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CG:– बिलासपुर संभाग में डिजिटल राजस्व क्रांति, निस्तार पत्रक और अधिकार अभिलेख होंगे ऑनलाइन, धोखाधड़ी और भूमि विवादों पर लगेगी लगाम

CG:– बिलासपुर संभाग के आठ जिलों में राजस्व अभिलेखों में हो रही अनियमितताओं और फर्जीवाड़ों पर रोक लगाने के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया है। निस्तार पत्रक और पंचसाला (अधिकार अभिलेख) को अब पूरी तरह से स्कैन कर डिजिटल किया जाएगा। चारागाह, कब्रिस्तान, तालाब और श्मशान जैसी सार्वजनिक भूमि का रिकॉर्ड भी अब ऑनलाइन होगा। इससे फर्जी दस्तावेजों के जरिए हो रही जमीन कब्जे की घटनाओं में कमी आएगी और न्यायिक विवादों के निपटारे में मदद मिलेगी। संभागायुक्त सुनील जैन ने इस संबंध में सभी आठ जिलों के कलेक्टरों को स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं।

बिलासपुर | बिलासपुर संभाग में जमीनों से जुड़े विवादों और दस्तावेजी हेराफेरी पर लगाम कसने प्रशासन ने एक बड़ा कदम उठाया है। संभाग के अंतर्गत आने वाले बिलासपुर, कोरबा, रायगढ़, जांजगीर-चांपा, मुंगेली, सक्ती, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही और सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिलों में अब निस्तार पत्रक और पंचसाला अभिलेख डिजिटल रूप में उपलब्ध होंगे।

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संभागायुक्त सुनील जैन ने सभी कलेक्टरों को निर्देशित किया है कि वे अपने-अपने जिलों के सभी तहसील और राजस्व कार्यालयों में इस प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से लागू करें।

क्या होता है निस्तार पत्रक और पंचसाला?• निस्तार पत्रक: यह दस्तावेज ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में स्थित सार्वजनिक उपयोग की भूमि जैसे चरागाह, तालाब, श्मशान, कब्रिस्तान आदि का विवरण रखता है। • पंचसाला (अधिकार अभिलेख): इसमें जमीन के मालिकाना हक, खसरा नंबर, रकबा, और उपयोग की स्थिति दर्ज होती है। यह भूमि स्वामित्व और नामांतरण के लिए मूल दस्तावेज होता है।

अब तक क्यों हो रही थी गड़बड़ी?

इन दस्तावेजों का डिजिटलीकरण नहीं होने के कारण फर्जीवाड़ा और भ्रष्टाचार की घटनाएं बढ़ती गईं।
• पुराने रिकॉर्ड में रगड़कर नाम बदलना,
• फर्जी विक्रय पत्रों पर नामांतरण,
• एकतरफा आदेशों से स्वामित्व हड़पना,
• और राजस्व कर्मचारियों की मिलीभगत से रिकॉर्ड में छेड़छाड़ जैसी घटनाएं आम हो गई थीं।

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प्रमुख फर्जीवाड़े जिनसे प्रशासन सतर्क हुआ:

  1. मस्तूरी तहसील में नामांतरण घोटाला
    – 1.5 एकड़ जमीन फर्जी प्रमाणित प्रतिलिपि के आधार पर दूसरी पार्टी को बिना सूचना दिए एकपक्षीय आदेश से नामांतरण कर दिया गया।
  2. मोपका की दो एकड़ जमीन का फर्जीवाड़ा
    – हल्का नंबर 19/29 में खसरा नंबर 845/1/न और 845/1/झ की जमीन एक संदिग्ध विक्रय पत्र के आधार पर रामआसरे पिता रेवाराम के नाम कर दी गई। पुराने रिकॉर्ड में रगड़कर विश्वासा बाई का नाम जोड़ा गया था।
  3. लिंगियाडीह का 80 साल पुराना विवाद
    – 1954-55 के अभिलेख में 60 डिसमिल भूमि दर्ज है जबकि मिसल अभिलेख में केवल 46 डिसमिल। शेष 14 डिसमिल ज़मीन दूसरे खसरे से जोड़ दी गई, जिससे वर्षों से कई परिवार विवादों में उलझे हैं।

डिजिटल बदलाव से मिलने वाले चार बड़े फायदे:
1. फर्जीवाड़ों पर पूर्ण विराम
– स्कैन दस्तावेजों से कूटरचना और छेड़छाड़ पकड़ना आसान होगा।
2. पारदर्शिता और सूचना तक पहुंच
– आम नागरिक भुइयां पोर्टल पर सार्वजनिक ज़मीन और स्वामित्व से जुड़ी जानकारी ऑनलाइन देख सकेंगे।
3. न्यायिक मामलों में मजबूत साक्ष्य
– डिजिटली स्कैन कॉपी अदालत में मान्य प्रमाण के तौर पर प्रस्तुत की जा सकेगी।
4. तहसील से राहत और हक की सुरक्षा
– लोगों को अब बार-बार तहसील नहीं जाना पड़ेगा। मालिकाना हक संरक्षित रहेगा।

संभागायुक्त सुनील जैन ने क्या कहा?

“हमारी प्राथमिकता है कि राजस्व रिकॉर्ड पारदर्शी और जनता के लिए आसानी से सुलभ हो। हमने सभी जिलों को निर्देश दिए हैं कि वे चारागाह, कब्रिस्तान, श्मशान और तालाब जैसी सार्वजनिक ज़मीनों का रिकॉर्ड स्कैन कर डिजिटल पोर्टल पर अपडेट करें। इससे न केवल फर्जीवाड़ा रुकेगा, बल्कि वर्षों पुराने भूमि विवादों का भी समाधान निकलेगा

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