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प्रदेश का इकलौता मंदिर… जहां जेवरा बोए जाते हैं, जानिए कब से शुरू हुई परंपरा

रतनपुर – नवरात्रि में रतनपुर का ऐतिहासिक लखनी देवी मंदिर आस्था और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। यहां हर साल की तरह इस बार भी जगराता का आयोजन किया गया। खास बात यह है कि यह प्रदेश का इकलौता मंदिर है जहां नवरात्र पर जेवरा बोने की अनूठी परंपरा निभाई जाती है।

इस बार 1100 जेवरा स्थापना

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मंदिर समिति की जानकारी के मुताबिक इस बार कुल 1100 जेवरा बोए गए हैं। मां लखनी देवी के दरबार में भक्तजन पूरे भक्ति भाव से हाजिरी लगा रहे हैं। मंदिर परिसर दिनभर श्रद्धालुओं से भरा रहता है।

जानिए कब से शुरू हुई परंपरा

मंदिर के पुजारी पंडित भूपचंद बताते हैं कि जेवरा बोने की यह परंपरा साल 1994 में शुरू हुई थी, जब पहली बार सिर्फ 51 जेवरा बोए गए थे। इसके बाद यह संख्या साल दर साल बढ़ती गई और एक समय 3 हजार से ज्यादा तक पहुंच गई थी। लेकिन कोरोना काल में यह परंपरा प्रभावित हुई और संख्या अचानक कम हो गई। अब एक बार फिर श्रद्धालुओं के उत्साह से यह परंपरा रफ्तार पकड़ रही है।

जगराते में उमड़ा भक्तों का सैलाब

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रातभर जगराता में मां के भजनों की गूंज रही। मंदिर रोशनी से जगमगाता रहा और भक्तों ने देवी के दरबार में अपनी मनोकामनाओं के पूरे होने की प्रार्थना की। श्रद्धालुओं का मानना है कि लखनी देवी की कृपा से सभी संकट दूर होते हैं।

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