घंटों तड़पता रहा बच्चा, पर डॉक्टरों ने नहीं किया ऑपरेशन‘बड़े साहब आएंगे तब देखेंगे’ कहकर टालते रहे ज़िम्मेदारीपरिजनों का आरोप- लापरवाही ने ले ली दो साल के बेटे की जान

एक मासूम की मौत ने फिर से सरकारी अस्पतालों की कार्यशैली और स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। दो साल का बच्चा गले में चना फंसने से तड़पता रहा, परिजनों की मिन्नतों के बावजूद घंटों इलाज शुरू नहीं हुआ। डॉक्टर सिर्फ यही कहते रहे— ‘बड़े साहब आएंगे तब देखेंगे।’ अंततः ऑपरेशन से पहले ही बच्चे ने दम तोड़ दिया। परिजन आरोप लगा रहे हैं कि अगर समय पर ध्यान दिया जाता, तो दिव्यांश आज जिंदा होता। वहीं अस्पताल प्रबंधन ने लापरवाही से इनकार किया है।
लोकेशन: कोरबा, छत्तीसगढ़ तारीख: 25 जुलाई 2025रिपोर्टर: न्यायधानी डेस्क, परिजन बोले – ‘समय रहते इलाज होता तो बच जाती जान’, डॉक्टरों ने इलाज में लापरवाही से किया इनकार
कोरबा जिले से एक बेहद दर्दनाक घटना सामने आई है। गुरुवार को दो वर्षीय मासूम दिव्यांश कुमार की गले में चना फंसने के कारण मौत हो गई। बच्चा उत्तर प्रदेश निवासी छोटू कुमार का बेटा था, जो कोरबा में पानीपुरी बेचने का काम करता है। घटना के बाद परिजनों ने मेडिकल कॉलेज अस्पताल पर इलाज में लापरवाही और विलंब का गंभीर आरोप लगाया है।
चना निगलते ही बिगड़ी हालत, परिजन भागे अस्पताल
जानकारी के अनुसार, गुरुवार सुबह करीब 8 बजे दिव्यांश घर के आंगन में खेलते-खेलते कमरे में चला गया, जहां उसने चना निगल लिया। इसके बाद वह जोर-जोर से रोने लगा और सांस लेने में दिक्कत महसूस करने लगा। चाचा गोलू बंसल ने तुरंत उसे मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचाया।
परिजनों का आरोप है कि बच्चे की हालत गंभीर होने के बावजूद इलाज में देर की गई। गोलू बंसल ने कहा— “हम बार–बार डॉक्टरों से कहते रहे कि बच्चे को देखिए, लेकिन जवाब मिला – ‘बड़े साहब आएंगे तब देखेंगे।’”
‘पाइपनली’ भी खुद लाकर दिए पर ऑपरेशन नहीं हुआ: चाचा का आरोप
गोलू बंसल ने बताया, “डॉक्टरों ने एक पाइपनली (इक्विपमेंट) लाने को कहा। हमने वह भी ला दिया। लेकिन बच्चे को समय पर ऑपरेशन नहीं किया गया। शाम 7:30 बजे उसकी मौत हो गई। अगर समय रहते चना निकाल लिया जाता, तो बच्चा आज जिंदा होता।”
डॉक्टरों की सफाई: ‘बच्चे की हालत पहले से थी नाजुक’
मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर हरबंश ने बताया कि जब बच्चा अस्पताल लाया गया, उसकी स्थिति अत्यंत गंभीर थी। “धड़कन लगभग बंद हो चुकी थी। हमने तत्काल वेंटिलेटर सपोर्ट दिया और श्वास नली में ट्यूब डाली। कुछ समय के लिए हालत में सुधार भी हुआ।”
उनके मुताबिक चना गले से नीचे जाकर फेफड़ों में फंस गया था, जिससे “इंटरनल ब्लीडिंग और झटके आना शुरू हो गए थे।”
‘रेफर करना चाहिए था, पर वेंटिलेटर न होने के कारण यहीं इलाज किया’: डॉक्टर
डॉ. हरबंश ने स्वीकार किया कि स्थिति की गंभीरता को देखते हुए बिलासपुर रेफर करना चाहिए था, लेकिन 108 एंबुलेंस में वेंटिलेटर की सुविधा नहीं होने के कारण यहीं इलाज जारी रखने का निर्णय लिया गया। उन्होंने कहा कि ईएनटी स्पेशलिस्ट की संख्या सीमित होने और ऑपरेशन के लिए तीन विशेषज्ञों की आवश्यकता होने के बावजूद सर्जरी की तैयारी की गई थी, लेकिन ऑपरेशन से पहले ही बच्चे की मौत हो गई।
डॉक्टरों ने लापरवाही से किया इनकार, कोई थाने में शिकायत नहीं
डॉक्टरों ने इक्विपमेंट मंगवाने या इलाज में देरी के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि “डॉक्टरों की टीम ने हर संभव प्रयास किया, लेकिन बच्चा ऑपरेशन झेल पाने की स्थिति में नहीं था।”
अस्पताल प्रबंधन के अनुसार, परिजनों को शव सौंप दिया गया है और वे बच्चे के पार्थिव शरीर को उत्तर प्रदेश स्थित अपने गांव ले गए हैं। इस संबंध में अब तक सिविल लाइन थाना में कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की गई है।
एक मासूम की मौत सिर्फ एक चिकित्सकीय जटिलता नहीं, बल्कि सिस्टम की सीमाओं और संवादहीनता की गहरी कहानी है। यदि सवाल केवल “बड़े साहब कब आएंगे?” पर अटका रह जाए, तो जवाब देने के लिए बहुत देर हो चुकी होती है।
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