“सियासत में ताज नहीं,तासीर देखी जाती है, हर मुस्कराहट के पीछे तस्वीर देखी जाती है”नाम तय, कुर्सी नहीं – कैबिनेट पर फिर लग गया ब्रेक!

गजेंद्र-पुरंदर के नामों पर सीनियरों का ऐतराज, अमर अग्रवाल सबसे सुरक्षित दावेदार
“सियासत में ताज नहीं, तासीर देखी जाती है,
हर मुस्कराहट के पीछे तस्वीर देखी जाती है।”
रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजनीति फिर उसी मोड़ पर आकर अटक गई, जहां से हर बार कैबिनेट विस्तार की गाड़ी रुक जाती है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की कैबिनेट में तीन नए चेहरों को शामिल करने की कवायद एक बार फिर टल गई है। वजह वही पुरानी – अंदरूनी विरोध, लॉबी प्रेशर और सीनियर नेताओं की नाराज़गी।

तीन नाम, पर सबकी मंज़ूरी नहीं!
सत्ताधारी भाजपा में जिन तीन नामों की चर्चा थी –
- गजेंद्र यादव
- पुरंदर मिश्रा
- अमर अग्रवाल
इनमें अमर अग्रवाल को छोड़ बाकी दो नामों पर पार्टी में भारी विरोध देखा जा रहा है।
पुरंदर को ओडिया लॉबी, गजेंद्र को यादव समीकरण का सहारा
पुरंदर मिश्रा को टिकट दिलाने से लेकर अब मंत्री बनाए जाने तक ओडिया लॉबी का पूरा सपोर्ट है।
गजेंद्र यादव को जातिगत समीकरण और राजनीतिक विरासत के चलते चुना गया है।
पर यही समीकरण अब सीनियर नेताओं की नाराज़गी का कारण बन गए हैं।
सीनियर लीडर्स के चेहरे पर शिकन
अजय चंद्राकर, राजेश मूणत, लता उसेंडी और विक्रम उसेंडी जैसे सीनियर चेहरे खुद को नजरअंदाज किए जाने से नाराज़ हैं। इन नेताओं की नाराज़गी अब खुले असंतोष में बदलती दिख रही है।
अब दिल्ली दरबार तक फैली गूंज
संगठन, संघ और दिल्ली के जिम्मेदारों तक बात पहुंच चुकी है। ओडिशा लॉबी और जातीय समीकरण के दबाव को लेकर रायपुर से लेकर दिल्ली तक समीक्षा और बैकग्राउंड चेक जारी है।
कैबिनेट नहीं, राज्य मंत्री पद से काम चलाने की तैयारी?
संकेत मिल रहे हैं कि विरोध को देखते हुए पार्टी फिलहाल इन नामों को राज्य मंत्री पद देकर मामला शांत करने की रणनीति बना रही है। इससे न सीनियर लीडर्स नाराज़ होंगे और न लॉबी का दबाव टूटेगा।
हनुमान जयंती भी निकल गई, अब नई तारीख अज्ञात
सीएम साय के हनुमान जयंती तक विस्तार के संकेत पर भरोसा किया जा रहा था, लेकिन वो मौका भी निकल गया। अब अगली तारीख की कोई आधिकारिक चर्चा नहीं।
तीन नामों में सियासी टकराव ऐसा कि शपथ ग्रहण की तैयारी भी अटक गई। जब तक पार्टी के भीतर संतुलन नहीं बनता, तब तक मंत्री कौन बनेगा – ये सवाल वैसे ही अधर में रहेगा।“तय थे चेहरे, पर कुर्सियों पर मुहर नहीं थी,
सियासत थी गर्म, पर सहमति की सिहर नहीं थी।”
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