौजूदगी से कानून–व्यवस्था को न सिर्फ संभाला, बल्कि जनता का भरोसा भी जीता। वर्तमान दुर्ग एसएसपी विजय अग्रवाल की जीवन गाथा …
छत्तीसगढ़ की सोंधी मिट्टी में जब एक बालक ने आंखें खोलीं, तब शायद किस्मत को भी नहीं पता था कि यही बालक एक दिन हजारों उम्मीदों का प्रहरी बनेगा। गांव की गलियों से निकलकर जनमानस की सुरक्षा का प्रतीक बनने की इस यात्रा का नाम है — विजय अग्रवाल।
नगपुरा की मिट्टी में बोया गया विश्वास का बीज
3 अगस्त 1974 को रायपुर जिले के नगपुरा गांव में जन्मे विजय अग्रवाल का बचपन ज़मीन से जुड़ा, खेती–बाड़ी की सादगी से सना और सामाजिक चेतना से गढ़ा गया था। उनके दादा उस गांव के मालगुज़ार रहे — जिनके पास केवल खेत नहीं, लोगों की जिम्मेदारियां भी थीं। परिवार के पास भले 60-70 एकड़ ज़मीन हो, पर आत्मा ज़मीन से भी ज्यादा बड़ी थी।
पिता एक जागरूक पत्रकार, किसान नेता और विचारों के योद्धा थे। वे सिर्फ लेखनी नहीं चलाते थे, बल्कि जनसंघर्षों की मशाल भी उठाते थे। राज्य निर्माण आंदोलन में उनका सक्रिय योगदान विजय अग्रवाल की चेतना में वैचारिक ऊर्जा भर गया। उसी विरासत में पले विजय के भीतर न्याय और जनसेवा का बीज अंकुरित होने लगा।
साधारण छात्र से असाधारण संकल्प तक

शुरुआती शिक्षा गांव के प्राथमिक शाला में हुई। वह कोई होनहार छात्र नहीं कहे जाते — सातवीं तक ‘जनरल प्रमोशन’ से ही पास हुए। लेकिन भीतर एक मौन ज्वालामुखी था — संघर्ष का, आत्मविश्लेषण का और आत्मनिर्माण का।
रायपुर के बीटीआई स्कूल और साइंस कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उन्होंने आत्मबल और आत्मविश्वास से खुद को तराशा। बीएससी में मेरिट में छठवां स्थान, फिर एमएससी और राष्ट्रीय स्तर की क्विज प्रतियोगिताएं — उन्होंने यह दिखा दिया कि दृढ़ इच्छाशक्ति ही सबसे बड़ी योग्यता है।
सरकारी नौकरियों को ठुकरा कर चुनी सेवा की राह

1995 में SSC के ज़रिए सेंट्रल एक्साइज विभाग में नियुक्ति मिली, लेकिन मन बेचैन था। वह नौकरी नहीं, उद्देश्य की तलाश में थे। एक के बाद एक — रेलवे, बैंक, ट्रांसमिशन, MPPSC जैसी नौकरियों में चयन हुआ, लेकिन विजय अग्रवाल ने चुना राज्य पुलिस सेवा को। क्योंकि जनता की नब्ज वहीं सबसे तेज़ी से धड़कती है।
राजभवन से जंगल तक: जहां तैनाती, वहीं मिशन

पुलिस सेवा की शुरुआत मध्यप्रदेश के बैतूल से हुई। यहां उन्होंने सीखा कि वर्दी सिर्फ अधिकार नहीं, अनुशासन और आत्मनियंत्रण की ज़िम्मेदारी है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद उन्हें राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय का सुरक्षा अधिकारी बनाया गया, जहाँ उन्होंने अनुशासन और संतुलन की पाठशाला में खुद को माँजा।
इसके बाद जशपुर, दंतेवाड़ा और किरंदुल जैसे चुनौतीपूर्ण इलाकों में तैनाती हुई। सलवा जुडूम के दौर में उनकी भूमिका केवल एक अधिकारी की नहीं, बल्कि व्यवस्था और मानवीय संवेदना के बीच संतुलन की थी।
नवाचार की मिसाल: डॉग स्क्वायड और पुस्तक लेखन

सातवीं बटालियन में रहते हुए उन्होंने पुलिसिंग को तकनीक और प्रशिक्षण से जोड़ा। बेल्जियम शेफर्ड नस्ल के श्वानों की ब्रीडिंग और नक्सल इलाकों में तैनाती के ज़रिए उन्होंने एक अभिनव प्रयोग किया। यही नहीं, उन्होंने ‘पुलिस श्वान प्रशिक्षण एवं प्रबंधन’ नामक पुस्तक भी लिखी — जो छत्तीसगढ़ पुलिस के लिए एक पथप्रदर्शक ग्रंथ बन गई।
100 घंटे की परीक्षा: राहुल रेस्क्यू ऑपरेशन

जून 2022 — जांजगीर–चांपा का पिहरीद गांव। एक मासूम बच्चा, राहुल, बोरवेल में गिर गया। समय की सांसें थम गई थीं। तभी एक छाया सी दिखी — जो रुकती नहीं थी, थमती नहीं थी। वह थे एसपी विजय अग्रवाल। 100 घंटे तक चले इस ऑपरेशन में उन्होंने न केवल रणनीति बनाई, बल्कि मां–बाप की आंखों में उम्मीद और गांव वालों में साहस बनाए रखा।
यह सिर्फ एक ऑपरेशन नहीं था, यह विजय अग्रवाल के भीतर की संवेदनशील पुलिसिंग का प्रतिबिंब था।
“मैं मानता हूं कि पुलिस से लोग आज भी उम्मीद रखते हैं। मेरी कोशिश रही है कि हर पीड़ित को इंसानियत मिले — सिर्फ कानूनी नहीं, मानवीय समाधान भी।”
बलौदा बाजार में क़ानून की निर्णायक पुनर्स्थापना

10 जून 2024 — बलौदा बाजार में सतनामी समाज के आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा ने प्रशासन को झकझोर दिया। सार्वजनिक संपत्तियों को आग के हवाले कर दिया गया। ऐसे संवेदनशील समय में विजय अग्रवाल को वहां का पुलिस अधीक्षक बनाया गया। उन्होंने न केवल 24 घंटे में हालात काबू में किए, बल्कि कानून के राज को पुनर्स्थापित किया।
कांग्रेस विधायक की गिरफ़्तारी जैसे राजनीतिक दबाव वाले निर्णय में भी वे पीछे नहीं हटे। क्योंकि उनका विश्वास साक्ष्य पर था, न कि सियासी समीकरणों पर।
एक ऐसा अफसर, जो आदेशों से नहीं, संवाद से बनाता है रिश्ता

विजय अग्रवाल का जीवन इस बात की गवाही देता है कि अच्छा अफसर वह है जो ‘डंडे’ से नहीं, ‘संवाद’ से डर और विश्वास के बीच संतुलन साधे। वे न केवल पुलिस की वर्दी को गरिमा देते हैं, बल्कि उस वर्दी में दिल की धड़कन भी जोड़ते हैं।
विजय अग्रवाल: वर्दी में जिम्मेदारी, व्यवहार में संवेदना

विजय अग्रवाल का जीवन एक उदाहरण है—कि अफसरशाही का अर्थ केवल आदेश देना नहीं होता, बल्कि जिम्मेदारी उठाना होता है।
गांव के स्कूल से निकलकर नक्सल इलाकों की चुनौती हो या किसी मासूम की जान बचाने का रेस्क्यू ऑपरेशन, विजय अग्रवाल ने हर परिस्थिति में यही साबित किया कि जनता की सेवा ही असली पुलिसिंग है।
उनकी सोच है— “पुलिस का डर नहीं, भरोसा कमाना चाहिए।”
यही वजह है कि वे वर्दी के भीतर मानवीय संवेदनाओं को भी जीते हैं।
उनकी इसी जीवन-यात्रा को समर्पित रामधारी सिंह दिनकर की कालजयी पंक्तियाँ यहाँ पूर्णतः सार्थक हैं—

“न्याय और नीति का जब सन्नाटा छा जाता है,
तब साहस ही सत्ता बन जाता है।”
विजय अग्रवाल की पुलिसिंग का मूल मंत्र यही है
साहस के साथ न्याय और सेवा।

Live Cricket Info