ChhattisgarhINDIAजरूरी खबरदेश - विदेशबिलासपुरराज्य एवं शहरसमस्या

व्हाट्सएप से प्रभार, बैंक से फंड — ये है पंचायत के फंड घोटाले का नया ‘डिजिटल फार्मूला

सचिव ने नहीं ली पंचायत से इजाजत, फिर भी निकाली शासन की राशि

बिलासपुर के कोटा ब्लॉक की पहंदा पंचायत में विकास की जगह व्हाट्सएप चलता है, ग्रामसभा की जगह सांठगांठ और योजनाओं की जगह जेबें भरती हैं। सचिव रंजीत महदेवा ने पंचायत को निजी दुकान समझ रखा था, जहां न जनता की अनुमति चाहिए, न प्रस्ताव की जरूरत। और ऊपर से मज़ाक ये — प्रभार भी मोबाइल से दे दिया!”

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

सरकारी कुर्सियों पर बैठकर योजनाओं की लूट चलाने वाले अफसरों के लिए यह खबर ‘सिरदर्द’ नहीं, ‘चुनौती’ है। गावंवालों ने अब चुप्पी तोड़ी है, और मांगा है हिसाब — पंचायत के पैसे का, योजनाओं के नाम पर हुए गबन का, और उस तंत्र का जो भ्रष्टाचार की गठजोड़ से बना है।

बिलासपुर ।छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के जनपद कोटा अंतर्गत आने वाले छोटे से गांव पहंदा की पंचायत इन दिनों गहरी हलचल में है। यहां के लोग किसी राजनीतिक दल या चुनावी वादों से नहीं, बल्कि पंचायत सचिव की ‘साइलेंट लूट’ से त्रस्त हैं। वर्षों तक जो चुप्पी गांव की गलियों में पसरी रही, वह अब धीरे-धीरे शिकायत में बदल रही है।

गांव के लोग अब खुलकर कह रहे हैं — “हमारे नाम पर योजनाएं बनीं, लेकिन काम कागज़ में हुआ, गांव में नहीं। पैसा आया भी तो कहां गया, किसी को नहीं पता।”

सचिव ने नहीं ली पंचायत से इजाजत, फिर भी निकाली शासन की राशि

गांव में पहले पदस्थ रहे पंचायत सचिव रंजीत महदेवा पर गंभीर आरोप लगे हैं। बताया जा रहा है कि उन्होंने ग्राम सभा या पंचायत की बैठक बगैर बुलाए, बिना किसी प्रस्ताव के सीधे शासन की राशि का आहरण किया। ग्रामीणों का दावा है कि इस पैसे का कोई हिसाब नहीं दिया गया, न कोई पंजी सार्वजनिक किया गया।

सिर्फ मोबाइल से किया “प्रभार हस्तांतरण”, ज़मीनी दस्तावेज अब भी खुद के पास
सचिव रंजीत महदेवा को ग्राम पंचायत पहुंदा के अलावा दो अन्य पंचायतों का भी प्रभार दिया गया था। लेकिन उनके कार्यकाल में किसी भी पंचायत में न बैठकें हुईं, न ही योजनाओं पर अमल। जब ग्रामीणों ने इस पर सवाल उठाया तो उन्हें व्हाट्सएप के जरिए “प्रभार सौंपने” की सूचना मिली।

लेकिन, वास्तव में पंचायत की चाबी आज भी उन्हीं के हाथ में है — आय-व्यय रजिस्टर, प्रस्ताव पुस्तिका, चेकबुक जैसे सभी दस्तावेज उन्हीं के पास हैं।

“ ग्रामीणों ने हमसे कहा  कि नई सचिव को प्रभार दे दिया गया है, लेकिन जब नई सचिव पहुंची तो उनके पास कुछ भी नहीं था। सारी फाइलें अब भी पुराने सचिव के पास हैं।”

गांव की हालत: योजनाएं अधूरी, फाइलों में पूरी
पहंदा गांव में पीने का पानी, नाली, सड़क और वृद्धावस्था पेंशन जैसी बुनियादी योजनाएं वर्षों से अधूरी हैं। गांववालों का कहना है कि सचिव ने सरपंच के साथ मिलकर सरकारी फंड का बंदरबांट किया। उन्होंने किसी भी कार्य के लिए न तो टेंडर निकाला, न ही खुली बैठक में निर्णय लिया।

“गांव के नाम पर पैसा आया, लेकिन गांव में कुछ नहीं बदला। केवल बैंक स्टेटमेंट में हिसाब है, जमीन पर नहीं।”
ग्रामीण

  राज्यपाल ने राज भवन स्टाफ के साथ देखी साबरमती रिपोर्ट

तबादले के बाद भी कुर्सी से लगाव, दोबारा लोटने की कोशिश
रंजीत महदेवा का दो माह पूर्व स्थानांतरण हो चुका है, और नई सचिव सुलेखा मरकाम को जिम्मेदारी दी गई है। लेकिन अब भी गांववाले हैरान हैं कि कैसे वह व्यक्ति दोबारा उसी पंचायत में लौटने की कोशिश कर रहा है, जिसके कार्यकाल में विकास के नाम पर “शासन की आंखों में धूल” झोंकी गई।

ग्रामीणों की गुहार: “हमें सिर्फ कागज़ी नहीं, ज़मीनी जवाब चाहिए”
गांववासियों ने अब जनपद पंचायत कोटा, जिला पंचायत बिलासपुर और पंचायत शिविरों में शिकायतें दर्ज कराई हैं।

उनकी मांग है:
1) तत्काल निष्पक्ष जांच कराई जाए

2) सचिव रंजीत महदेवा को पूरी तरह प्रभार मुक्त किया जाए

3) पंचायत के सभी वित्तीय दस्तावेजों की ऑडिट हो

4) जो भी दोषी हो, उस पर प्रशासनिक और आपराधिक कार्यवाही की जाए

ख़बर का अंत, लेकिन सवाल अब भी बाकी हैं…
पहुंदा गांव की कहानी सिर्फ एक पंचायत की नहीं है — यह उस सिस्टम की कहानी है, जहां सूचना का अभाव, जवाबदेही की कमी और मिलीभगत से विकास का सपना अधूरा रह जाता है।

सवाल उठता है — क्या शासन ऐसी चुप्पी को भी “संतोष” मानता है? या फिर शिकायत उठने के बाद ही सिस्टम जागता है?

Was this article helpful?
YesNo

Live Cricket Info

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button