बिलासपुर पुलिस में सिफ़ारिश का खेल! सुशासन की बजाय सिफ़ारिश का शासन?

कई एसपी बदले पर थानों से नहीं बदले रसूखदार आरक्षक, पुलिस विभाग में सुशासन की नहीं आरक्षकों की चलती है सिफारिशी सरकार
बिलासपुर। जहां एक ओर छत्तीसगढ़ की सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी की सरकार “सुशासन” के बुलंद दावे कर रही है, वहीं जमीनी हकीकत पुलिस महकमे में कुछ और ही इशारे दे रही है — और ये इशारे ऐसे हैं जो शासन–प्रशासन की साख को जमीन पर रगड़ते दिख रहे हैं। बिलासपुर पुलिस विभाग में थानों पर पोस्टिंग का जो खेल चल रहा है, वह सिर्फ विभागीय नियमों का उपहास नहीं, बल्कि यह पूरे शासन तंत्र के गाल पर तमाचा है।

यह वही पुलिस व्यवस्था है जो कांग्रेस शासनकाल में भूपेश बघेल और उनकी प्रमुख सिपहसालार सौम्या चौरसिया के दौर में ही भ्रष्टाचार की गर्त में उतर चुकी थी। जिन आरक्षकों और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने महादेव ऑनलाइन सट्टा एप जैसे 6000 करोड़ रुपये के घोटालों को राज्य में पनपने दिया, वही मानसिकता आज भी विभाग में जड़ें जमाए बैठी है। उन दिनों से लेकर आज तक, चाहे रायपुर हो, दुर्ग हो या पुलिस मुख्यालय — पूरे राज्य में पुलिसिंग व्यवस्था को अपराधीकरण ने अंदर से खोखला कर दिया। और आज वही चुपचाप दुहराया जा रहा है, बस सत्ता का रंग बदल गया है।
🔴 थानों का ठेका — रसूखदार आरक्षक और उनका एकछत्र साम्राज्य
सिविल लाइन, सिरगिट्टी और तारबाहर जैसे प्रमुख थानों में कुछ खास आरक्षक वर्षों से काबिज़ हैं। सूत्र बताते हैं कि आदेश चाहे कितने भी निकलें, तबादला चाहे कितनी बार हो, ये चेहरे हर बार लौट आते हैं — मानो थाने उनके खानदानी जागीर हों। उनका खुला दावा सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं: “बस कवर्धा से एक फोन लगेगा, फिर अपनी कुर्सी पर लौट आएंगे!” जो लोग राज्य की राजनीतिक नब्ज़ पहचानते हैं, उनके लिए ‘कवर्धा’ शब्द ही काफी है। सीधे नाम न लेते हुए भी यह इशारा समझना कोई मुश्किल नहीं कि प्रदेश की सत्ता के ऊपरी गलियारों से आशीर्वाद हासिल है।
🔴 कप्तान की साख खतरे में — एसएसपी के हाथ बंधे?
बिलासपुर के एसएसपी रजनेश सिंह को सख्त और ईमानदार अधिकारी माना जाता है, लेकिन उनके नेतृत्व में जब सैटिंग और रसूख का खेल यूं फलता–फूलता दिख रहा है, तो सवाल उठना लाजिमी है। क्या कप्तान चाहकर भी कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं हैं? या फिर उनके हाथ प्रदेश की राजनीतिक सत्ता ने बांध दिए हैं? जब आदेशों को धता बताकर आरक्षक सत्ताधारी नेताओं की शह पर अपनी पसंदीदा पोस्टिंग हथियाते रहते हैं, तब प्रशासन की असल ताकत पर प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है।
🔴खुली चुनौती: लाइन हाजिर के बाद भी दबंगई!
तारबाहर थाना क्षेत्र में सट्टा खाईवालों से सांठगांठ और लाखों रुपये की वसूली के आरोप में एक आरक्षक को हाल ही में लाइन हाजिर किया गया था। मगर यही आरक्षक अब खुलेआम हंसते हुए दावा कर रहा है: “बस एक फोन आएगा और हम दोनों दोस्त सीधे साइबर रेंज पहुंच जाएंगे!” सवाल यह है कि क्या लाइन हाजिर होना अब सिर्फ दिखावा रह गया है? क्या दोषियों को दंड की जगह इनाम मिलना तय है?
🔴 थाने या वसूली के केंद्र?
विभागीय चर्चा में गरम मुद्दा
विभाग के भीतर चर्चा है कि कुछ खास आरक्षक बिना अपने पसंदीदा दोस्तों के काम ही नहीं करते — यानी पूरी पोस्टिंग, पूरी ड्यूटी, पूरी योजना ‘कमाई’ की गणना पर आधारित है। सवाल उठता है: क्या पुलिस थाने अब सिर्फ सुविधा केंद्र या वसूली के अड्डे बन चुके हैं? क्या पुलिसिंग अब सेवा का नहीं, कलेक्शन का नया नाम है?
🔴 अतीत का आईना: कांग्रेस शासन में महादेव एप की छांव में पनपी बीमारी

भूपेश बघेल और सौम्या चौरसिया के दौर में छत्तीसगढ़ पुलिस पर लगे धब्बों की फेहरिस्त छोटी नहीं। जब महादेव ऑनलाइन सट्टा एप जैसे घोटाले फलते–फूलते रहे, तब भी यही आरक्षक और अधिकारी, अपनी सेटिंग, सिफारिश और सांठगांठ के दम पर मलाईदार पोस्टिंग हथियाते रहे। इन्हीं सिफारिशों ने पूरे पुलिस तंत्र को ऐसा बीमार किया कि ईडी की पूछताछ की आंच सीधे मुख्य सचिवालय और अफसरशाही तक पहुंच गई।
अब जब भाजपा की सत्ता है, तब बदलाव की उम्मीद थी, पर जो तस्वीर बिलासपुर से उभर रही है, वह बेहद चिंताजनक है। सत्ता चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की, खेल वही है, चेहरे बदल जाते हैं, लेकिन सिस्टम की सड़ांध वैसी ही रहती है।
🔴 शासन-प्रशासन के लिए आखिरी मौका!
अगर अब भी राज्य सरकार और वरिष्ठ पुलिस नेतृत्व नहीं चेते, तो इसका असर सिर्फ पुलिस महकमे की साख पर नहीं, पूरी शासन व्यवस्था पर पड़ेगा। जो आरक्षक सत्ता के इशारे पर मनचाही पोस्टिंग हथियाते हैं, वे विभागीय अनुशासन को मज़ाक बना देते हैं। इससे ईमानदार अफसरों का मनोबल टूटता है, और आम जनता का विश्वास शासन पर से पूरी तरह उठ जाता है।
यह वक्त है कि शासन–प्रशासन तय करे — क्या वे वर्दी की इज्ज़त को फिर से बहाल करना चाहते हैं या रसूख और सिफारिश के आगे घुटने टेकने के लिए तैयार हैं?
🔴 सुशासन का वादा निभाइए या जनता के गुस्से के लिए तैयार रहिए!
बिलासपुर पुलिस विभाग में जो सिफारिश का खेल चल रहा है, वह सुशासन की आत्मा के लिए सीधी चुनौती है। अगर अब भी इस पर कठोर कार्रवाई नहीं हुई, तो जनता के बीच शासन की छवि हमेशा के लिए मिट्टी में मिल जाएगी। आम जनता अब सिर्फ नारे नहीं चाहती — उसे ठोस कदम चाहिए। राज्य सरकार को और पुलिस नेतृत्व को अब यह साबित करना होगा कि वे वाकई सुशासन की बात करते हैं या सिर्फ सत्ता के रसूखदारों की सेवा में लगे हुए हैं।
🔴 चेतावनी
अगर सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग सोचते हैं कि यह मुद्दा सिर्फ विभागीय हलकों में सीमित रहेगा, तो वे गलतफहमी में हैं। यह मामला अब मीडिया, जनता और सिविल सोसाइटी के बीच खुलकर चर्चा का विषय बन चुका है। जो लोग सत्ता में बैठे हैं, उन्हें तय करना होगा — क्या वे सिफारिश के इस खेल का हिस्सा बनकर शासन की साख को मिटाना चाहते हैं, या सुशासन का सचमुच प्रमाण देना चाहते हैं।
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