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राजस्व विभाग पुनर्गठन की राह पर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में फाइलें अब भी धूल फांक रही हैं”

नायब तहसीलदार और तहसीलदार के समकक्ष वेतन और कार्य वाले सहायक अधीक्षक भू अभिलेख एवं अधीक्षकों को समायोजित करने की मांग तेज

राजस्व ढांचे में समायोजन की मांग ने फिर पकड़ी रफ्तार — मध्यप्रदेश में जहां राजस्व व भू-अभिलेख विभाग का पुनर्गठन ज़मीन पर उतर चुका है, वहीं छत्तीसगढ़ में फाइलें अब भी मंत्रालय की आलमारियों में धूल फांक रही हैं। समान कार्य और वेतन पाने के बावजूद भू-अभिलेख के अधिकारियों को राजस्व पदों पर समायोजन नहीं मिलने से विभागीय असंतोष गहराता जा रहा है।

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रायपुर।मध्य प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में राजस्व एवं भू-अभिलेख विभाग में एक बड़ा प्रशासनिक सुधार करते हुए नायब तहसीलदार और तहसीलदार पदों पर सहायक अधीक्षक भू अभिलेख
और अधीक्षक को समायोजित कर दिया गया है। यह निर्णय प्रशासनिक ढांचे के सरलीकरण और संसाधनों के कुशल उपयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

वहीं छत्तीसगढ़ में भी इसी प्रकार का प्रस्ताव कई वर्षों पूर्व विचाराधीन रहा, जिसमें सभी संभागों से रिपोर्ट मंगाई गई थी। परंतु आश्चर्यजनक रूप से वह प्रस्ताव अब तक ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। इससे विभाग के भीतर असंतोष की भावना पनप रही है।

समान वेतन, समान कार्य – फिर भी दोहरी व्यवस्था क्यों?
राजस्व विभाग के जानकारों का कहना है कि नायब तहसीलदार और सहायक अधीक्षक भू अभिलेख, तहसीलदार और अधीक्षक – इन दोनों श्रेणियों के बीच कार्य और वेतनमान में कोई ठोस अंतर नहीं है। फिर भी प्रशासनिक पदों की दृष्टि से एक को “राजस्व अधिकारी” और दूसरे को केवल “तकनीकी सहायक” के रूप में देखा जाता है, जो सेवा संतुलन और पदोन्नति प्रक्रिया में असमानता पैदा करता है।

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तकनीक ने बदला कार्य का स्वरूप
भू-अभिलेख में मैनुअल नापजोख की जगह अब डिजिटल सर्वे, जीआईएस मैपिंग और ड्रोन तकनीक का प्रयोग आम हो चुका है। इससे न केवल मैनुअल कार्यों में भारी कमी आई है, बल्कि तकनीकी स्टाफ की उपयोगिता अब पहले जैसी नहीं रही। इस स्थिति में सहायक अधीक्षकों और अधीक्षकों का पृथक पद बनाए रखना वित्तीय और प्रशासनिक बोझ ही कहा जाएगा।

कर्मचारियों की मांग – मध्यप्रदेश की तरह छत्तीसगढ़ में भी समायोजन हो
राज्यभर में कार्यरत सहायक अधीक्षक भूगोल और अधीक्षकों ने मांग की है कि छत्तीसगढ़ सरकार भी मध्य प्रदेश की तर्ज पर जल्द निर्णय लेकर उन्हें राजस्व पदों पर समायोजित करे, जिससे न केवल प्रशासनिक व्यय में कटौती होगी, बल्कि विभागीय संतुलन भी कायम होगा।

लंबित फाइलों को मिले दिशा
राजस्व विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि “इस विषय में कई बार फाइल आगे बढ़ी है लेकिन अंतिम स्वीकृति स्तर पर मामला अटका हुआ है। यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो यह प्रक्रिया 1 माह में पूरी की जा सकती है।”

अब देखना यह होगा कि मध्य प्रदेश के इस सुधारात्मक कदम से छत्तीसगढ़ सरकार कोई प्रेरणा लेती है या नहीं। फिलहाल तो यहां की फाइलें धूल खा रही हैं और अधिकारी सिर्फ इंतज़ार कर रहे हैं।

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