छत्तीसगढ़

शक्ति की उपासना का पर्व है नवरात्रि – अरविन्द तिवारी

रायपुर – कल मंगलवार से चैत्र नवरात्रि के साथ ही हिन्दुओं का नवसंवत्सर भी शुरू हो रहा है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र प्रतिपदा से ही ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। सनातन धर्म में शक्ति की देवी माता दुर्गा की पूजा का विशेष महत्व है। इसी के चलते साल में दो प्रकट (चैत्र , आश्विन) नवरात्रि और दो गुप्त (आषाढ़ , माघ) नवरात्रि पर्व मनाये जाते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों को बेहद पवित्र माना जाता है। इस दौरान लोग देवी के अलग अलग नौ रूपों मां शैलपुत्री , ब्रह्मचारिणी , चंद्रघंटा , कुष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यायनी , कालरात्रि , महागौरी और सिद्धिदात्रि की पूजा-अर्चना , आराधना कर उनसे सुख , समृद्धि की आशीर्वाद मांँगते हैं। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि शक्ति उपासना के पर्व नवरात्रि में माता दुर्गा नौ दिनों के लिये पृथ्वी पर आती हैं और अपने भक्तों की साधना से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करती हैं। नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा के ऊर्जा और शक्ति की उपासना का महत्व होता है। फिर नवरात्रि के चौथे , पांचवें और छठे दिन पर सुख और समृद्धि प्रदान करने वाले देवी लक्ष्मी , सातवें दिन कला और ज्ञान की देवी सरस्वती की उपासना होती है। अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन कर माता की विदाई की जाती है। नवरात्रि में विधिपूर्वक पूजा करने से मां दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है। चैत्र नवरात्रि में मां की पूजा करने से जीवन में आने वाली परेशानियों से मुक्ति मिलती है वहीं सुख , समृद्धि और जीवन में शांति बनी रहती है। नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा में तीन चीजों का विशेष महत्व है इसलिये इन तीन चीजों के बारे में विशेष ध्यान रखना चाहिये क्योंकि नवरात्रि में इन तीन चीजों के बिना मांँ दुर्गा की पूजा अधूरी मानी जाती है। मांँ की पूजा में लाल रंग का विशेष महत्व है. नवरात्रि की पूजा में इस रंग सर्वाधिक प्रयोग होता है क्योंकि मां दुर्गा को लाल रंग अधिक पसंद है। इसलिये घटस्थापना और माता स्थापित करने के लिये लाल रंग के वस्त्र से आसन सजाया जाता है। इसके साथ ही लाल चुनरी और कुमकुम का टीका लगाया जाता है। नवरात्रि का पूजन आरंभ करने से पूर्व मां दुर्गा को लाल रंग की चुनरी चढ़ाई जाती है। ध्यान देने वाली बात ये है कि मां दुर्गा को कभी भी रिक्त चुनरी नहीं चढ़ानी चाहिये ,चुनरी के साथ सिंदूर यानि श्रृंगार की सामाग्री , मेवा, फल, मिष्ठान, नारियल आदि भी चढ़ाने चाहिये। इसी तरह नवरात्रि में अखंड ज्योति का विशेष महत्व है , अखंड ज्योति से घर में सकरात्मक ऊर्जा आती है और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होती है। अखंड ज्योति को जलाने से पूर्व स्वच्छता का पूर्ण ध्यान रखा जाना चाहिये , ज्योति जलाने के लिये पीतल या मिट्टी के बने दीपक का प्रयोग करना चाहिये गाय के घी से इस अखंड ज्योति को जलाया जाता है। अखंड ज्योति जलाने के बाद घर को खाली नहीं छोड़ा जाता है। इन नौ दिनों में रोजाना देवी मां को सिर्फ सात्विक चीजों का ही भोग लगाना चाहिये। साथ ही देवी मां को लाल रंग के पुष्प अर्पित करना शुभ माना गया है। वैदिक पंचांग के अनुसार यह चैत्र नवरात्रि चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि इस वर्ष 08 अप्रैल को रात 11 बजकर 50 मिनट से शुरू हो जायेगी जो अगले दिन यानि 09 अप्रैल 2024 को रात को 08 बजकर 30 मिनट पर खत्म होगी। ऐसे में उदया तिथि के आधार पर चैत्र नवरात्रि 09 अप्रैल से शुरू होगी जो 17 अप्रैल रामनवमी तक रहेगी। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि के पहले दिन सर्वार्थ सिद्धि और अमृत योग रहेगा। इस बार चैत्र नवरात्रि पर तीस साल बाद अमृत सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, शश योग और अश्विनी नक्षत्र का शुभ संयोग बन रहा है। वैदिक ज्योतिष में इन योगों में पूजा बहुत ही शुभ फलदायी होती है। इस वर्ष एक भी तिथि का क्षय ना होने से ये धार्मिक पर्व नौ दिनों तक माता रानी की आराधना के साथ मनाया जायेगा। प्रतिपदा से लेकर के नवमी तक माता भगवती के नौ रूपों की उपासना की जाती है। खास बात ये है कि इन नौ दिनों में कई ऐसे योग बन रहे हैं , जो सर्व फलदायी हैं।

मां के आगमन की सवारी और संकेत

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

देवीभागवत पुराण में इस बात का जिक्र है की देवी के आगमन का अलग-अलग वाहन है।
— शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे।
गुरौ शुक्रे चदोलायां बुधे नौका प्रकी‌र्त्तिता ।।
अर्थात सोमवार या रविवार को घट स्थापना होने पर मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। शनिवार या मंगलवार को नवरात्रि की शुरुआत होने पर देवी का वाहन घोड़ा माना जाता है , गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्र शुरू होने पर देवी डोली में बैठकर आती हैं। बुधवार से नवरात्र शुरू होने पर मां दुर्गा नाव पर सवार होकर आती हैं। देवी के वाहन का शुभ-अशुभ असर माता दुर्गा जिस वाहन से पृथ्वी पर आती हैं, उसके अनुसार सालभर होने वाली घटनाओं का भी आंकलन किया जाता है।
— गजे च जलदा देवी क्षत्र भंग स्तुरंगमे।
नोकायां सर्वसिद्धि स्या ढोलायां मरणंधुवम्।।
अर्थात देवी जब हाथी पर सवार होकर आती है तो पानी ज्यादा बरसता है। घोड़े पर आती हैं तो पड़ोसी देशों से युद्ध की आशंका बढ़ जाती है। देवी नौका पर आती हैं तो सभी की मनोकामनायें पूरी होती हैं और डोली पर आती हैं तो महामारी का भय बना रहता हैं। नवरात्रि में नियमों का पालन महत्वपूर्ण माना गया है।

  ASP ट्रांसफर: राज्य सरकार ने 13 एडिश्नल एसपी के किये तबादले, श्वेता श्रीवास्तव रायपुर रेल एसपी बनी, पंकज चंद्रा…. देखिये किसे कहां भेजा गया

प्रस्थान की सवारी और उनके संकेत

अगर नवरात्रि का समापन रविवार और सोमवार को हो रहा है , तो मां दुर्गा भैंसे की सवारी से जाती हैं। इसका संकेत होता है कि देश में शोक और रोग बढ़ेंगे। वहीं शनिवार और मंगलवार को नवरात्रि का समापन हो तो मां जगदंबे मुर्गे पर सवार होकर जाती हैं। ये दुख और कष्ट की वृद्धि को ओर इशारा करता है। बुधवार और शुक्रवार को नवरात्रि समाप्त होती है, तो मां की वापसी हाथी पर होती है जो अधिक बरसात को ओर संकेत करता है। इसके अलावा अगर नवरात्रि का समापन गुरुवार को हो रहा है, तो मां दुर्गा मनुष्य के ऊपर सवार होकर जाती हैं जो सुख और शांति की वृद्धि की ओर इशारा करता है।

इस बार क्या है माता का वाहन ?

देवी भागवत पुराण के अनुसार नवरात्र में माता के आगमन और गमन के दौरान वाहन का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि जिस दिन शुरू होती है उसके आधार पर ही माता की सवारी निश्चित होती है। हर साल नवरात्र पर देवी अलग-अलग वाहन से धरती पर आती हैं। कलश स्थापना के दिन देवी किस वाहन पर सवार होकर पृथ्वी लोक की ओर आ रही हैं , इसका मानव जीवन पर काफी प्रभाव होता है। हालांकि दुर्गा मां का वाहन सिंह है लेकिन इस बार मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आ रही हैं। घोड़े पर सवार होकर माता रानी का धरती पर आगमन और हाथी पर सवार होकर प्रस्थान होगा। घोड़े पर सवार होकर आने से कई गंभीर परिणाम देखने को मिलते हैं। नवरात्रि में माता का आगमन घोड़े पर होता है तो समाज में अस्थिरता , अचानक बड़ी दुर्घटना , भूकंप चक्रवात , सत्ता परिवर्तन , युद्ध आदि से तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। वैसे ही नवरात्र का समापन 17 अप्रैल दिन बुधवार को होने से माता के प्रस्थान की सवारी गज (हाथी) होगी। माता का हाथी पर सवार होकर प्रस्थान करना शुभ संकेत होता है। यह अच्छी बारिश, खुशहाली और तरक्की का संकेत देता है।

कल से होगी शैलपुत्री की आराधना

नवरात्रि से जुड़े कई रीति-रिवाजों के साथ कलश स्थापना का विशेष महत्व है। नवरात्रि की शुरुआत घट स्थापना के साथ ही होती है जिसे कलश स्थापना भी कहा जाता है , जो शक्ति की देवी का आह्वान है। आज नवरात्रि के पहले दिन माँ दुर्गा की पूजा आराधना “शैलपुत्री” के रूप में होगी। पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। इनका रुप सौम्य और शांत है , सफेद वस्त्र धारण की हुई इन देवी के चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती है। माना जाता है कि देवी शैलपुत्री की आराधना करने से तामसिक तत्वों से मुक्ति मिलती है। माता शैलपुत्री का नाम लेने से घर में पवित्रता आती है। शैलपुत्री नंदी नाम के वृषभ पर सवार होती हैं और इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का पुष्प है। यह त्रिशूल जहां भक्तों को अभयदान देता है, वहीं पापियों का विनाश करता है। बायें हाथ में सुशोभित कमल का पुष्प ज्ञान और शांति का प्रतीक है। मां को सफेद वस्तु अतिप्रिय है। नवरात्र के पहले दिन मां को सफेद वस्त्र और सफेद फूल और सफेद भोग चढ़ाने के साथ ही सफेद बर्फी का भी भोग लगाना चाहिये। मां के इस पहले स्‍वरूप को जीवन में स्थिरता और दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। शैल का अर्थ होता है पत्‍थर और पत्‍थर को दृढ़ता की प्रतीक माना जाता है। मां शैलपुत्री के चरणों में गाय का घी अर्पित करने से भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है और उनका मन एवं शरीर दोनों ही निरोगी रहता है। इनकी उपासना से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

Was this article helpful?
YesNo

Live Cricket Info

Kanha Tiwari

छत्तीसगढ़ के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिन्होंने पिछले 10 वर्षों से लोक जन-आवाज को सशक्त बनाते हुए पत्रकारिता की अगुआई की है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button