
Bilaspur Highcourt News:·– बिन ब्याही मां के बेटे को 29 वर्ष बाद न्याय मिला है। जन्म के 29 वर्ष बाद युवक ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। डिवीजन बेंच ने उसे जैविक पिता की संपत्ति समेत अन्य लाभों का हकदार माना है।
Bilaspur बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में 29 वर्षीय युवक को उसका हक प्रदान किया है। उसकी मां ने प्रेम संबंध के दौरान बने संबंध के चलते उसे जन्म दिया था। अब उसके जन्म के 29 वर्ष बाद उसे उसका हक दिलाते हुए जैविक पिता की संपत्ति में हिस्सा देने समेत सभी लाभ देने के निर्देश दिए हैं। इससे पहले फैमिली कोर्ट ने युवक की याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट में अपील करने पर उसको पिता और माता का वैध पुत्र बताया गया है।

सूरजपुर में रहने वाले 29 वर्षीय युवक का जन्म 12 नवंबर 1995 को हुआ था। युवक ने अपनी याचिका में बताया है कि उसके पिता और मां पड़ोस में रहते थे तब दोनों के बीच प्रेम संबंध हो गया था। प्रेम संबंधों के चलते उसकी मां गर्भवती हो गई थी। पिता ने उसकी मां पर गर्भपात के लिए दबाव बनाया था पर उसकी मां ने गर्भपात से मना कर उसे जन्म दिया था। लड़के की मां ने इस मामले में पुलिस में अपराध भी दर्ज करवाया था। जन्म के बाद युवक अपनी मां के साथ रह रहा था। महिला ने परिवार न्यायालय में अपने और पुत्र के भरण पोषण के लिए वाद दायर किया था। पर फैमिली कोर्ट ने इसे संपत्ति के अधिकारों की घोषणा वैवाहिक पक्ष के दायरे में न होने के कारण चलने योग्य न मानते हुए खारिज कर दिया था। इसके साथ ही प्रतिवादी ने बच्चों का पिता होने से भी इंकार कर दिया था।
इसके काफी समय बाद अप्रैल 2017 में युवक जब बीमार पड़ा तब उसे इलाज के लिए आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ गया। वित्तीय संकटों के चलते युवक ने अपने जैविक पिता के घर जाकर आर्थिक मदद मांगी पर उसके पिता ने उसे बेटा मानने से इनकार करते हुए मदद करने से मना कर दिया।
इसके बाद नाराज बेटे ने अपने जैविक पिता की संपत्ति पर दावा पेश करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिका की सुनवाई हाईकोर्ट में जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस रजनी दुबे की डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बैंच में सुनवाई के बाद बैंच ने माना कि याचिकर्कता अपने जैविक पिता के खिलाफ पैतृक संपत्ति पर अपने अधिकार और शीर्षक की घोषणा के लिए मुकदमा दायर किया था और इस राहत के लिए परिसीमा अधिनियम में कोई सीमा निर्धारित नहीं है। जब भी बच्चों को उनके अधिकार और स्वामित्व से वंचित किया जाता है तो वह मामला दायर कर सकते हैं। अपील स्वीकार कर हाईकोर्ट ने युवक को वैध पुत्र घोषित किया इसके साथ ही उसके सभी लाभों का हकदार भी माना है।
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