CG News:– भक्ती की धुन पर कप्तान झूमे,जनता ने पूछा–कानून किसे सौंपे? वर्दी की साख अब सवालों घेरे में!

एसपी भोजराम पटेल भजन में थिरके, वर्दी की गरिमा पर उठे सवाल – आस्था और अनुशासन के बीच खिंची बहस
मुंगेली। छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले में तैनात पुलिस अधीक्षक भोजराम पटेल इन दिनों एक वायरल वीडियो के चलते चर्चा और आलोचना दोनों के केंद्र में हैं। वीडियो में वे धार्मिक भजन “बाके बिहारी की देख जटा मेरो मन होय लटा पटा” पर श्रद्धालुओं के बीच भावविभोर होकर थिरकते दिख रहे हैं। माथे पर चंदन का टीका, पारंपरिक वेशभूषा और भक्तिभाव से ओतप्रोत चेहरा—उनकी यह झलक जहां एक वर्ग को आस्था और सनातन संस्कृति के प्रति सम्मान का प्रतीक लगी, वहीं आलोचकों के लिए यह पुलिस वर्दी की गरिमा और आचार संहिता पर सवाल खड़े करने वाली बन गई।
निजी आस्था या प्रशासनिक छवि?
स्थानीय लोगों का कहना है कि कप्तान भोजराम पटेल का यह नृत्य सरकार के घोषित ‘रामराज्य’ की छवि से मेल खाता है और जनता ने भी तालियां बजाकर उनका उत्साह बढ़ाया। कुछ ने इसे “सनातन रक्षा में अधिकारी की भागीदारी” कहकर सराहा। लेकिन, सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या पुलिस की वर्दी इतनी लचीली है कि उसे निजी भक्ति और आस्था के मंच पर उतारा जाए? आलोचकों का तर्क है कि यदि अधिकारी की आस्था इतनी प्रबल थी तो उन्हें वर्दी और पद की गरिमा से अलग होकर आम भक्त की तरह शामिल होना चाहिए था।
कानून और अनुशासन की कसौटी
कानून विशेषज्ञ मानते हैं कि वर्दी सिर्फ कपड़ा नहीं बल्कि अनुशासन, जिम्मेदारी और विश्वास का प्रतीक है। किसी भी पुलिस अधिकारी का वर्दी में रहकर इस तरह थिरकना आचार संहिता के खिलाफ है और यह पूरी पुलिस व्यवस्था की छवि को प्रभावित कर सकता है। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में पहले ही वर्दी में डांस या सोशल मीडिया रील बनाने पर पाबंदी है। यही कारण है कि लोग पूछ रहे हैं—अगर किसी कांस्टेबल ने ऐसा किया होता तो क्या वह निलंबन से बच पाता?
सोशल मीडिया पर कटाक्ष और तंज
वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर खूब चुटकुले चल रहे हैं। किसी ने लिखा—“रामराज्य में कप्तान भी भक्तों संग लटा–पटा हो रहे हैं।” तो किसी ने कहा—“लगता है जिले में कानून व्यवस्था इतनी दुरुस्त है कि अब कप्तान भजन मंडली संभाल रहे हैं।” यह बहस इस ओर भी इशारा करती है कि पुलिस विभाग के भीतर आचार संहिता और अनुशासन की व्याख्या में कहीं न कहीं दोहरे मानदंड लागू हो रहे हैं।
भरोसा और पेशेवर छवि
वरिष्ठ नागरिकों और विशेषज्ञों का कहना है कि जनता पुलिस से निष्पक्षता और पेशेवर गंभीरता की अपेक्षा करती है। जब वही अधिकारी सार्वजनिक मंच पर वर्दी में धार्मिक भावनाओं में लीन नजर आते हैं, तो नागरिकों के मन में शंका उठना स्वाभाविक है कि क्या वही अधिकारी अपराध नियंत्रण और कानून व्यवस्था बनाए रखने में उतने ही कठोर और निष्पक्ष रह पाएंगे। यही वजह है कि यह वीडियो सिर्फ व्यक्तिगत आस्था का नहीं, बल्कि प्रशासनिक मर्यादा का मुद्दा बन गया है।
– वर्दी और भक्ति का टकराव
कुल मिलाकर, भोजराम पटेल का यह वायरल वीडियो आस्था और अनुशासन के बीच संतुलन की चुनौती को उजागर करता है। यह घटना एक ओर उनकी निजी भक्ति को दिखाती है, तो दूसरी ओर पूरे पुलिस महकमे की छवि और वर्दी की गरिमा पर गहरा सवाल खड़ा करती है। अब देखना यह है कि क्या पुलिस विभाग इस पर कोई संज्ञान लेगा या फिर यह मामला केवल सोशल मीडिया की बहस तक सीमित रह जाएगा।
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