जनप्रतिनिधियों से दूरी बनाकर ऊर्जा सचिव ने क्या संदेश दिया? बिजली संकट पर ‘बंद कमरे की मीटिंग’ पर भड़के, विधायक अटल

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी से लेकर बिलासपुर जैसे प्रमुख शहरों तक गर्मी अपने चरम पर है। पारा 45 के पार, ऊपर से बिजली की आंख–मिचौनी – हालात ऐसे कि जनता का धैर्य जवाब देने लगा है। और ऐसे समय जब पूरे प्रदेश में विद्युत विभाग सवालों के घेरे में है, ऊर्जा सचिव डॉ. रोहित यादव की एक बंद कमरे की बैठक ने नया विवाद खड़ा कर दिया है।
21 मई को बिलासपुर कलेक्ट्रेट स्थित मंथन सभागार में डॉ. यादव ने अधिकारियों की बैठक ली। जिला कलेक्टर, संभागायुक्त सहित तमाम बड़े अफसर मौजूद थे।

मीटिंग में बिजली कटौती को लेकर सवाल–जवाब हुए, अधिकारियों को फटकार भी लगी। लेकिन जो ग़ैरहाज़िर थे, वे थे जनप्रतिनिधि – वही लोग जो दिन–रात जनता के गुस्से का सामना कर रहे हैं।
विधायक अटल श्रीवास्तव का सवाल – क्या जनप्रतिनिधि गैरज़रूरी हैं?
कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव ने इस बैठक को लेकर सीधे सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, “जब पूरे प्रदेश में बिजली संकट चरम पर है, जब गांव–गांव से पानी–बिजली की शिकायतें आ रही हैं, ऐसे में ऊर्जा सचिव की यह बैठक सिर्फ अधिकारियों तक सीमित क्यों थी? क्या विधायक, महापौर, जिला पंचायत सदस्य अब गैरज़रूरी हो गए हैं?”
अटल का कहना है कि यदि विपक्ष के जनप्रतिनिधियों से परहेज था, तो सत्ता पक्ष के जनप्रतिनिधियों को ही बुला लेते। लेकिन पूरी बैठक ‘जनसंपर्क’ के बजाय ‘जनविमुख’ नजर आई।
“गांव में पानी नहीं, शहर में अंधेरा – लेकिन मीटिंग VIP क्लास की!”
विधायक का आरोप है कि विभागीय लापरवाही से गांवों में हफ्तों तक बिजली नहीं रहती, जिससे पानी की भारी समस्या उत्पन्न हो रही है। “ग्रामीण महिलाएं पीने के पानी के लिए भटक रही हैं, शहर में रातभर अंधेरे में बच्चे सोते हैं। अधिकारी शिविरों में व्यस्त हैं और सचिव महोदय सिर्फ अधिकारियों से ही फीडबैक ले रहे हैं।”
क्या यह सुशासन तिहार का नया तरीका है?
अटल श्रीवास्तव ने तंज कसते हुए कहा कि सुशासन तिहार के नाम पर जनता को नजरअंदाज किया जा रहा है। “अगर कोई सोचता है कि विकास सिर्फ रिपोर्ट और प्रेजेंटेशन से होता है, तो वो भ्रम में है। असल सुशासन तब होगा जब जनप्रतिनिधियों की बात सुनी जाएगी।”
अब बड़ा सवाल – जनता के प्रतिनिधियों को क्यों नजरअंदाज किया गया?
यह कोई साधारण चूक नहीं मानी जा रही। बल्कि इसे एक सोच-समझकर लिया गया निर्णय माना जा रहा है – जो यह संकेत देता है कि ब्यूरोक्रेसी और लोकतंत्र के बीच कहीं कोई संवादहीनता पैदा हो रही है।
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