अब खेत में पसीना नहीं, पोज़ बहा रही मंत्री, कुर्सी पर बैठकर थरहा उखाड़ती दिखीं, सोशल मीडिया में फोटो, खेत में किसान बेहाल

अब खेत भी फोटोशूट लोकेशन बन गए हैं।
छत्तीसगढ़ की महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े ने हाल ही में एक नया “प्रयोग” किया — धान की रोपाई कुर्सी पर बैठकर। साफ साड़ी, थरहा हाथ में, और मुस्कान कैमरे के लिए सेट — मानो खेत में मेहनत नहीं, शूटिंग चल रही हो।
ये वही मंत्री हैं, जिनका कुछ दिन पहले एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे उद्घाटन बोर्ड पर ‘Push’ और ‘Pull’ की जगह लिखवाना चाह रही थीं — “धक्का और खींचो”, और रिकॉर्डिंग बार-बार रुकवाकर डायलॉग सही बोलने की कोशिश कर रही थीं।
कभी कैमरे के लिए शब्द तलाशते हुए, कभी खेत में एंगल जमाते हुए — मंत्री जी का एक ही लक्ष्य दिखता है: काम हो या न हो, पोस्ट जरूर हो। जब किसान खेत में कीचड़ में धंसे हैं, खाद के लिए कतारों में खड़े हैं — तब मंत्री की कुर्सी पर बैठकर ली गई ‘संवेदनशील’ तस्वीर, अस्मिता कम, आईपैड वाली कृषि लगती है।
रायपुर | धान का मौसम है, खेतों में पसीना बह रहा है। किसान धूप–बारिश से लड़ते हुए धान की रोपाई में जुटे हैं। इसी बीच महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल है — फोटो में मंत्री जी खेत में कुर्सी पर बैठी हैं, हाथ में धान के पौधे (थरहा) हैं और कैमरे की ओर आत्ममुग्ध मुस्कान के साथ देख रही हैं।
उनके फ़ेसबुक पोस्ट का भावनात्मक कैप्शन है:
“जम्मो काम–काज के भीड़–भाड़ ले समय निकाल के अपन खेत पहुंचे रहेंव। रोपा बर धान के थरहा उखाड़त बेरा, बड़ दिन बाद माटी के ओ सुगंध ला ले पायेंव।”
उन्होंने इसे “हमर अस्मिता” बताया — लेकिन असली सवाल यह है: क्या यह अस्मिता की अभिव्यक्ति है या प्रचार की मुद्रा?
थरहा उखाड़ना बनाम थरहा पकड़कर फोटो खिंचवाना
यह सच है कि धान के पौधों को उखाड़ने का काम अक्सर महिलाएं स्टूल में बैठकर करती हैं। पर तस्वीर में मंत्री जी जिस अंदाज़ में कैमरे की ओर देख रही हैं, वह खेत की मेहनत नहीं, प्रचार का सीन ज़्यादा लगता है। साफ–सुथरा खेत, बिना कीचड़, बिना पसीना — और एकदम परफेक्ट कैमरा एंगल।

असल रोपाई में न पैर साफ रहते हैं, न साड़ी के पल्लू संभाले जाते हैं। उस माटी की महक किसानों के शरीर से आती है, न कि सोशल मीडिया कैप्शन से।
ज़मीनी हकीकत: किसान लाइन में हैं, नेता कैमरे में
राज्य भर में किसान इस समय खाद और कीटनाशकों की भारी किल्लत से जूझ रहे हैं।
• सहकारी समितियों में डीएपी, यूरिया और कीटनाशक के लिए लंबी कतारें हैं।
• कई जिलों में किसान खाली हाथ लौट रहे हैं — जहाँ सरकारी बोरी “ऊपर से तय नामों” के लिए पहले ही बुक रहती है।
• बाजार में खाद ₹1200 की जगह ₹1700-₹1800 में बिक रही है। कालाबाज़ारी चरम पर है।
कांकेर, धमतरी, बस्तर, कोरबा और महासमुंद से कालाबाज़ारी और कमी की शिकायतें हर रोज़ आ रही हैं।
क्या मंत्री जी ने कभी ये सवाल उठाया?
मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े महिला एवं बाल विकास मंत्री हैं — पर आंगनबाड़ियों की हालत, महिला समूहों की परेशानियाँ, कुपोषण, इन मुद्दों पर उनकी तस्वीरें या बयान क्यों नहीं वायरल होते?
• क्या उन्होंने मंत्रीमंडल की बैठक में किसानों की खाद संकट पर आवाज़ उठाई?
कैमरे में नहीं, खेत में बहता है पसीना
धान की रोपाई सिर्फ़ थरहा पकड़कर तस्वीर खिंचवाना नहीं होती — यह मेहनत, भरोसा और मौसम से संघर्ष की प्रक्रिया है।
जिसके पास ज़मीन नहीं, जो हर साल कर्ज़ और बाढ़ से जूझता है — उसे “कुर्सी पर बैठकर खेत का भाव” समझाना न्याय नहीं, मज़ाक लगता है।
अस्मिता की बात करनी है, तो नीति में करिए
छत्तीसगढ़ की अस्मिता फोटो में नहीं, उन किसानों के पसीने में है जो अभी खेत में संघर्ष कर रहे हैं।
अगर सरकार को सच में माटी से लगाव है —
तो वह कैप्शन में नहीं, क़ानून और नीति में दिखना चाहिए।
Live Cricket Info