
फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के जरिए पदस्थापना में लाभ लेने का आरोप, शिक्षिका ने कलेक्टर से की शिकायत

सामान्य कोटे से नियुक्त शिक्षक ने 2015 में बनवाया दिव्यांग प्रमाण पत्र, अब युक्तियुक्तकरण में भी बच गया अतिशेष से
जांजगीर-चांपा। शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला खोखरा में पदस्थ शिक्षक तुलेश कुमार देवांगन पर फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के माध्यम से पदस्थापना, पदोन्नति और युक्तियुक्तकरण के दौरान लाभ लेने का गंभीर आरोप लगा है। संबंधित शिकायत विद्यालय की पूर्व विज्ञान शिक्षिका श्रीमती श्रद्धा राठौर ने कलेक्टर जांजगीर-चांपा को सौंपते हुए तत्काल जांच एवं कार्यवाही की मांग की है। शिक्षिका ने यह भी चेतावनी दी है कि यदि प्रशासन की ओर से उचित कार्रवाई नहीं की गई, तो वे उच्च न्यायालय की शरण लेंगी।

कैसे शुरू हुआ विवाद?
शिक्षिका श्रीमती श्रद्धा राठौर ने बताया कि उनकी नियुक्ति वर्ष 2010 में विज्ञान शिक्षिका के रूप में शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला खोखरा में हुई थी। वर्ष 2014-15 में अन्य विद्यालयों से मर्ज होकर दो शिक्षकों—अभिनव तिवारी एवं तुलेश देवांगन—को खोखरा विद्यालय में पदस्थ किया गया। दोनों की पदस्थापना दिव्यांग कोटे के अंतर्गत हुई, जबकि शिक्षिका का दावा है कि यह पूरी प्रक्रिया नियमविरुद्ध थी।
तुलेश देवांगन की प्रथम नियुक्ति वर्ष 2007 में प्राथमिक शाला पचेड़ा में सामान्य कोटे से हुई थी, किंतु वर्ष 2015 में उन्होंने जिला अस्पताल जांजगीर के ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. एस.सी. श्रीवास्तव से बहरा होने का प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया और उसी आधार पर पदोन्नति व पदस्थापना में विशेष लाभ उठाया।
प्रमाण पत्र की वैधता 2018 तक, लेकिन लाभ अब तक
शिक्षिका का आरोप है कि जिस दिव्यांग प्रमाण पत्र के आधार पर शिक्षक को लाभ दिया गया, उसकी वैधता सिर्फ तीन वर्ष (2015 से 2018) तक थी। इसके बाद न तो उसका नवीनीकरण कराया गया और न ही राज्य या संभागीय मेडिकल बोर्ड से कोई दोबारा जांच करवाई गई। इसके बावजूद, तुलेश देवांगन को लगातार दिव्यांग कोटे का लाभ मिलता रहा और अब हाल ही में संपन्न युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया में भी उन्हें अतिशेष सूची से बाहर रखा गया।
न दिव्यांग भत्ता, न सूची में नाम—फिर भी कोटे का लाभ!
श्रीमती राठौर ने अपने शिकायत पत्र में उल्लेख किया कि शिक्षक तुलेश देवांगन न तो विभागीय दिव्यांग भत्ता प्राप्त कर रहे हैं और न ही दिव्यांग श्रेणी की अधिकृत सूची में उनका नाम शामिल है। इसके बावजूद उन्हें निरंतर दिव्यांग सुविधा दी जा रही है। शिक्षिका ने यह भी आरोप लगाया कि विकासखंड शिक्षा कार्यालय नवागढ़ में पदस्थ कुछ अधिकारी-कर्मचारी शिक्षक से घनिष्ठ संबंध रखते हैं, जिसके चलते नियमों की अनदेखी की जा रही है।
राज्य मेडिकल बोर्ड से जांच की मांग
शिक्षिका का स्पष्ट कहना है कि किसी भी दिव्यांग प्रमाण पत्र की स्थायी वैधता नहीं होती, जब तक कि वह राज्य स्तर के अधिकृत मेडिकल बोर्ड से प्रमाणित न हो। उन्होंने मांग की है कि शिक्षक तुलेश देवांगन की दिव्यांगता की जांच राज्य मेडिकल बोर्ड से कराई जाए और यदि वे योग्य नहीं पाए जाते हैं, तो उनके खिलाफ धोखाधड़ी और कूटरचना जैसे आपराधिक प्रकरण दर्ज किए जाएं।
दिव्यांग संगठन भी हुआ सक्रिय
इस मामले में अब छत्तीसगढ़ निःशक्तजन अधिकार सहयोग समिति ने भी संज्ञान लिया है। समिति के प्रदेशाध्यक्ष राधाकृष्ण गोपाल ने स्पष्ट कहा कि:
“किसी भी दिव्यांगता प्रमाण पत्र की वैधता अधिकतम तीन वर्ष होती है और समय-समय पर उसका नवीनीकरण आवश्यक है। यदि तुलेश देवांगन वर्ष 2015 का प्रमाण पत्र आज भी उपयोग में ला रहे हैं, तो यह नियमों का घोर उल्लंघन है। यदि जांच में प्रमाण पत्र फर्जी या अमान्य पाया जाता है, तो उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई अनिवार्य है।”
उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यदि प्रशासन चुप्पी साधे रहा तो संगठन आंदोलनात्मक कदम उठाने को बाध्य होगा।
क्या कहता है नियम?
RPwD Act 2016 के तहत दिव्यांगता प्रमाण पत्र का नियमित नवीनीकरण आवश्यक है।
राज्य मेडिकल बोर्ड की स्वीकृति के बिना कोई भी दिव्यांगता स्थायी नहीं मानी जा सकती।
यदि कोई व्यक्ति गैर-कानूनी ढंग से सरकारी लाभ लेता है, तो वह धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है।
अब सबकी निगाहें प्रशासन पर
पूरे मामले को लेकर शिक्षकों, अभिभावकों और जागरूक संगठनों में रोष है। लोगों का कहना है कि यदि इस तरह फर्जी दस्तावेजों के सहारे शासकीय व्यवस्था में सेंध लगाई जाती रही, तो न केवल असली दिव्यांगों के हक मारे जाएंगे, बल्कि यह शिक्षा विभाग की विश्वसनीयता को भी ठेस पहुंचाएगा।
अब देखना होगा कि कलेक्टर जांजगीर-चांपा और जिला शिक्षा अधिकारी इस मामले में कितनी तत्परता दिखाते हैं या फिर यह प्रकरण भी फाइलों में दबकर रह जाएगा।
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